जन्म पा लेना ही काफी नहीं, जीवन को जीना भी आना चाहिए
माया-मोह जनित अज्ञानता की पट्टी आंखों पर बांधे हुए मनुष्य का लक्ष्य से विमुख होना कोई आश्चर्य की बात नहीं। आज मनुष्य की जिंदगी एक अंधी दौड़ बनकर रह गई है। जीवन के पथ पर वह इधर-उधर भटक रहा है। इस लक्ष्यहीन भटकाव से जूझते मानव का जीवन एक ऐसी रिक्ति, एक ऐसा खालीपन का ढेर बन गया है, जहां घोर पछतावा,आत्मग्लानि और उत्पीड़न का अंतहीन
माया-मोह जनित अज्ञानता की पट्टी आंखों पर बांधे हुए मनुष्य का लक्ष्य से विमुख होना कोई आश्चर्य की बात नहीं। आज मनुष्य की जिंदगी एक अंधी दौड़ बनकर रह गई है। जीवन के पथ पर वह इधर-उधर भटक रहा है। इस लक्ष्यहीन भटकाव से जूझते मानव का जीवन एक ऐसी रिक्ति, एक ऐसा खालीपन का ढेर बन गया है, जहां घोर पछतावा,आत्मग्लानि और उत्पीड़न का अंतहीन सिलसिला जारी रहता है। फलस्वरूप उसका जीवन घड़ी के पेंडुलम की तरह कभी यहां तो कभी वहां डोलता रहता है।
उसके जीवन में कभी दुख के दायरे से बाहर निकलकर चैन की सांस लेने की नौबत नहीं आती। क्या आप जानते हैं कि यह सब क्यों होता है? शायद नहीं। ज्यादातर लोगों के साथ यह सब इसलिए होता है क्योंकि वे धर्म मार्ग पर नहीं चलते। धर्म नीति के अनुरूप चलने वाले किसी भी व्यक्ति को इस प्रकार का कष्ट नहीं भोगना पड़ता। लेकिन अफसोस कि ज्यादातर लोग ऐसा नहीं करते। हर कोई यह चाहता है कि किसी प्रकार मैं दुख के दायरे से बाहर निकलकर स्वाभाविक रूप से जीवन का आनंद ग्रहण करूं, किंतु अज्ञानतावश वह सही दिशा में नहीं बढ़ पाता और जहां शांति न हो, वहां पर आनंद नहीं प्राप्त हो सकता। इस प्रकार वह दुख के दलदल से बाहर नहीं निकल पाता। उसका जीवन दुख-दर्द की एक लंबी दास्तान बनकर रह जाता है। इस दुनिया में जन्म लेना एक बात है और इस जीवन को सही तरीके से जीना दूसरी बात। संसार में बहुत से लोग जन्म लेते हैं और बिना सही तरीके से जिए ही मर जाते हैं। जन्म पा लेना ही काफी नहीं, जीवन को जीना भी आना चाहिए।
आज हर प्राणी सुख की खोज कर रहा है। इसके लिए वह भौतिक सुखों की ओर भागता है, लेकिन असली सुख उधर नहीं, इधर है। आप यह जानने की कोशिश करें कि आपका हृदय क्या चाहता है? आपका अंतर्मन क्या खोज रहा है? आपकी तलाश क्या है? सच्चई यह है कि आप सब आनंद की खोज कर रहे हैं। यदि ऐसा है, तो आप इस बात पर गौर कीजिए कि आपको धर्म नीति पर चलना होगा। यहां धर्म का अर्थ किसी धर्म या पंथ विशेष के कहे अनुसार नहीं, बल्कि शाश्वत आनंद की खोज के पथ पर चलने से है। 1 3अशोक भाईजी