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मानसिक शांति और सुख

परिणाम होगा नया जीवन, नई स्फूर्ति, नई मानसिक शांति और सुख। भावनात्मक निशानों या मन की चोटों का इलाज दवाओं या डॉक्टर के माध्यम से नहीं किया जा सकता। व्यक्ति के मन में तनाव, परेशानी और मानसिक पीड़ा नासूर जख्म की तरह तड़पाती रहती है। मानसिक घावों को व्यक्ति को

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 01 Apr 2015 10:40 AM (IST)Updated: Wed, 01 Apr 2015 10:45 AM (IST)
मानसिक शांति और सुख
मानसिक शांति और सुख

लेखक मैक्सवेल मॉल्ट्ज ने प्रसिद्ध पुस्तक 'साइको साइबरनेटिक्सÓ में लिखा है कि पुराने भावनात्मक निशानों को हटाने वाला ऑपरेशन केवल आप ही कर सकते हैं। आपको स्वयं अपना प्लास्टिक सर्जन बनना होगा। परिणाम होगा नया जीवन, नई स्फूर्ति, नई मानसिक शांति और सुख।

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भावनात्मक निशानों या मन की चोटों का इलाज दवाओं या डॉक्टर के माध्यम से नहीं किया जा सकता। व्यक्ति के मन में तनाव, परेशानी और मानसिक पीड़ा नासूर जख्म की तरह तड़पाती रहती है। मानसिक घावों को व्यक्ति को पूरी तरह से काटकर बाहर निकालने का प्रयास करना होगा। जिस तरह सर्जरी के लिए उपकरणों की आवश्यकता होती है, उसी तरह मानसिक सर्जरी के लिए भी क्षमा, आत्मसम्मान, ईमानदारी, करुणा, प्रेम और आत्मविश्वास जैसे उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है।

खुशी की बात यह है कि ये उपकरण हर व्यक्ति के पास हैं, बस वे इनका इस्तेमाल करने में कभी-कभी देर कर देते हैं, जिससे मन का घाव बढ़ता जाता है। कई लोगों को तो मानसिक चोट मृत्यु के मुंह में पहुंचा देती है। यदि शारीरिक बीमारी का इलाज समय पर न किया जाए तो व्यक्ति अपंग हो जाता है और कई बार तो असमय ही मृत्यु का ग्रास भी बन जाता है। उसी तरह यदि मन में बैठे अवसाद के लिए मानसिक सर्जरी न की जाए, तो व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाता है और कई बार मानसिक पीड़ा इतनी अधिक बढ़ जाती है कि इसके कारण व्यक्ति की हालत मौत से भी बदतर हो जाती है। इसलिए व्यक्ति को स्वयं ही मानसिक घावों को धोने के लिए मानसिक सर्जरी करने का स्वयं प्रयास करना चाहिए। सबसे बड़ी बात यह है कि जिस तरह शरीर की सर्जरी करने के लिए एक कुशल डॉक्टर की आवश्यकता होती है, उस तरह मानसिक सर्जरी करने के लिए किसी कुशल डॉक्टर की नहीं, बल्कि व्यक्ति के सकारात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।

सकारात्मक दृष्टिकोण हर व्यक्ति विकसित कर सकता है। जीवन में सुख और दुख दोनों ही होते हैं। इसी तरह शारीरिक व मानसिक चोट भी जीवन का एक अंग है। इन चोटों को जीवन से नहीं निकाला जा सकता, लेकिन कम किया जा सकता है। जिस तरह व्यक्ति सड़क पर चलते समय दुर्घटना से सावधान रहता है, उसी तरह क्रोध और लड़ाई के समय भी मानसिक दुर्घटना से सचेत रहना चाहिए।


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