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संतुलन साधना ही शिवत्व

लय और प्रलय, दोनों शिव के अधीन हैं। शिव का अर्थ ही सुंदर और कल्याणकारी, मंगल का मूल और अमंगल का उन्मूलन है। शिव के दो रूप हैं, सौम्य और रौद्र। जब शिव अपने सौम्य रूप में होते हैं, तो प्रकृति में लय बनी रहती है। पुराणों में शिव को पुरुष (ऊर्जा) और प्रकृति का पर्याय माना गया है। यानी पुरुष और प्रकृति का सम्यक संतुलन ही आकाश्

By Edited By: Published: Wed, 23 Jul 2014 08:39 PM (IST)Updated: Wed, 23 Jul 2014 08:49 PM (IST)
संतुलन साधना ही शिवत्व
संतुलन साधना ही शिवत्व

लय और प्रलय, दोनों शिव के अधीन हैं। शिव का अर्थ ही सुंदर और कल्याणकारी, मंगल का मूल और अमंगल का उन्मूलन है। शिव के दो रूप हैं, सौम्य और रौद्र। जब शिव अपने सौम्य रूप में होते हैं, तो प्रकृति में लय बनी रहती है। पुराणों में शिव को पुरुष (ऊर्जा) और प्रकृति का पर्याय माना गया है। यानी पुरुष और प्रकृति का सम्यक संतुलन ही आकाश, पदार्थ, ब्रह्मांड और ऊर्जा को नियंत्रित रखते हुए गतिमान बनाए रखता है। प्रकृति में जो कुछ भी है, आकाश, पाताल, पृथ्वी, अग्नि, वायु, सबमें संतुलन बनाए रखने का नाम ही शिवत्व है।
शिव स्वयं भी परस्पर विरोधी शक्तियों के बीच सामंजस्य बनाए रखने के सुंदरतम प्रतीक हैं। शिव का जो प्रचलित रूप है, वह है, शीश पर चंद्रमा और गले में अत्यंत विषैला नाग। चंद्रमा आदिकाल से ही शीतलता प्रदान करने वाला माना जाता रहा है, लेकिन नाग..? अपने विष की एक बूंद से किसी भी प्राणी के जीवन को कालकवलित कर देने वाला। कैसा अद्भुत संतुलन है इन दोनों के बीच। शिव अ‌र्द्धनारीश्वर हैं। पुरुष और प्रकृति (स्त्री) का सम्मिलित रूप। वे अ‌र्द्धनारीश्वर होते हुए भी कामजित हैं। काम पर विजय प्राप्त करने वाले और क्रोध की ज्वाला में काम को भस्म कर देने वाले। प्रकृति यानी उमा अर्थात् पार्वती उनकी पत्नी हैं, लेकिन हैं वीतरागी। शिव गृहस्थ होते हुए भी श्मशान में रहते हैं। मतलब काम और संयम का सम्यक संतुलन। भोग भी, विराग भी। शक्ति भी, विनयशीलता भी। आसक्ति इतनी कि पत्नी उमा के यज्ञवेदी में कूदकर जान दे देने पर उनके शव को लेकर शोक में तांडव करने लगते हैं शिव। विरक्ति इतनी कि पार्वती का शिव से विवाह की प्रेरणा पैदा करने के लिए प्रयत्नशील काम को भस्म करने के बाद वे पुन: ध्यानरत हो जाते हैं।
वेदों में शिव को रुद्र ही कहा गया है। वेदों के काफी बाद रचे गए पुराणों और उपनिषदों में रुद्र का ही नाम शिव हो गया और रौद्र स्वरूप में रुद्र को जाना गया। वस्तुत: प्रकृति और पुरुष के बीच असंतुलन उत्पन्न होने के परिणामस्वरूप यह स्वरूप प्रकट होता है। प्रकृति में जहां कहीं भी मानव असंतुलन की ओर अग्रसर हुआ है, शिव ने रौद्र रूप धारण किया है। लय और प्रलय में संतुलन रखने वाले शिव की भूमि रुद्रप्रयाग, चमोली और उत्तरकाशी जैसे तीर्थो में आई प्राकृतिक आपदा इसका उदाहरण हैं।
केदारनाथ धाम जाने पर रास्ते में लोक निर्माण विभाग उत्तराखंड की ओर से एक बोर्ड लगा है, 'रौद्र रुद्र ब्रह्मांड प्रलयति, प्रलयति प्रलेयनाथ केदारनाथम्।' इसका भावार्थ यह है कि जो रुद्र अपने रौद्र रूप से पूरे ब्रह्मांड को भस्म कर देने की साम‌र्थ्य रखते हैं, वही भगवान रुद्र यहां केदारनाथ नाम से निवास करते हैं।
हमें शिव के संतुलन स्वरूप पर ध्यान देना चाहिए। अपने भीतर तो संतुलन लाना ही चाहिए, साथ ही प्रकृति के संतुलन को भी बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। तभी हम जीवन में लय को कायम रख सकेंगे।
[अशोक मिश्र]


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खंडित शिवलिंग


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