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जीवन को गतिशील बनाने के लिए जीवन-ऊर्जा आवश्यक है

जीवन का जहाज तूफानों से भरे संसार सागर में भटक गया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसका नैतिक-बोध, इसका दिशासूचक यंत्र खराब हो गया है। जीवन को गतिशील बनाने के लिए जीवन-ऊर्जा आवश्यक है, परंतु उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है उसका सही दिशा में संयोजन। गरीबी में भी गरिमा, सादगी का सौंदर्य,

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 12 Oct 2015 09:52 AM (IST)Updated: Mon, 12 Oct 2015 09:54 AM (IST)
जीवन को गतिशील बनाने के लिए जीवन-ऊर्जा आवश्यक है
जीवन को गतिशील बनाने के लिए जीवन-ऊर्जा आवश्यक है

जीवन का जहाज तूफानों से भरे संसार सागर में भटक गया है। ऐसा इसलिए, क्योंकि इसका नैतिक-बोध, इसका दिशासूचक यंत्र खराब हो गया है। जीवन को गतिशील बनाने के लिए जीवन-ऊर्जा आवश्यक है, परंतु उससे ज्यादा महत्वपूर्ण है उसका सही दिशा में संयोजन। गरीबी में भी गरिमा, सादगी का सौंदर्य, संघर्ष का हर्ष, समता का स्वाद और आस्था का आनंद, ये सब हमारे आचरण से पतझड़ के पत्ताें की भांति झर गए हैं। हृदय से मानवीय-प्रेम या करुणा का संवेदनशील स्वर, मस्तिष्क से नैतिक चिंतन की अवधारणा और सम्यक आचरण का संकल्प कहीं खो गया है। आज अहिंसा के आलोक की तलाश है। महावीर, बुद्ध और गांधी की अहिंसा किसी कठघरे में कैद है। हिंसा उन्मुक्त होकर अट्टहास कर रही है।
सत्ता और संपत्ति के गलियारे में नैतिक आचरण बला-ए-ताक पर रख दिया गया है। व्यक्ति की अस्मिता एक अंधे मोड़ से गुजर रही है। भौतिक भोगवाद जनसंख्या बढ़ा रहा है, जो आणविक विस्फोट से कम खतरनाक नहीं है। आधुनिक पीढ़ी की त्रसदी यह है कि ‘सबसे बड़ा रुपया’ जैसे सूत्रवाक्य जीवन का लक्ष्य बन गए हैं। जीवन की इस विडंबना से मुक्त होने के लिए हमें आचरण शुद्धि द्वारा नैतिकता का विकास करना होगा। नि:संदेह अध्यात्म एक घनीभूत रहस्य ही है, जिसका कोई ओर-छोर नहीं। अध्यात्म के अंतहीन व्यूहचक्र में उलझने से व्यावहारिक नैतिकता श्रेयस्कर है। भगवान महावीर का प्रारंभिक दर्शन भी सवरेपयोगी नैतिक आचारसंहिता में ही निहित था, अध्यात्म आदि प्रसंग बाद में जुड़ते गए। ज्यों-ज्यों नए तर्क, अन्य धर्र्मो की चुनौतियां सामने आईं,तब उनके समाधान में तार्किक आधार के लिए अध्यात्म, स्वर्ग-नर्क, धर्म-अधर्म आदि परिकल्पनाएं जुड़ती गई। वैदिक धर्म में अनुत्तरित प्रश्नों के लिए सर्वशक्तिमान सृष्टिकर्ता-पालक-संहारक एक ईश्वर की कल्पना की गई। जैन-दर्शन में एकेश्वरवाद स्वीकार्य नहीं है, किंतु महावीर के समय तक कई प्रश्नों का समाधान, कई नैतिक सिद्धांतों का औचित्य आध्यात्मिक आधार के बिना संभव नहीं था।
वस्तुत: नैतिक आचरण का पालन ही सच्चे धर्म का प्रतीक है। नैतिकता को प्रतिरोधक शक्ति का स्वरूप देकर ही अनैतिक आचरण के छिद्र अवरुद्ध किए जा सकते हैं। व्यक्ति, समाज में विचारशुद्धि चलाकर ही बुराइयों और पाप कर्मो को निरुत्साहित किया जा सकता है।


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