यह एक आनंदोत्सव है
वैराग्य जीव को तब होता है जब परमात्मा उस पर अनंत कृपा करते हैं। इस मानव जीवन में यदि कही भय नहीं है तो वह है केवल वैराग्य में और त्याग में, समर्पण में। बाकी तो कदम-दर-कदम भय ही भय है और जहां भय है वहां जीवन यात्र निर्विध्न पूरी
वैराग्य जीव को तब होता है जब परमात्मा उस पर अनंत कृपा करते हैं। इस मानव जीवन में यदि कही भय नहीं है तो वह है केवल वैराग्य में और त्याग में, समर्पण में। बाकी तो कदम-दर-कदम भय ही भय है और जहां भय है वहां जीवन यात्र निर्विध्न पूरी नहीं हो पाएगी।
परमात्मा की कृपा का पहला लक्षण है- मनुष्य में अभयता। समुद्र का जहाज हमें समुद्र पार ले जाता है। वह निर्जीव है, चेतना शून्य है। यदि पानी का जहाज चेतना युक्त होता है, तो इसके अंदर भी समुद्री जीवों का, ऊंची-ऊंची लहरों का भय पैदा हो गया होता। हर तरफ भय ही भय है। किसी को अपने अपमान का भय, किसी को औलाद के बिगड़ने का भय तो किसी को परीक्षा में फेल हो जाने का भय। किसी को व्यापार में घाटे का भय तो किसी को बीमारी का भय। राजा भर्तृहरि कहते थे कि भोग में रोग का भय है, कुल के नष्ट होने का भय है, धन के हरण होने का भय है। यदि भय कहीं नहीं है तो वह है-वैराग्य में। उसी की ढाल बना लेना आपके सारे भय नष्ट हो जाएंगे। यदि डरते हुए युद्ध भूमि में जाएंगे तो पराजय निश्चित है। वैराग्य और त्याग की ढाल बनाकर देखना, उसे कोई शत्रु भेद नहीं पाएगा। जब कुछ त्यागते हैं, तभी कुछ मिलता है। पैसे से कोई चीज प्राप्त नहीं की जा सकती, लेकिन पैसा त्यागते हैं तो बहुत कुछ प्राप्त कर लेते हैं।
वैराग्य की महिमा को इस देश के ऋषि-मुनियों ने जाना। दुनियादारी के कामों में बसें, पर फंसे नहीं। आपकी स्थिति जीवन में कमल के उस फूल की तरह होनी चाहिए, जो तालाब के बंद पानी में रहते हुए भी सबसे अलग रहता है। वैराग्य यदि हमें कभी होता भी है तो क्षणिक। श्मशान घाट से वापस आने के बाद कुछ ही समय में हमें लगता है कि अमुक व्यक्ति तो चला गया, लेकिन हम जीवित रहने के लिए अमरता का प्रमाण पत्र स्थायी तौर पर लेकर आए हैं। जीव का यह भ्रम उसे धोखा देता है। व्यास जी के अनेक प्रयास करने के बावजूद शुकदेव जी वैरागी होकर वन को चले गए। तो क्या ये कायरता थी। जी नहीं वैराग्य कायरता नहीं है। यह मनुष्य के ज्ञान, सोच और समझ की वह चरम अवस्था है जहां वह जीवन के परम सत्य और यथार्थ को समझते हुए आगे बढ़ता है। वैराग्य कायरता नहीं, पलायन भी नहीं है, बल्कि यह महापुरुषों का सच्चा पाथेय है। यह एक आनंदोत्सव है। यह जाग्रति है।