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मानव जीवन एक अनबूझ पहेली है

मानव जीवन कामनाओं से भरा है। जो चीज पास नहीं होती, जिसे पाने की ललक हमेशा रहती, यदि वह किसी के पास होती तो हम उसे स्वयं श्रेष्ठ मानने लगते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 24 Aug 2016 10:44 AM (IST)Updated: Wed, 24 Aug 2016 10:50 AM (IST)
मानव जीवन एक अनबूझ पहेली है
मानव जीवन एक अनबूझ पहेली है

मानव जीवन एक अनबूझ पहेली है। अपार रहस्यों से भरा हमारा जीवन एक साथ अनेक दिशाओं में चलते हुए अनेक अर्थो को प्रतिपादित करता है। यही वजह है कि इस जीवन को प्रत्येक व्यक्ति अपने अनुरूप धारण करता है। जब हम जीवन के रहस्यों को जानने का प्रयास करते हैं तो एक साथ कई रहस्य सामने आ जाते हैं। कभी यह विचार आता है कि हमारा जीवन सार्थक है तो कभी यह कि निर्थक है। कभी भगवान पर शंका की अंगुली उठती है। इस तरह के अनेक प्रश्न हमारे मन को झकझोरते हैं।
अब एक सवाल यह भी उठता है कि हम अपने इष्टदेव को भगवान क्यों कहते हैं? भगवान राम, भगवान कृष्ण आदि, आदि इस शब्द का औचित्य क्या है? दरअसल, जब हम अपने इष्टदेव का नाम लेते हैं तो उनके साथ हम श्रद्धावाचक शब्द जोड़ते हैं। हम अपने वयस्कों के नाम के आगे या पीछे भी कई शब्द जोड़ते हैं। इसका अर्थ है कि हम अपने बड़ों को नाम लेकर नहीं पुकारना चाहते। बहरहाल, अपने इष्टदेव को जब हम भगवान कहते हैं, तो इस शब्द को ठीक से समझना भी चाहिए। मनुष्य की सबसे बड़ी अभिलाषा होती है कि उसे अधिक से अधिक आयु मिले। विद्या मिले। उसे अपार बल प्राप्त हो। बुद्धि हो। ऐश्वर्य हो। शांति मिले। इन छह तत्वों की कामना हरेक को होती है।
मानव जीवन कामनाओं से भरा है। जो चीज हमारे पास नहीं होती, जिसे पाने की ललक मन में हमेशा रहती है, यदि वह किसी के पास होती है तो हम उसे स्वयं श्रेष्ठ मानने लगते हैं। जब हम अपने इष्टदेव की पूजा-अर्चना करते हैं तो हम उनसे यही चाहते हैं कि उनके पास जो ये छह गुण हैं वे हमें भी प्राप्त हों। हमारे मन में कामनाओं की जो गांठ पड़ी हैं, जो कुंठाएं हैं, जो अंधकार है, वह सब नष्ट हो जाएं। हम प्रकाश की ओर गतिमान हों। हममें वे सभी गुण भर जाएं, जिनका अभाव हमारे जीवन में है। हमारे जीवन में ऐश्वर्य की कामना रहती है। धन चाहिए तो लक्ष्मी की पूजा करते हैं। सरस्वती की अर्चना करते हैं, ताकि हममें परमात्मा की विवेकशक्ति अवतरित हो। हम भवानी को अन्नपूर्णा कहते हैं, जो जीवन को चलाने के लिए अन्न को पूरा करती हैं। हम अपने इष्टदेव को अपने अनुसार चुनते हैं। हम स्वयं भगवान को विभिन्न रूप में देखते हैं। परमात्मा तो एक ही है, लेकिन हम अपनी सुविधा से भगवान का स्वरूप निर्माण कर उनकी अर्चना करने लगते हैं। इसीलिए जब हम युद्धभूमि में किसी की हत्या करना चाहते हैं तो भी अपने भगवान से सफलता की कामना करते हैं।


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