किस तरह हमें अच्छे और बुरे कर्म की आदत बनती है
मनुष्य मानो एक केंद्र है जो अपने चारों ओर से ब्रहमांड की समस्त शक्तियों को आकर्षित कर रहा है। इस केंद्र में वे समस्त शक्तियां समाहित होकर पुन: एक शक्ति के रूप में वहां से वापस लौट रही हैं। पाप, पुण्य, दुख-सुख-सब उसकी ओर दौड़ रहे हैं, उससे चिपक रहे
मनुष्य मानो एक केंद्र है जो अपने चारों ओर से ब्रहमांड की समस्त शक्तियों को आकर्षित कर रहा है। इस केंद्र में वे समस्त शक्तियां समाहित होकर पुन: एक शक्ति के रूप में वहां से वापस लौट रही हैं। पाप, पुण्य, दुख-सुख-सब उसकी ओर दौड़ रहे हैं, उससे चिपक रहे हैं। उन्हीं में से वह प्रवृत्तियों की उस प्रबल धारा का निर्माण करता है जिसे चरित्र कहते हैं। चरित्र व्यक्ति को प्रकाशित करता है। अच्छे चरित्र के कारण दूसरे लोग आकर्षित होते हैं। अच्छे गुणों का समूह ही चरित्र है। यदि कोई मनुष्य लगातार अशुभ बातें सुने, अशुभ कर्म करे तो उसका अंत:करण बुरे संस्कारों से मलिन हो जाएगा।
वास्तव में ये कुसंस्कार सदैव कार्यशील बने रहते हैं और उसका परिणाम केवल अनिष्ट होता है। इस प्रकार मनुष्य बुरा बन जाता है। वह इसे रोक नहीं सकता। ये समस्त संस्कार एकत्र होकर उसके अंदर बुरे कर्मो के लिए प्रबल इच्छा उत्पन्न कर देते हैं। वह इनके हाथ की कठपुतली बन जाता है। इसी प्रकार यदि कोई मनुष्य शुभ चिंतन करता है, शुभ कर्म करता है तो उसके संस्कारों का संचय शुभ होगा। ये संस्कार ठीक उसी प्रकार उसे उसकी इच्छा के विपरीत भी सत्कर्मो की ओर प्रवृत्त करेंगे। यदि वह पाप कर्म करना भी चाहे तो भी उसका मन उसकी प्रवृत्तियों से बंधा होने के कारण पाप कर्म करने की अनुमति नहीं देगा। उसकी प्रवृत्तियां उसे वापस लौटा लाएंगी। ऐसा इसलिए, क्योंकि वह पूर्णतया शुभ प्रवृत्तियों के वशीभूत है। जब ऐसी स्थिति में पहुंच जाएं तभी जानना चाहिए कि मनुष्य में सद्चरित्र सशक्त हो गया है। जब चरित्र सशक्त हो जाता है, तब दुनिया की कोई भी ताकत ऐसे व्यक्ति को सदाचरण से विचलित नहीं कर सकती। जब कोई मनुष्य पियानो पर कोई धुन बजाना सीखता है तो प्रारंभ में वह पियानो के की-बोर्ड पर अपनी अंगुलियां समझ-समझकर रखता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तब कि अंगुलियों का चलना उसका स्वभाव न बन जाए। बाद में वह उस धुन को की-बोर्ड की ओर ध्यान दिए बगैर सरलतापूर्वक बजा लेता है। इसी प्रकार हम अपने बारे में भी देख सकते हैं कि हमारी वर्तमान प्रवृत्तियां हमारे पिछले विचारपूर्वक किए गए कर्मो का परिणाम हैं।