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साठ के बाद भी जीवन कैसे आनंदपूर्ण हो सकता है

अधिकतर लोगों की सेहत नौकरी से रिटायर होने के बाद तेजी से खराब होने लगती है। वे महसूस करने लगते हैं कि उनकी सक्रिय-कार्यशील जिंदगी पूरी हो चुकी है। वे स्वयं को दूसरों से अलग-थलग कर लेते हैं। उन्हें लगने लगता है कि लोगों के साथ-साथ परिवारवालों ने भी उनकी

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 22 Apr 2015 10:23 AM (IST)Updated: Wed, 22 Apr 2015 10:37 AM (IST)
साठ के बाद भी जीवन कैसे आनंदपूर्ण हो सकता है
साठ के बाद भी जीवन कैसे आनंदपूर्ण हो सकता है

अधिकतर लोगों की सेहत नौकरी से रिटायर होने के बाद तेजी से खराब होने लगती है। वे महसूस करने लगते हैं कि उनकी सक्रिय-कार्यशील जिंदगी पूरी हो चुकी है। वे स्वयं को दूसरों से अलग-थलग कर लेते हैं। उन्हें लगने लगता है कि लोगों के साथ-साथ परिवारवालों ने भी उनकी उपेक्षा करनी शुरू कर दी है। इससे रिटायर व्यक्ति अपने बारे में थके हुए बीमार व्यक्ति की छवि बना लेते हैं। यह नकारात्मकता उनके तन-मन दोनों को खा जाती है।

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लोग नौकरी से रिटायर होने की वजह से नहीं, बल्कि जीवन से रिटायर होने के कारण मरते हैं। अधिकतर लोगों को यह लगता है कि साठ साल के बाद उनका जीवन केवल भक्ति व पूजा-पाठ तक सीमित रह जाता है। जबकि ऐसा नहीं है। गीता में भी कर्म की भावना पर बल दिया गया है। कर्म ही पूजा व भक्ति है। ऐसे में व्यक्ति अध्यात्म के साथ कर्म करता रहे, तो उम्र उस पर हावी नहीं होती और वह अपने जीवन को आनंदपूर्वक बिताता है। ईश्वर की आराधना स्वयं ही हो जाती है, जब व्यक्ति किसी जरूरतमंद की मदद करता है। नौकरी या व्यापार से रिटायर होने के बाद व्यक्ति नि:स्वार्थ मदद करके अपने जीवन को आध्यात्मिक और मानसिक रूप से सफल बना सकता है। इस दौरान व्यक्ति अपने सीखने की लालसा को भी जीवित रखे, तो वह अंतिम समय तक स्वस्थ भी रहता है।

अनेक शोधकर्ताओं ने इस बात को साबित कर दिया है कि सीखने की योग्यता 70 की आयु में भी उतनी ही अच्छी होती है, जितनी कि 17 साल की आयु में। यदि व्यक्ति सृजन करता रहे तो उसे अपनी बढ़ती आयु का पता ही न चले। यही कारण है कि सृजनात्मक कार्य करने वाले वैज्ञानिक, आविष्कारक, पेंटर, लेखक और दार्शनिक आदि गैर-सृजनात्मक कार्य करने वालों से ज्यादा लंबे समय तक कार्यशील बने रहते हैं। थॉमस अल्वा एडीसन 90 की उम्र में भी सक्रिय रहकर विभिन्न आविष्कार करने में लगे हुए थे। माइकल एंजेलो ने 80 की उम्र पार करने के बाद भी अपनी कुछ सर्वश्रेष्ठ पेटिंग बनाई थीं। पिकासो 75 की उम्र के बाद भी कला संसार में अपनी धाक जमाए हुए थे और जार्ज बर्नार्ड शॉ 90 साल की उम्र होने पर भी नाटक लिखने में लगे हुए थे।


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