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सफल व्यावहारिक जीवन कैसा हो

गुरु ग्रंथ साहिब के प्रथम प्रकाश पर्व (1 सितंबर )पर विशेष गुरु ग्रंथ साहिब एक ऐसा ग्रंथ है, जिसकी दार्शनिक अवधारणाएं आज के समय के लिए अत्यंत व्यावहारिक हैं और सफल जीवन की ओर ले जाती हैं.. गुरु ग्रंथ साहिब भारतीय दर्शन एवं विचार परंपरा का चिंतन है। पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी द्वारा संपादित और बाद में दसवें गुरु गोविंद सि

By Edited By: Published: Thu, 28 Aug 2014 01:45 PM (IST)Updated: Thu, 28 Aug 2014 02:35 PM (IST)
सफल व्यावहारिक जीवन कैसा हो
सफल व्यावहारिक जीवन कैसा हो

गुरु ग्रंथ साहिब के प्रथम प्रकाश पर्व (1 सितंबर )पर विशेष
गुरु ग्रंथ साहिब एक ऐसा ग्रंथ है, जिसकी दार्शनिक अवधारणाएं आज के समय के लिए अत्यंत व्यावहारिक हैं और सफल जीवन की ओर ले जाती हैं..
गुरु ग्रंथ साहिब भारतीय दर्शन एवं विचार परंपरा का चिंतन है। पांचवें गुरु श्री अर्जुन देव जी द्वारा संपादित और बाद में दसवें गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा पुनर्संपादित इस अद्भुत ग्रंथ में सिख गुरुओं, भक्त कवियों, दार्शनिकों की वाणी दर्ज है। इसमें विभिन्न दार्शनिक सिद्धांत एवं उनका निचोड़ मिलता है,
परंतु यहां सामाजिक-आर्थिक पक्ष की भी अलग और विशिष्ट स्थापनाएं मिलती हैं। ये स्थापनाएं सहज, स्वाभाविक एवं खुशहाल जीवन जीने की युक्ति सुझाती हैं।
संसार के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण
अधिकांश दार्शनिक अवधारणाओं में संसार अथवा सृष्टि को नश्वर, मिथ्या और क्षणभंगुर माना गया है, परंतु 'गुरु ग्रंथ साहिब' में संसार को नश्वर, कूड़ (मिथ्या) एवं क्षणभंगुर मानने के बावजूद भी 'सचे तेरे खंड, सचे ब्रहमंड। सचे तेरे लोअ सचे आकार।' कहकर सृष्टि अथवा संसार को सत्य भी माना गया है। गुरु नानक देव
जी संसार को ईश्वर का घर मानते हैं और उस 'अकाल पुरख' (ईश्वर) को इसमें निवास करने वाला बताते हैं।
आर्थिक उन्नति आवश्यक
संसार में रहते हुए अपनी भौतिक जरूरतें पूरी करने के लिए अर्थ-उपार्जन को गुरुग्रंथ साहिब
में उचित व श्रेष्ठ बताया गया है। इसीलिए कार्य करके जीविका कमाने को सर्वश्रेष्ठ प्राप्ति माना गया है। गुरु अर्जुन देव तो गुरु ग्रंथ में स्पष्ट कहते
हैं कि खाते-पीते, खेलते-पहनते हुए भी मुक्ति या 'मोक्ष' प्राप्त किया जा सकता है। इसमें मनुष्य की आर्थिक उन्नति को सामाजिक उन्नति का
आधार माना गया है।
स्तरीय जीवन जीने का अधिकार
गुरु ग्रंथ साहिब में स्तरीय और खुशहाल जीवन गुजारने को मनुष्य का बुनियादी हक माना गया है। इसीलिए गुरुग्रंथ साहिब में 'देग तेग फतहि'
का सिद्धांत स्थापित हुआ है। 'देग' (भोजन वाला बर्तन) मनुष्य की आर्थिक एवं भौतिक जरूरतों
का प्रतीक है, जिसे 'फतहि' (जीतने यानी प्राप्त) करने की कामना की गई है।
गृहस्थ जीवन की श्रेष्ठता
गुरुग्रंथ साहिब में गृहस्थ जीवन को सर्वोतम धर्म कहा गया है। आर्थिक उन्नति एवं स्तरीय जीवन जीने जैसे लक्ष्य गृहस्थ जीवन में रहकर ही प्राप्त
किए जा सकते हैं। गुरु नानक देव जी स्पष्ट कहते हैं कि सबसे उत्तम गृहस्थी है।
मानवीय अधिकारों की बात
इस ग्रंथ में समस्त मानवीय अधिकारों को मनुष्य के लिए अनिवार्य मानने की व्यापक चर्चा की गई है। गुरु नानक देव जी मानवीय अधिकारों के
हनन को सबसे बड़ा पाप मानते हैं।
स्त्री-पुरुष समानता
गुरु ग्रंथ साहिब में स्त्री और पुरुष के अधिकार समान माने गए हैं। गुरु नानक देव जी का कथन है कि जीवन के समस्त कार्य-व्यवहार का आधार
है नारी, अत: नारी बुरी कैसे हो सकती है।
इस प्रकार 'गुरु ग्रंथ साहिब' मात्र दार्शनिक चिंतन का संग्रह ही नहीं, बल्कि सहज और खुशहाल जीवन जीने की युक्ति भी है।
डॉ. राजेंद्र साहिल


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