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ईश्वर की सर्वोच्चता और परम सत्ता निर्विवाद है

ईश्वर की सर्वोच्चता और परम सत्ता निर्विवाद है। उसकी सत्ता सृष्टि की अकल्पनीय सुंदरता, विविधता और उपादेयता में प्रकट तो होती है, किंतु अवर्णनीय भी है। उसकी सारी रचनाएं श्रेष्ठ हैं। ईश्वर ने हर जीव को कुछ दिया है, उसके कर्र्मो और पात्रता के अनुसार दिया है। मनुष्य इसके बाद

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 09 Oct 2015 10:53 AM (IST)Updated: Fri, 09 Oct 2015 10:54 AM (IST)
ईश्वर की सर्वोच्चता और परम सत्ता निर्विवाद है
ईश्वर की सर्वोच्चता और परम सत्ता निर्विवाद है

ईश्वर की सर्वोच्चता और परम सत्ता निर्विवाद है। उसकी सत्ता सृष्टि की अकल्पनीय सुंदरता, विविधता और उपादेयता में प्रकट तो होती है, किंतु अवर्णनीय भी है। उसकी सारी रचनाएं श्रेष्ठ हैं। ईश्वर ने हर जीव को कुछ दिया है, उसके कर्र्मो और पात्रता के अनुसार दिया है। मनुष्य इसके बाद भी संतुष्ट नहीं है और ईश्वर की सत्ता और व्यवस्था में किसी न किसी भांति दखल देता रहता है। मनुष्य की सोच है कि वह इससे उत्तम परिस्थितियां उत्पन्न कर सकता है। उसने पहाड़, जंगल काट डाले, नदियों के रुख मोड़ दिए और वह खनिजों का दोहन कर रहा है। वातावरण पर नियंत्रण करना चाहता है और अपनी गढ़ी हुई परिभाषा के अनुरूप सुख प्राप्त करना चाहता है। यह परमात्मा के प्रति एक तरह का अविश्वास है। सृष्टि में जो कुछ है, प्रचुरता में है और जीव के उपभोग के लिए है।
सामान्य उपभोग से न तो फल, वनस्पतियां और खाद्यान्न समाप्त होने वाले हैं और न जल। वायु भी कभी चुकने वाली नहीं है। मनुष्य के अविवेक और अधीरता ने इन पर भी संकट खड़ा कर दिया है। मनुष्य अपने प्रारब्ध से अधिक पाना चाहता है-वह भी ईश्वरीय व्यवस्था को भंग कर के। वह कितना भी चातुर्य प्रदर्शित कर ले ईश्वर की उच्चता को नहीं पा सकता। इस कारण अंतत: दुखी होता है। एक बार एक कुशल मूर्तिकार ने अपने जैसी कई मूर्तियां बना लीं और उनमें छिप कर बैठ गया ताकि यमराज के दूत उसे लेने आएं तो पहचान न सकें। ऐसा ही हुआ। वक्त आने पर जब दूत आए तो उसे पहचान न सके और यमराज को जाकर सारी बात बताई। यमराज ने एक युक्ति बता कर अपने दूत पुन: भेजे। दूतों ने आकर कहा कि वाह तुम तो बड़े कुशल मूर्तिकार हो, किंतु एक गलती कर गए हो। मूर्तिकार का अहं जाग गया और वह तुरंत दहाड़ कर बोला कि मैं कोई गलती कर ही नहीं सकता। वास्तव में यह अहंकार ही उसकी सबसे बड़ी गलती थी, जिससे यमराज के दूतों ने उसे पहचान लिया। आज मनुष्य के साथ भी यही हो रहा है। अपने अहंकार के चलते वह अपने विध्वंस की ओर बढ़ रहा है। यदि पृथ्वी पर पेड़ों, पहाड़ों, नदियों की आवश्यकता न होती तो ईश्वर उनकी रचना क्यों करता।


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