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आंखों में उमंग, मन में तूफान और हृदय में परिवर्तन की ललक का नाम है-युवावस्था

आंखों में उमंग, मन में तूफान और हृदय में परिवर्तन की ललक का नाम है-युवावस्था। दुनिया का कोई भी आंदोलन और विचार युवाशक्ति के बिना सशक्त नहीं बन सकते। निश्चित तौर पर युवा भारत के लिए एक महान निधि हैं, लेकिन यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी है कि इतनी बड़ी

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 09 Feb 2016 11:16 AM (IST)Updated: Tue, 09 Feb 2016 11:19 AM (IST)
आंखों में उमंग, मन में तूफान और हृदय में परिवर्तन की ललक का नाम है-युवावस्था
आंखों में उमंग, मन में तूफान और हृदय में परिवर्तन की ललक का नाम है-युवावस्था

आंखों में उमंग, मन में तूफान और हृदय में परिवर्तन की ललक का नाम है-युवावस्था। दुनिया का कोई भी आंदोलन और विचार युवाशक्ति के बिना सशक्त नहीं बन सकते। निश्चित तौर पर युवा भारत के लिए एक महान निधि हैं, लेकिन यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी है कि इतनी बड़ी संख्या में उपस्थित युवा शक्ति का राष्ट्र निर्माण में प्रयोग कैसे किया जाए। खासतौर से ऐसे समय में जब हमारे युवा भटके हुए हैं। कोई समाजसेवी राष्ट्र के लिए आगे आता है तो वह उनके पीछे हो जाता है, लेकिन ज्यों ही परिदृश्य से गायब होते हैं, तमाम युवा भी गुम हो जाते हैं। कड़े शब्दों में कहें तो आज के अनेक युवा भेड़चाल के आदी बन चुके हैं। उसकी अपनी कोई राह नहीं है, उसका कोई आदर्श नहीं है।
इतिहास को टटोलने का समय भी उसके पास नहीं है। उसने विवेकानंद, भगत सिंह आदि महापुरुषों का नाम जरूर सुना है, लेकिन उनके विचारों व कार्यो से वह पूरी तरह अनजान है। भोग-विलासिता की चीजों को एकत्र करना आज के युवाओं के जीवन का मुख्य लक्ष्य बन गया है। इसके लिए उन्हें जो भी कीमत चुकानी पड़े उसे वे चुकाने को तैयार हैं या फिर कोई भी अनैतिक कार्य करना पड़े वे इससे हिचकिचाते नहीं हैं। वैसे सत्य हमेशा जीतता है, इसका भान उन्हें है, लेकिन इसके बावजूद वे असत्य की राह चुनते हैं, क्योंकि उनकी नजरों में सत्य की राह काफी कांटों भरी, लंबी व थका देने वाली होती है, जबकि उन्हें हर चीज तुरंत चाहिए और इसकी पूर्ति के लिए आज वे अपराध करने से भी नहीं चूक रहे हैं।
समाजविज्ञानी व मनोचिकित्सक कहते हैं कि वर्तमान में सामाजिक-आर्थिक विषमता बढ़ने से युवा निराश हैं इसलिए वे सही व गलत का निर्णय नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि इसके विपरीत सच्चाई यह है कि समाज में ऐसी विषमता हर वक्त में रही है, लेकिन तब के युवाओं ने परिस्थितियों का आकलन करके अपनी नई राह चुनी थी, जबकि आज के युवा विचारों से शून्य हैं। आज के अधिकांश युवा अपनी माता-पिता की सेवा करने से कतरा रहे हैं। ऐसे में उनसे राष्ट्र सेवा की उम्मीद कैसे की जा सकती है। युवाओं में राष्ट्रभक्ति और सामाजिक संस्कारों को हर हाल में जिंदा रखना होगा तभी हमारा देश समृद्धि के रास्ते पर बढ़ेगा।


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