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प्रत्येक जीव परमानंद की प्राप्ति चाहता है

प्रत्येक जीव परमानंद की प्राप्ति चाहता है। मन की बात और असीम सुख की अनुभूति परमानंद से व्यक्त की जा सकती है। असत् की पूर्ण विस्मृति परमानंद का कारण है। यह मायामय बुद्धि ही है जो नष्ट हो जाने वाले पदार्र्थो के प्रति मोहित है और उनके अभावों का स्मरण

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2015 11:13 AM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2015 11:15 AM (IST)
प्रत्येक जीव परमानंद की प्राप्ति चाहता है
प्रत्येक जीव परमानंद की प्राप्ति चाहता है

प्रत्येक जीव परमानंद की प्राप्ति चाहता है। मन की बात और असीम सुख की अनुभूति परमानंद से व्यक्त की जा सकती है। असत् की पूर्ण विस्मृति परमानंद का कारण है। यह मायामय बुद्धि ही है जो नष्ट हो जाने वाले पदार्र्थो के प्रति मोहित है और उनके अभावों का स्मरण करके मन को गहरे दुख में डाल देती है। नष्ट हो जाने वाले सभी पदार्थ और वस्तुएं वस्तुत: असत हैं। इनके प्रति मोह की अनुभूति ही दुख का कारण है। शरीर, स्त्री, पुत्र, धन, घर, मित्र, परिवार, माता-पिता, संबंधी, प्रभुता, हानि-लाभ, यश-अपयश आदि सभी असत् (असत्य या नाशवान) हैं। असत्य की अनुभूतियों का विस्मरण करना परमानंद की ओर ले जाने वाला है। यह तभी संभव है जब जीवात्मा संपूर्णता से सत्य (सत्) का सतत् स्मरण करे।
सत का कभी अभाव नहीं होता। वह अविनाशी है। इस स्थिति में आत्मा, सनातन-शक्ति (परमात्मा) और सद्-धर्म ही सत् है। विस्मरण के लिए स्मरण का सुदृढ़ अवलंब चाहिए। ऐसा सुदृढ़ स्तंभ केवल सत् का अवलंब है। इसलिए असत् वस्तुओं का विस्मरण कर (मोह हटाकर) मनुष्य को पूर्ण मनोयोग से सत् वस्तुओं व भावों का स्मरण करना चाहिए। यही बुद्धिमत्ता और परम-आनंद प्राप्त करने का सरल उपाय है। मौजूदा संदर्भ में सुख और आनंद को समझना आवश्यक है। अनेक लोग सुख को आनंद का पर्यायवाची मानते हैं, जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। सुख में भौतिक साधनों और विलासितापूर्ण वस्तुओं का विशेष रूप से समावेश होता है। जैसे आप रेल में एसी क्लास में सफर कर रहे हैं, गर्मी से दूर हैं, शोर-शराबे से दूर हैं। वाश रूम साफ-सुथरा है। लोग स्वयं में मशगूल हैं। यहां तक तो बात ठीक है, लेकिन विलासितापूर्ण या भौतिक साधनों की उपलब्धता के बावजूद अगर आपके दिमाग में कोई तनाव या चिंता घर कर रही रही है तो फिर ये भौतिक सुख काम न आएंगे। वहीं आनंद की मनोदशा में भले ही भौतिक संसाधनों या साधनों की उपलब्धता न हो, लेकिन आपके मन-मस्तिष्क में बेचैनी नहीं होती। आप शांति का अनुभव करते हैं। आपका मन नकारात्मक भावों से दूर रहता है। आपको सब संगीतमय और लयबद्ध नजर आता है। यह शांतिमय मनोदशा आनंद की प्रतीक है। सुख में भौतिक साधनों की विशेष रूप से प्रबलता रहती है, जबकि आनंद में शांतिपूर्ण मनोदशा को विशेष रूप से समाहित किया जाता है।


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