किसी से कोई अपेक्षा न रखें
इस पृथ्वी पर अगर जीवन है, अगर जीवन का संचार हो रहा है, प्राण ऊर्जा का संचार हो रहा है, तो उसका मूल केंद्र सूर्य है। सूर्य के तेज से यह शरीर कार्यरत है, सूर्य के तेज से यह सारी प्रकृति कार्यरत है, पर सूर्य को न कुछ देने का भाव है, न लेने का कुछ भाव है, न उसको हमसे कुछ अभीष्ट इच्छाएं हैं, न अपेक्षाएं हैं, फिर भी वह दे रहा है। हमार
इस पृथ्वी पर अगर जीवन है, अगर जीवन का संचार हो रहा है, प्राण ऊर्जा का संचार हो रहा है, तो उसका मूल केंद्र सूर्य है। सूर्य के तेज से यह शरीर कार्यरत है, सूर्य के तेज से यह सारी प्रकृति कार्यरत है, पर सूर्य को न कुछ देने का भाव है, न लेने का कुछ भाव है, न उसको हमसे कुछ अभीष्ट इच्छाएं हैं, न अपेक्षाएं हैं, फिर भी वह दे रहा है। हमारे जीवन का केंद्रबिंदु, इस जगत का केंद्रबिंदु, जिससे हम प्राणशक्ति पा रहे हैं, वह बगैर देने के भाव से है, वह बगैर किसी अपेक्षा के भाव से है। न ले कुछ, न दे कुछ, परंतु आप अपने जीवन को देखें तो आपका जीवन अमावस्या की काली रात्रि जैसा हो गया है जिसमें सिर्फ घनघोर अंधकार है अपेक्षाओं का।
किसी से कुछ चाहते हैं, किसी से कुछ मांगते हैं। किसी से आप तमन्नाएं करते हैं, कोई आपसे तमन्नाएं करता है। किसी से आप अपेक्षाएं करते हैं, कोई आपसे अपेक्षा कर रहा है और इन्हीं अपेक्षाओं के जाल में बंधा हुआ आदमी का मन विश्रामपूर्ण कभी नहीं हो सकता। ऋषि कहते हैं कि सूर्य की भांति दैदीप्यमान बनो। सूर्य की भांति तेजस्वी बनो। सूर्य की भांति दाता बनो, पर देने के भाव के बगैर।
ऋषियों ने सूर्य को देव कहकर उसे नमस्कार भी किया है। पतंजलि योग शास्त्र में एक प्राणायाम है, जिसका नाम सूर्य से जोड़ा गया है, एक आसन है, जिसका नाम सूर्य ही सूर्य नमस्कार है। सूर्य दे रहा है, लेकिन अगर सीधे सूर्य से यह पूछें कि आपने हमें कुछ दिया? तो वह कहेंगे नहीं। सच कहूं, कोई किसी को कुछ दे भी नहीं सकता। ऐसा विचार रखना किसी भी व्यक्ति के लिए ठीक नहीं। यह सब हमारी अपनी ही मन की धारणाएं होती हैं, हमारे अपने ही मन की कुछ व्याख्याएं होती हैं, जिससे हम अपने आपको संतुष्ट कर लेते हैं। बात कुछ भी नहीं है, आप सुबह घर में जगे और बाहर उठकर आए।
आपके घर के सदस्यों ने आपको नमस्कार कह दिया तो आप खुश हो गए। नमस्कार नहीं कहते तो आप व्यथित होते और कहते कि 'इनको अक्ल नहीं है, संस्कार नहीं रह गए, प्रणाम नहीं करते हैं।' आदर-सम्मान नहीं करते हैं, तो हम कुढ़ते हैं। कहने वाला बेमन से भी नमस्कार कह सकता है, तो आप प्रसन्न हो जाते हैं। अगर आप शांत मन से संतुष्ट जीवन जीना चाहते हैं तो बस देने का भाव रखें। किसी से कोई अपेक्षा न रखें।