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जीवन में आस्था, समर्पण और त्याग के भाव ही हमें परमात्मा से जोड़ते हैं

जब मनुष्य की सभी उम्मीदें खत्म हो जाती हैं वह स्वयं को लाचार महसूस करता है तब उसे परमात्मा की शक्ति पर भरोसा करना चाहिए।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 11 Apr 2017 10:35 AM (IST)Updated: Tue, 11 Apr 2017 10:40 AM (IST)
जीवन में आस्था, समर्पण और त्याग के भाव ही हमें परमात्मा से जोड़ते हैं
जीवन में आस्था, समर्पण और त्याग के भाव ही हमें परमात्मा से जोड़ते हैं

जब मनुष्य की सभी उम्मीदें खत्म हो जाती हैं और वह स्वयं को लाचार महसूस करता है तब उसे परमात्मा की

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शक्ति पर भरोसा करना चाहिए। परमात्मा की शक्ति से मनुष्य किसी भी क्षण चमत्कार कर सकता है। जो व्यक्ति प्रत्येक क्षण परमात्मा की शक्ति पर विश्वास बनाए रखते हैं वह कभी परेशान-हैरान नहीं रहते, बल्कि ऐसे व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में करने की क्षमता रखते हैं।

परमात्मा की शक्ति असीम होती है और इसके बल पर मनुष्य कुछ भी प्राप्त कर सकता है। परमात्मा की शक्ति से मनुष्य असंभव लगने वाले कार्य को भी बेहद सरलता से हल कर सकता है। जब मनुष्य के मन में परमात्मा के प्रति भक्ति भाव जाग्रत होता है तो उसे कुछ भी अपने विपरीत लगता ही नहीं। ऐसे व्यक्ति प्रत्येक परिस्थिति का आनंद लेते हैं और यह मानते हैं कि प्रतिकूल परिस्थितियां भी उनके अनुकूल ही हैं। ऐसे में मनुष्य को लगता है कि प्रत्येक कार्य परमात्मा की इच्छा से ही हुआ है, इसलिए विपरीत परिस्थितियां भी जरूर उनके हित में होंगी। ऐसे व्यक्ति अपना सर्वस्व परमात्मा के ऊपर छोड़ देते हैं और उनके जीवन में बुरा समय भी आता है तो वे उसका मुकाबला धैर्य और साहस से करते हैं। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो भी मेरी शरण में आता है वह भवसागर पार कर लेता है। मनुष्य को हमेशा यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि उसके विकास का आधार आलस्य नहीं, बल्कि विषम परिस्थितियां हैं।

इसलिए उसे विपरीत समय में संताप करने के बजाय डटकर उसका मुकाबला करना चाहिए। मनुष्य अपने धैर्य, साहस और बुद्धि के पराक्रम से किसी भी तरह की परिस्थिति का सामना कर सकता है। जो व्यक्ति स्वयं अपनी मदद करते हैं उन्हें ही परमात्मा की शक्ति प्राप्त होती है। इसलिए मनुष्य को अपने जीवन के हर मोड़ पर सीखने का भाव और कठिन परिस्थिति को जीवन में आगे बढ़ने के अवसर के रूप में देखना चाहिए। मनुष्य को अपने जीवन के प्रत्येक क्षण में परमात्मा की शक्ति की आवश्यकता होती है। इसलिए उसे हमेशा परमात्मा को याद करते रहना चाहिए। फिर चाहे वह सुखमय जीवन जी रहा हो या फिर उसका जीवन संकट में हो। कवि कहता

है कि दुख में हर कोई परमात्मा को याद करता है, लेकिन सुख में नहीं। यदि मनुष्य सुख में भी परमात्मा को याद करे तो उसे दुख आएगा ही नहीं। जीवन में आस्था, समर्पण और त्याग के भाव ही हमें परमात्मा से जोड़ते हैं।


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