जीवन में आत्मविश्वास बेहद अहम है
यह है आत्मविश्वास की शक्ति। यह भी सच है यह शक्ति सत्यपथ पर चलने से ही मिलती है।
जीवन में आत्मविश्वास बेहद अहम है। आत्म शब्द आत्मा की शक्ति को परिलक्षित करता है। यह आत्म ही आत्मा का पर्याय है। आत्मा की शक्ति के निकलते ही जीवन समाप्त हो जाता है। प्राय: व्यक्ति में अधीरता बहुत जल्द व्याप्त होती है जो जीवंतता के मार्ग में बाधक है, जबकि धैर्य सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है। आत्मविश्वास सबसे पहले हमें विवेक प्रदान करता है।
आत्म के साथ जो विश्वास शब्द का मेल है, वह हमें चुनौतियों से जूझने की ताकत देता है और लक्ष्य के पथ पर चलने का मार्ग प्रशस्त करता है। विश्वास है तो बड़ा साधारण शब्द, लेकिन इसका जो मानक है, वह ब्रह्म से लेकर मानव में देखा जाता है। अगर हमारा अपने पर विश्वास न रहे तो हम अपने परिवार के साथ-साथ समाज के लिए भी निष्प्रयोज्य हो जाएंगे। कमजोर आत्मबल प्राय: घातक बन जाता है और डिप्रेशन जैसी बीमारी से ग्रस्त कर देता है। त्रेता युग में भगवान राम अपने इसी आत्मबल से रावण जैसे शक्तिशाली शख्स को पराजित करते हैं। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि आत्मबल के लिए भौतिक साधनों का भंडार जरूरी नहीं। आत्मविश्वास हमारी पूंजी है। यह पूंजी कभी न खत्म होने वाली पूंजी है। एक बार बैंक की पूंजी, परिवार की पूंजी और समाज की पूंजी खत्म हो सकती है, लेकिन जिसके पास यह पूंजी संचित है, वह पराजित नहीं सकता है।
एक बार महात्मा गांधी से मिलने के लिए इंग्लैंड की तत्कालीन महारानी विक्टोरिया ने उन्हें इंग्लैंड आने के लिए
आमंत्रित किया। गांधीजी घुटने तक की धोती पहनते थे। इंग्लैंड में महारानी के अधिकारियों ने उनसे कहा आप इस वेशभूषा में नहीं मिल सकते। आप कोट-पैंट और टाई पहन कर ही महारानी से मिल सकते हैं। आपके लिए यह व्यवस्था पहले से की गई है। इन कपड़ों को पहन लीजिए। गांधीजी ने अंग्रेजों का कपड़ा पहनने से इन्कार कर दिया और कहा कि हमारे भारत को आप लोगों ने गरीब और खोखला कर दिया है। हमारे देश के लोग गरीबी में रहते हैं। मैं जो पहनता हूं उसे नहीं बदल सकता। मैं इसी वेशभूषा में महारानी से मिलूंगा। यदि मेरी बात स्वीकार नहीं हो तो वापस चला जाऊंगा। जब यह जानकारी महारानी विक्टोरिया को दी गई तो अंतत: महारानी को गांधीजी की शर्त माननी पड़ी। यह है आत्मविश्वास की शक्ति। यह भी सच है यह शक्ति सत्यपथ
पर चलने से ही मिलती है।