ईश्वर की सेवा है सफाई करना
गांधी जी सफाई पसंद व्यक्ति थे। उनका मानना था कि साफ-सफाई करना ईश्वर की सेवा है। वे घर में तो सफाई रखते ही थे, सार्वजनिक सफाई का भी उन्हें काफी ख्याल रहता था। वे अंदर और बाहर दोनों को निर्मल रखने के पक्षधर थे। ऐसा ही एक प्रेरक प्रसंग गांधी जयंती के अवसर पर.. बात उन दिन्
गांधी जी सफाई पसंद व्यक्ति थे। उनका मानना था कि साफ-सफाई करना ईश्वर की सेवा है। वे घर में तो सफाई रखते ही थे, सार्वजनिक सफाई का भी उन्हें काफी ख्याल रहता था। वे अंदर और बाहर दोनों को निर्मल रखने के पक्षधर थे। ऐसा ही एक प्रेरक प्रसंग गांधी जयंती के अवसर पर..
बात उन दिनों की है, जब गांधी जी यरवदा जेल में थे। जेल के अधिकारियों से उन्होंने अपने लिए एक खास काम मांग रखा था। वे कपड़े सीते थे। कर्मयोगी तो वे थे ही, लगन और निष्ठा से यह काम करते और अपने स्थान को साफ-सुथरा रखते थे।
एक दिन जेल का एक प्रमुख अधिकारी उनसे मिलने आया। गांधी जी जहां बैठकर सूत कातते थे, वहां तक वह अधिकारी जूते पहन कर चला आया। उसने गांधी जी से हाल-चाल पूछा। गांधी जी ने प्रसन्नता से उत्तर दिया। कुछ देर रुक कर वह अधिकारी चला गया। उस अधिकारी के जाते ही, गांधी जी उठकर कमरे से बाहर गए। एक बाल्टी पानी भरकर ले आए। उन्होंने जेल के फर्श को खूब धोया और साफ-सुथरा कर दिया। एक व्यक्ति की नजर इस पर पड़ी, तो उसने पूछा, 'बापू! यह आप क्या कर रहे हैं?' गांधी जी ने कहा, 'यह मेरे उठने-बैठने का स्थान है, उसे साफ भी तो मैं ही रखूंगा ना?' उस व्यक्ति ने कहा - जब जेल अधिकारी आए थे, तो आपको उनसे कहना चाहिए था कि आप जूते बाहर ही उतार दें। आपने उनसे कहा क्यों नहीं?'
गांधी जी ने कहा, 'नहीं, यह तो हर एक के समझने की बात है कि साफ-सफाई जीवन में कितनी जरूरी है। उन्हें स्वयं ही समझना चाहिए था कि जहां कोई रहता हो, वहां जूते उतार कर अंदर जाना चाहिए। फिर भी जेल के अधिकारी के प्रति मुझे आभार मानना चाहिए कि उन्होंने मुझे सफाई करने का अवसर दिया। सफाई करना तो भगवान की सेवा है। यह कहकर गांधी जी अपने हाथ धोने लगे।