बच्चों की ऊर्जा शक्ति को विकसित करने की आवश्यकता है
नेपोलियन बोनापार्ट के जीवन को समङों। उसने अपनी ऊर्जा शक्ति स्वयं विकसित की। जब वह ऐसा कर सकता है तो आप क्यों नहीं? इसलिए आप अपने नाम के पहले जितने भी अलंकार, पद व पुरस्कारों के नाम लगाना चाहें, लगा लें, ताकि आपको यह याद रहे कि आप इतने अलंकारों
नेपोलियन बोनापार्ट के जीवन को समझें। उसने अपनी ऊर्जा शक्ति स्वयं विकसित की। जब वह ऐसा कर सकता है तो आप क्यों नहीं? इसलिए आप अपने नाम के पहले जितने भी अलंकार, पद व पुरस्कारों के नाम लगाना चाहें, लगा लें, ताकि आपको यह याद रहे कि आप इतने अलंकारों से युक्त नाम के अकेले मालिक हैं। यदि हम किसी व्यक्ति के बारे में यह कहना आरंभ कर दें कि अमुक व्यक्ति बड़ा ही चरित्रवान जीवन जीता है, तो ऐसा सुनने के बाद उस व्यक्ति के मन में भी ऐसी भावना का विकास होने लगेगा। इसी भावना को आगे बढ़ाने की जरूरत है। छत्रपति शिवाजी की माता जीजाबाई ने यदि अपने बेटे को समझाया नहीं होता, तो शिवाजी इतने महान नहीं बन पाते।
आजकल अधिकांश माता-पिता व शिक्षक तो बच्चों को सिर्फ डांटते ही रहते हैं। इस डांट-डपट को सुनते-सुनते बच्चों की मानसिक ग्रंथि सिकुड़ती जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि बच्चे का जीवन कुंठाग्रस्त हो जाता है और बच्चा भी यही मानने लगता है कि उसका जीवन निर्थक है और वह अब जीवन में कभी भी सफल नहीं हो पाएगा। उसने ऐसा इसलिए सोचा, क्योंकि उसे घर और स्कूल में एक ही चीज सुनने को मिलती है कि ‘तुम यह हो, वह हो, तुमसे यह नहीं होगा, तुमसे वह नहीं होगा।’ फिर बच्चा भी यही मानने लग जाता है कि जब सभी लोग यही बोल रहे हैं, तो फिर यही सही होगा।
बच्चों की ऊर्जा शक्ति को विकसित करने की आवश्यकता है, न कि उसे क्षीण करने की। हमारी संस्कृति में जो इतने सारे आदर सूचक शब्दों का प्रयोग किया गया है, क्या वह सब निर्थक हैं? नहीं। इन शब्दों के प्रयोग से पहले काफी विचार विमर्श किया गया है। हम आदरणीय शब्दों का प्रयोग अक्सर करते हैं, जैसे आदरणीय अध्यक्ष महोदय आदि। तो क्या केवल मंत्री जी या अध्यक्ष जी कहने से काम नहीं चलेगा? शायद नहीं, इसीलिए हमने उन शब्दों को आदरणीय के साथ जोड़कर और ऊपर उठा दिया। क्या हम अपने बच्चों के नाम के साथ जी नहीं लगा सकते? क्या हम ऐसा नहीं कह सकते राकेश जी, आप जरा यहां आएंगे या आप जरा मेरा यह काम कर देंगे? यदि हम अपने बच्चों को ऐसे नामों से संबोधित करेंगे, तो उनके मन में भी आएगा कि मुझें भी सम्मान दिया जा रहा है। जरा सोचें कि यदि हम किसी बच्चे का नाम लंगटू रख लें और उसे इसी नाम से पुकारें, तो क्या उसे बुरा नहीं लगेगा?