प्रशंसा एक उपहार है, जिसका परिणाम सदैव आनंदमय होता है
दुनिया में कितने ही ऐसे विख्यात लेखक, वैज्ञानिक और कलाकार हैं जिन्हें अपने प्रियजनों या मित्र से केवल प्रोत्साहन मिला तो उन्होंने ऊंचाइयों को छुआ।
दुनिया में कितने ही ऐसे विख्यात लेखक, वैज्ञानिक और कलाकार हैं जिन्हें अपने प्रियजनों या मित्र से केवल प्रोत्साहन मिला तो उन्होंने ऊंचाइयों को छुआ। यदि प्रोत्साहन के वे शब्द नहीं कहे गए होते तो सफलता संदिग्ध होती। प्रशंसा प्राप्त करने की अभिलाषा होना मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। इसलिए हमें अपने करीबियों की छोटी-छोटी उपलब्धियों पर भी उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। इसी तरह अगर कोई व्यक्ति कुछ नहीं कर पा रहा है तो भी उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। हम अन्य वस्तुओं से भी दूसरों की सहायता कर सकते हैं, लेकिन यह उतना महत्व नहीं रखती, जितनी किसी को प्रोत्साहित करना।
एक व्यक्ति मायूस-उदास अवस्था में बैठा था। एक बुजुर्ग व्यक्ति उसके पास आए और उससे उसकी उदासी का कारण पूछा। उसने बताया कि उसे कारोबार में काफी नुकसान हो गया है। बुजुर्ग व्यक्ति ने अपनी जेब से चेकबुक निकाली और एक चेक पर हस्ताक्षर करके उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, तुम इसमें जितनी राशि चाहो उतनी भर लो। वह व्यक्ति, बुजुर्ग को देखता ही रह गया। उसने वह चेक लिया और वहां से चला गया। हालांकि उसने उस चेक में न कोई राशि लिखी और न ही उसे बैंक में जमा किया। वह यही सोच रहा था कि जब एक अनजान व्यक्ति उस पर इतना भरोसा कर सकता है तो उसे खुद पर यकीन क्यों नहीं? बस फिर क्या था, वह बढ़े आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प के साथ फिर से कारोबार करने लगा। कुछ समय में ही न केवल उसने अपने नुकसान की भरपाई कर ली, बल्कि अपने कारोबार को एक नई बुलंदी पर पहुंचा दिया।
अब उसे फिर से उस बुजुर्ग की याद आई तो वह वही चेक लेकर उसी बुजुर्ग के स्थान पर पहुंचा। उसे वहां बुजुर्ग व्यक्ति नहीं मिला तो उसने आसपास उनके बारे में पूछताछ की। उसे मालूम चला कि बुजुर्ग स्वर्ग सिधार गए हैं, लेकिन वह कोई अमीर व्यक्ति नहीं थे। केवल उसे प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने वह चेक दिया था। असल में जब हम किसी को प्रोत्साहित करते हैं तो उसका आत्मसम्मान बढ़ जाता है, जिसकी वजह से अमुक व्यक्ति असंभव लगने वाले कार्य को भी संभव कर देता है। प्रशंसा एक उपहार है, जिसका परिणाम सदैव आनंदमय होता है।