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उपलब्धि कठोर परिश्रम से मिलती है

उपलब्धि कठोर परिश्रम से मिलती है। परिश्रम प्रथम चरण का प्रयास ही है। प्रयास किए बगैर परिणाम की अपेक्षा करना प्रारब्ध की परिभाषा में आता है। स्वयं को बचाते हुए दूसरे की संवेदना न जान पाना एक कमजोरी है। अन्याय का सामना न करना प्रारब्ध की ओर मोड़ता है। प्राय:

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 28 Jul 2015 10:46 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jul 2015 10:48 AM (IST)
उपलब्धि कठोर परिश्रम से मिलती है
उपलब्धि कठोर परिश्रम से मिलती है

उपलब्धि कठोर परिश्रम से मिलती है। परिश्रम प्रथम चरण का प्रयास ही है। प्रयास किए बगैर परिणाम की अपेक्षा करना प्रारब्ध की परिभाषा में आता है। स्वयं को बचाते हुए दूसरे की संवेदना न जान पाना एक कमजोरी है। अन्याय का सामना न करना प्रारब्ध की ओर मोड़ता है। प्राय: किसी की उपलब्धि या सफलता को प्रारब्ध नहीं कहा जा सकता। परिश्रम का फल उपलब्धि के रूप में सामने आता है।
प्रारब्ध कोई नियम या संविधान नहीं है। निरंतर पुरुषार्थ करने पर भी यदि मनोवांछित लक्ष्य नहीं मिलता तो अदृश्य शक्ति उससे बड़ा फल देना चाहती है। कभी विलंब से प्राप्त फल छोटा नहीं होता। परिश्रम के अनुरूप परिणाम अनुकूल समय पर ही मिल पाता है। स्वयं के विषय में प्रारब्ध का संदर्भ मात्र संतोष के लिए लाया जाता है। न मिल पाने पर अंगूर खट्टे लगते हैं। योग्यता के जनक कभी प्रारब्ध के भंवर में नहीं जाना चाहते। प्रयास करने वाले एक न एक दिन जीतते ही हैं। किसी कारण किसी के साथ हुए अन्याय को भुलाने के लिए प्रारब्ध का प्रयोग किया जाता है। सहयोग करने में भगीरथ प्रयास की आवश्यकता रहती है। भगीरथ के अटूट प्रयत्न ने उन्हें भागीरथी बना दिया। कीर्ति पाने वाले अचानक सामने आते हैं। बिना काम के बड़ा नाम नहीं होता। त्याग करने वाले से प्रारब्ध डरता है। देने वाले देवता होते हैं।
यदि मूर्तियां प्रसाद का आहार करने लगें तो मंदिरों में भीड़ कम हो जाएगी। न लेने वाला ही देवता बनता है। न रुकने वाला कछुआ समय की तरह चलते-चलते एक क्षण लक्ष्य पा जाता है। अस्वस्थ रोगी का जीवन बचाने के लिए चिकित्सक दूसरा भगवान बन जाता है। अथक प्रयास के बाद भी किसी की सांस टूट जाना प्रारब्ध है। इसमें केवल ईश्वर की चलती है। प्रारब्ध का चिंतन पुरुषार्थ का क्षरण करता है। इसलिए सकारात्मक प्रयास करना ही जीवन है। कहने का आशय यह है कि प्रारब्ध अपनी जगह है, लेकिन हम पुरुषार्थ कर अपने जीवन की राह को आसान कर देते हैं। सफलता के पथ पर अग्रसर हो सकते हैं। दुनिया के प्राय: सभी महापुरुषों का जीवन-दर्शन पुरुषार्थ पर ही आधारित रहा है। पुरुषार्थ के जरिये ही उन्होंने कठिन से कठिन समस्याओं का सामना कर सफलता प्राप्त की। हमें भी इन महापुरुषों से प्रेरणा लेनी चाहिए।


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