ब्रजमंडल की प्राण है यमुना
किसी समय श्रीकृष्ण ने यमुना को कालिया नाग के विष से उबारा था। आज फिर उसे प्रदूषण से विषहीन करने की आवश्यकता है। यमुना जयंती (16 अप्रैल) पर विशेष..
उत्तराखंड में यमुनोत्री से निकलकर ब्रजमंडल की नीलमणिमय मेखला (करधनी) की भांति सुशोभित होते हुए तीर्थराज प्रयाग तक प्रवाहित होने वाली यमुना ब्रज-रसिकों का प्राण है। ब्रज-मंडल में यमुना श्रीराधा-माधव युगल के रसमय केलि-विलास की दृष्टा ही नहीं, अपितु सृष्टा भी हैं। यह अपने मनोरम तट पर सघन वृक्षावलियों एवं कमनीय कुंजों द्वारा प्रिया-प्रियतम के मधुर लीला-विलास में सहायक हैं।
पुराणों के अनुसार, यमुना सूर्यदेव की पुत्री तथा यमराज व शनिदेव की बहन हैं। वैष्णव मान्यतानुसार, यमुना भगवान श्रीकृष्ण की पटरानी हैं। गर्ग संहिता में वर्णन है कि गोलोक में श्रीकृष्ण ने राधा से भूतल पर अवतरित होने का आग्रह किया। जहां वृंदावन, यमुना व गोवर्द्धन न हो, वहां जाकर सुखानुभूति न होने की बात राधा ने कही। तब श्रीकृष्ण ने सबको ब्रज-मंडल में अवतरित कराया। भूलोक में कलिंद पर्वत से निकलने के कारण यमुना का नाम कालिंदी पड़ा। हमारी सनातन संस्कृति में यमुना देवी के रूप में पूजित हैं। श्रद्धालु भक्तों द्वारा वासंतिक नवरात्र की छठ (चैत्र शुक्ल षष्ठी) को यमुनाजी का जन्मोत्सव यमुना-जयंती के रूप में मनाया जाता है।
यमुना का जल श्यामवर्ण है। वामन पुराण में प्रसंग है कि दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में शिवजी की उपेक्षा एवं तिरस्कार से आहत सती के योगाग्नि द्वारा भस्मीभूत हो जाने पर व्यग्र शिवजी यमुना-जल में कूद पड़े। इससे यमुना कृष्णवर्णा (कृष्णा) हो गईं। ब्रज-रसिकों की धारणा है कि श्रीराधा-माधव के जल-विहार से श्रीराधा के तन में लिप्त कस्तूरी घुलकर यमुना-जल को श्यामल कर रही है। यह भी मान्यता है कि श्यामसुंदर के यमुना में अवगाहन करने से उनका श्यामवर्ण हो गईं।
हमारी सनातन संस्कृति एवं आस्था की प्रतीक जीवनदायिनी यमुना के प्रदूषण की समस्या निरंतर विकराल रूप धारण करती जा रही है। प्रयासों-आंदोलनों के बाद भी यमुना आज भी मैली हैं। याद रहे, अतीत में भगवान श्रीकृष्ण ने कालिय नाग का उद्धार कर विषाक्त यमुना को विषहीन किया था।
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