द्रौपदी का चरित्र क्यों रहा है अनोखा, द्रौपदी का अपने पांच पतियों से कैसा था संबंध
विवाह के समय वेद व्यास ने भी द्रौपदी को यह वरदान दिया कि जब भी वह एक भाई से दूसरे भाई के पास पत्नी बनकर जाएंगी, तब वह अपना कौमार्य फिर से हासिल कर लेंगी।
द्रौपदी का चरित्र अनोखा है। पूरी दुनिया के इतिहास में उस जैसी दूसरी कोई स्त्री नहीं हुई। महाभारत में द्रौपदी के साथ जितना अन्याय होता दिखता है, उतना अन्याय इस महाकथा में किसी अन्य स्त्री के साथ नहीं हुआ। द्रौपदी संपूर्ण नारी थी।
महाभारत की कहनी कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध पर आधारित है। कौरवों का अपने चचेरे भाइयों के प्रति ईर्ष्या रखना, धन-संपत्ति का लालच, मानसिक भटकाव, प्रतिशोध की भावना और अपनी ताकत पर घमंड इस भयंकर युद्ध के कारण बने। महाभारत की कहानी में ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसकी कल्पना कर पाना भी मुमकिन नहीं था। इस श्रेणी में द्रौपदी का पांच भाइयों की पत्नी बनना मुख्य तौर पर देखा जा सकता है। यूं तो आज भी किसी महिला का एक से ज्यादा पुरुषों के साथ संबंध होना सामाजिक तौर पर तुच्छ कर्म ही माना जाता है लेकिन पहले तो हालात और भी बुरे थे। पुरुषों को तो एक से अधिक महिलाओं के साथ संबंध रखने या विवाह करने की इजाजत थी परंतु किसी स्त्री का इस विषय में ऐसा सोचना गुनाह था। ऐसे हालातों में द्रौपदी का पांच पतियों की पत्नी बनकर रहना, अपने आप में हैरान करने वाली बात थी। द्रौपदी ने जब पांचों भाइयों की पत्नी बनने की शर्त कई वचनों के साथ पूरी की, जिनमें सबसे पहली शर्त थी कि वह एक समय पर एक ही भाई की पत्नी बनकर रहेंगी। यह सीमावधि एक साल की होगी और इस दौरान अन्य भाइयों का उनसे कोई वास्ता नहीं होगा।
विवाह के समय वेद व्यास ने भी द्रौपदी को यह वरदान दिया कि जब भी वह एक भाई से दूसरे भाई के पास पत्नी बनकर जाएंगी, तब वह अपना कौमार्य फिर से हासिल कर लेंगी। इसके अलावा भी द्रौपदी को कुछ वरदान हासिल थे जिनका उल्लेख महाभारत की कथा में मिलता है। महाभारत में इस घटना उल्लेख है कि दुःशासन ने अपने अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण करवाया था। लेकिन श्रीकृष्ण ने स्वयं प्रकट होकर द्रौपदी के सम्मान की रक्षा की। इस घटना से जुड़ी एक और कहानी का उल्लेख मिलता है जो ऋषि दुर्वासा द्वारा द्रौपदी को प्राप्त वरदान से संबंधित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस वरदान की वजह से ही द्रौपदी का चीरहरण होने से बचा था।
शिव पुराण के अनुसार एक बार भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले ऋषि दुर्वासा नदी में स्नान कर रहे थे, नदी के तेज बहाव और अनियंत्रित लहरों की वजह से दुर्वासा के कपड़े बह गए। ऋषि दुर्वासा को परेशान देख, उसी नदी के तट पर बैठी द्रौपदी ने अपने वस्त्र को फाड़कर कुछ टुकड़ा दुर्वासा ऋषि को दे दिया। द्रौपदी के इस व्यवहार से दुर्वासा ऋषि अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें यह वरदान दिया कि जब भी संकट के समय उन्हें वस्त्रों की आवश्यकता होगी तब उनके वस्त्र अनंत (जिसका कोई अंत ना हो) हो जाएंगे। दुर्वासा ऋषि द्वारा दिए गए इसी वरदान की वजह से भरी सभा में जब दु:शासन ने द्रौपदी का चीर हरण करने का प्रयास किया तब द्रौपदी की साड़ी के कई टुकड़े हो जाने की वजह से उनके सम्मान की रक्षा हुई।द्रौपदी का पांच पतियों से कैसा था संबंध?
संभवत: द्रौपदी भारत की वह प्रथम महिला है जिसके पांच पति थे? या वह पांच पुरुषों के साथ रमण करती थी? द्रौपदी की कथा-व्यथा से बहुत कम लोग ही परिचित होंगे। क्या उस काल का समाज बहुपतित्व वाली स्त्री को एक्सेप्ट कर सकता था? क्या कोई विवाद खड़ा नहीं हुआ? या कि समाज में बहुपतित्व और बहुपत्नी वाली व्यवस्था थी? लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह कि क्या आज के लोग यह समझते हैं कि द्रौपदी ने विवाह तो सिर्फ अर्जुन से ही किया था, तो क्या उसका रिश्ता सभी के साथ नहीं था? क्या द्रौपदी सिर्फ अर्जुन को ही प्यार करती थी?
द्रौपदी के पांच नाम : द्रौपदी को 'द्रौपदी' इसलिए कहा जाता था कि वे राजा द्रुपद की पुत्री थीं। उन्हें 'पांचाली' इसलिए कहा जाता था कि राजा द्रुपद पांचाल देश के राजा थे। उनका एक नाम 'कृष्णा' भी था, क्योंकि वे भगवान कृष्ण की सखी थीं। उनका एक नाम 'याज्ञनी' भी था, क्योंकि वे यज्ञ करने के बाद पैदा हुई थीं। और अंत में उनका एक नाम 'सेरंध्री' भी था। 'सेरंध्री' का अर्थ होता है पति के अलावा अन्य पुरुषों के साथ रमण करने वाली। लेकिन यह सच नहीं है..अज्ञातवास के दौरान द्रौपदी ने राजा विराट के यहां उनकी पत्नी सुदेष्णा के सौंदर्य की देखरेख करने वाली के रूप में काम किया इसलिए उनका नाम सेरंध्री था।सेरंध्री के रूप, गुण तथा सौन्दर्य से प्रभावित होकर महारानी सुदेष्णा ने उसे अपनी मुख्य दासी के रूप में नियुक्त कर लिया था। कुछ लोग कहते हैं कि वे राजा विराय के राज्य में सुगंध और इत्र बेचती थी इसलिए उसे सेरंध्री कहा जाता था।
उल्लेखनीय है कि 12 वर्ष के वनवास के बाद पांडवों ने अज्ञातवास में मत्स्य देश के राजा विराट के राज्य में समय व्यतीत किया था। पांचों ने अपनी योग्यता अनुसार राजा के यहां भिन्न भिन्न कार्य को संभाला था। माना जाता है कि जिस समय द्रौपदी का स्वयंवर हो रहा था, उस समय कुंती सहित पांचों पांडव लाक्षागृह की आग से बचकर भाग गए थे और अपना स्वप्रेरित वनवास काट रहे थे। इस दौरान पांचों पांडव एक कुम्हार के घर में रहा करते थे और भिक्षाटन के माध्यम से अपना जीवन-यापन करते थे। ऐसे में भिक्षाटन के दौरान उन्हें द्रौपदी स्वयंवर में मिली।
एक दिन की बात है, पांडव और ब्राह्मण लोग आश्रम में बैठे थे। उसी समय द्रौपदी और सत्यभामा भी आपस में मिलकर एक जगह बैठी थीं। दोनों ही आपस में बातें करने लगीं। सत्यभामा ने द्रौपदी से पूछा- आप बताएं कि आप पांडवों के साथ कैसा आचरण करती हैं?
उचित प्रश्न जानकर तब द्रौपदी बोली- मेरा मेरे पांचों पतियों से बहुत अच्छे संबंध हैं सुनो मैं अहंकार और काम, क्रोध को छोड़कर बड़ी ही सावधानी से सब पांडवों की स्त्रियों सहित सेवा करती हूं। मैं ईर्ष्या से दूर रहती हूं। मन को काबू में रखकर कटु भाषण से दूर रहती हूं। किसी के भी समक्ष असभ्यता से खड़ी नहीं होती हूं। बुरी बातें नहीं करती हूं और बुरी जगह पर नहीं बैठती। पति के अभिप्राय को पूर्ण संकेत समझकर अनुसरण करती हूं। देवता, मनुष्य, सजा-धजा या रूपवान कैसा ही पुरुष हो, मेरा मन पांडवों के सिवाय कहीं नहीं जाता। उनके स्नान किए बिना मैं स्नान नहीं करती। उनके बैठे बिना स्वयं नहीं बैठती। जब-जब मेरे पति घर में आते हैं, मैं घर साफ रखती हूं। समय पर भोजन कराती हूं। सदा सावधान रहती हूं। घर में गुप्त रूप से अनाज हमेशा रखती हूं। मैं दरवाजे के बाहर जाकर खड़ी नहीं होती हूं। पतिदेव के बिना अकेले रहना मुझे पसंद नहीं। साथ ही सास ने मुझे जो धर्म बताए हैं, मैं सभी का पालन करती हूं। सदा धर्म की शरण में रहती हूं।
द्रौपदी के पांच पुत्र थे : द्रौपदी ने भी एक-एक वर्ष के अंतराल से पांचों पांडव के एक-एक पुत्र को जन्म दिया।युधिष्ठिर के पुत्र का नाम प्रतिविन्ध्य। भीमसेन से उत्पन्न पुत्र का नाम सुतसोम। अर्जुन के पुत्र का नाम श्रुतकर्मा। नकुल के पुत्र का नाम शतानीक। सहदेव के पुत्र का नाम श्रुतसेन रखा गया।
युधिष्ठिर की दूसरी पत्नी देविका थी। देविका से धौधेय नाम का पुत्र जन्मा। अर्जुन की द्रौपदी के अलावा सुभद्रा, उलूपी और चित्रांगदा नामक तीन और पत्नियां थीं। सुभद्रा से अभिमन्यु, उलूपी से इरावत, चित्रांगदा से वभ्रुवाहन नामक पुत्रों का जन्म हुआ। द्रौपदी के अलावा भीम की हिडिम्बा और बलंधरा नामक दो और पत्नियां थीं। हिडिम्बा से घटोत्कच । द्रौपदी के अलावा नकुल की एक और पत्नी थी जिसका नाम करेणुमती था। करेणुमती से निरमित्र नामक पुत्र का जन्म हुआ। सहदेव की दूसरी पत्नी का नाम विजया था जिससे इनका सुहोत्र नामक पुत्र जन्मा।