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क्यों खास है हिंदू कैलेंडर का प्रथम माह चैत्र और अंतिम फाल्गुन

हिंदू कैलेंडर का प्रथम माह है चैत्र और अंतिम है फाल्गुन। दोनों ही माह वसंत ऋतु में आते हैं। ईसाई माह के अनुसार यह मार्च में आता है। चैत्र की प्रतिपदा तिथि से ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है। भारत में चैत्र संक्रांति को नया वर्ष के रूप में

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 19 Mar 2015 12:13 PM (IST)Updated: Thu, 19 Mar 2015 12:31 PM (IST)
क्यों खास है हिंदू कैलेंडर का प्रथम माह चैत्र और अंतिम फाल्गुन

हिंदू कैलेंडर का प्रथम माह है चैत्र और अंतिम है फाल्गुन। दोनों ही माह वसंत ऋतु में आते हैं। ईसाई माह के अनुसार यह मार्च में आता है। चैत्र की प्रतिपदा तिथि से ही हिन्दू नववर्ष की शुरुआत होती है। भारत में चैत्र संक्रांति को नया वर्ष के रूप में मनाया जाता है।

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ईरान में इस तिथि को नौरोज यानी नया वर्ष मनाया जाता है। आंध्र में यह पर्व उगादि नाम से मनाया जाता है। उगादि का अर्थ होता है युग का प्रारंभ, अथवा ब्रहमा की सृष्टि रचना का पहला दिन। इस प्रतिपदा तिथि को ही

जम्मू- कश्मीर में नवरेह, पंजाब में बैसाखी, महाराष्ट्र में गुडीपड़वा, सिंध में चेतीचंड, केरल में 'विशु', असम में रोंगली बिहू आदि के रूप में मनाया जाता है। विक्रम संवत की चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से न केवल नवरात्रि में

दुर्गा व्रत-पूजन का आरंभ होता है, बल्कि राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव का जन्म भी हुआ था। प्राचीन काल में दुनिया भर में मार्च को ही वर्ष का पहला महीना माना जाता था। आज भी बही-खाते का नवीनीकरण और मंगल कार्य की शुरुआत मार्च में ही होती है। ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है। मार्च से ही सूर्य मास के अनुसार मेष राशि की शुरुआत भी मानी गई है।

चैत्र माह की शुरुआत अमावस्या के पश्चात चन्द्रमा जब मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में प्रकट होकर प्रतिदिन एक-एक कला बढ़ता हुआ 15वें दिन चित्रा नक्षत्र में पूर्णता को प्राप्त करता है, तब वह मास चित्रा नक्षत्र के कारण चैत्र कहलाता है। इसे संवत्सर कहते हैं जिसका अर्थ है ऐसा विशेषकर जिसमें बारह माह होते हैं।

शुक्ल तृतीयों को उमा, शिव तथा अग्नि का पूजन करना चाहिए। शुक्ल तृतीया को दिन मत्स्य जयन्ती मनानी चाहिए, क्योंकि यह मन्वादि तिथि है। चतुर्थी को गणेश जी का पूजन करना चाहिए। पंचमी को लक्ष्मी

पूजन तथा नागों का पूजन। षष्ठी को स्वामी कार्तिकेय की पूजा व सप्तमी को सूर्यपूजन। अष्टमी को मां दुर्गा का पूजन और इस दिन ब्रहमपुत्र नदी में स्नान करने का विशेष महत्व भी है। नवमी को भद्रकाली की पूजा करनी

चाहिए। दशमी को धर्मराज की पूजा। शुक्ल एकादशी को कृष्ण भगवान का दोलोत्सव अर्थात कृष्ण पत्नी रुक्मिणी का पूजन।

द्वादशी को दमनकोत्सव मनाया जाता है। त्रयोदशी को कामदेव की पूजा। चतुर्दशी को नृसिंहदोलोत्सव, एकवीर, भैरव तथा शिव की पूजा। अंत में पूर्णिमा को मन्वादि, हनुमान जयंती तथा वैशाख स्नानारम्भ किया जाता

है। वैसे वायु पुराणादि के अनुसार कार्तिक की चौदस के दिन हनुमान जयंती अधिक प्रचलित है। चैत्र मास की पूर्णिमा को चैते पूनम भी कहा जाता है।

ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत चैत्र मास से होती है, सो चैत्र मास की नवमी को हरेला मनाया जाता है। इसी प्रकार से वर्षा ऋतु की शुरुआत श्रावण माह से होती है, इसलिए श्रावण में हरेला मनाया जाता है।


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