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आज भी प्रासंगिक हैं रामचरित मानस के रचयिता, तुलसी

तुलसी ने आमजन को ध्यान में रखकर लोकभाषा अवधी में रामचरितमानस की रचना की। तुलसीदास और ‘मानस’ आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। आज तुलसी जयंती पर प्रो. श्रीनिवास पांडेय का विश्लेषण...

By Monika minalEdited By: Published: Wed, 10 Aug 2016 04:29 PM (IST)Updated: Wed, 10 Aug 2016 04:44 PM (IST)
आज भी प्रासंगिक हैं रामचरित मानस के रचयिता, तुलसी

महाकवि तुलसीदास कालोतीर्ण रचनाकार हैं। यद्यपि उन्होंने एक काल विशेष में अपने ग्रंथों की रचना की है लेकिन उसमें कुछ ऐसे कालजयी तत्व एवं शाश्वत संदेश निहित हैं, जो आज भी प्रासंगिक हैं। कालजयी रचना की मनीषा ऐसे संदेश देती है जिसका मूल्य भविष्य के लिए भी अत्यंत उपयोगी होता है। इस संदर्भ में

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तुलसीदास के प्रसिद्ध ग्रंथ श्रीरामचरित मानस की पंक्तियां विचारणीय हैं। वर्तमान विश्व में अनेक संकट हैं लेकिन सबसे भयावह एंव विनाशकारी है ‘आतंकवाद एवं पर्यावरण प्रदूषण’। इन दोनों के संदर्भ में श्रीरामचरित मानस में अनेक स्थल अवलोकनीय हैं। श्रीरामचरित मानस में वर्णित ‘रामराज’ में पर्यावरण की संतुलित व्यवस्था है। सर्वत्र शीतल, मंद एवं सुगंध से पूरित वायु संचरणशील है। ‘रवि तप जेतनी काज’ अर्थात सूर्य उतना ही तपता था जितनी लोगों की आवश्यकता थी। न भयंकर गर्मी न भयंकर ठंडक। ‘मांगें वारिध देहि जल रामचंद्र के राज’ अर्थात रामराज्य में पर्यावरण इतना संतुलित था कि लोगों की आवश्यकता के अनुरूप वर्षा होती थी।

‘जेहि तरुतल प्रभु बैठहिं जायी।

करहिं कलप तरु तासु बड़ाई’।।

प्रभु श्रीराम में प्रकृति के प्रति ऐसी कृतज्ञता का भाव था कि वृक्ष की प्रशंसा कल्पवृक्ष की तरह करते थे। मानस में वर्णित जनक राज, सुग्रीव राज, अवध राज यहां तक कि राक्षस राज रावण के लंका राज में भी अनेक बाग-बगीचों का विस्तृत वर्णन मिलता है। इस संदर्भ में अशोक वाटिका समृद्ध उपवन विशेष रूप से उल्लेखनीय है जिसमें लगे हुए फूलों एवं फलों ने महावैरागी एवं भक्त प्रवर हनुमान के अंतर्मन में फलों को खाने की इच्छा जागृत की। सीता का पता लगाने के बाद लौटते हुए अंगद एवं उनके दल ने सुग्रीव के मधुवन के फलों का स्वाद चखा। वनों, वृक्षों, तालाबों (पंपा सरोवर) एवं पृथ्वी माता की प्रशंसा में अनेक पंक्तियां लिखी गई हैं। लंकेश्वर रावण आतंक एवं अत्याचार का प्रतीक पात्र है जिसके आतंक से सारा त्रैलोक्य त्रस्त है। तीनों लोकों के वैभव, धन, संपत्ति एवं सुंदरियों का वह बलात् अपहरण कर लेता है।

‘चलत दशानन डोलत अवनि’ अर्थात रावण के चलने से सारा संसार भय से कांपने लगता था।

‘रावण आवत सुनहु सपोहा। देवन्ह तकहि मेरु गिरि खोहा’।। अर्थात क्रोध में जब रावण चलता था तो जनता के

पूजनीय एवं रक्षक देवता पहाड़ की गुफाओं में छिप जाते थे। रावण का ऐसा भयानक आतंक था कि वह दिनदहाड़े राम की विवाहिता पत्नी सीता का अपहरण करता है। वह अपनी रक्षा के लिए पुकारती हैं परंतु कोई देवता, ऋषि, मुनि एवं मनुष्य उनकी रक्षा के लिए नहीं आता। उनकी रक्षा के लिए केवल गिद्ध योनि का पक्षी जटायु आता है। वह अपनी जान हथेली पर लेकर रावण से युद्ध करता है। अंतत: घायल होकर शहीद हो जाता है लेकिन गिद्ध राज जटायु का बलिदान आतंक के विनाश का प्रथम चरण सिद्ध होता है। वही राम को सीता के अपहरण की घटना एवं रावण के बारे में सटीक जानकारी देता है , जिसके सहारे भगवान श्रीराम आगे की यात्रा की तैयारी करते हैं। श्रीराम ने व्यक्तिगत सुख-सुविधाओं एवं लाभों से ऊपर उठकर निरपराध एवं निर्दोष मुनियों को पीड़ित करने वाले राक्षसों के विनाश का संकल्प लिया और अंतत: राक्षसों का समूल नाश किया। इस संदर्भ में रामचरित मानस की निम्न पंक्तियां अपना कालजयी महत्व रखती हैं :

निशिचर निकर सकल मुनि आए।

सुनि रघुबीर नयन जल छाए।। भगवान राम ने भुजा उठाकर राक्षसों के विनाश का संकल्प लिया था।

हरि नाम बिना नहीं बनता कोई काम : राधे राधे

(लेखक काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में वरिष्ठ आचार्य और पूर्व अध्यक्ष हैं)


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