जो इनकी उपासना करता है वह समस्त वांछित सिद्धियों को प्राप्त करता है
इस प्रकार इन आठों सखियों की जो महिमा जानकर इनकी उपासना करता है वह समस्त वांछित सिद्धियों को प्राप्त करता है।
आज जो कनक भवन अयोध्या में मौजूद है, वह कुछ साल पहले ही ओरछा के राजा के द्वारा बनवाया गया था। कहा जाता है कि लगभग चार हजार साल पहले भी यहां इसी नाम का मंदिर था। कनक भवन को भगवान राम का अंतपुर या सीता महल भी कहा जाता है। मंदिर में सीता-राम की संगमरमर की मूर्तियां स्थापित हैं। बड़ी मूर्तियों के आगे सीता-राम की छोटी मूर्तियां हैं, जो हजारों साल पुरानी बताई जाती है। कनक भवन में दूसरी मंजिल पर भगनाम राम की अंतपुरी है। वहीं एक कमरे में स्नान गृह और दूरसे में श्रृंगार गृह है।
त्रेता युग में महाराज दशरथ के घर विष्णु जी के अवतार भगवान श्री राम का जन्म हुआ था। श्रीराम को लोग उनके सुशासन, मर्यादित व्यवहार और सदाचार युक्त शासन के लिए याद करते हैं। यदि आप अयोध्या के कनक भवन मंदिर में जाए तो वहा एक शिलापट लगा है जिसपर लिखा है की सय्यद सालार गाजी ने असली कनक भवन मंदिर की एक एक पत्थर अलग करके उसमे जड़ित सभी सोना चंडी निकल लिया था और आज का वर्तमान मंदिर राजा विक्रमादित्य ने फिर से बनाया था।
कनक भवन की सखियाँ
श्री अयोध्या धाम में भक्तजन जब कनकभवन में दर्शनार्थ आते हैं, तो अधिकांश भक्तजन युगल सरकार के दर्शन कर कृतार्थ हो जाते हैं। किन्तु उन भक्तों में जो अत्यन्त अन्तरंग प्रेमी-सखी-भावना भावित हृदय होते हैं वे कनकभवन के ऊपर बने गुप्त शयनकुन्ज का भी दर्शन करने की इच्छा करते हैं परन्तु यह शयनालय सबको नहीं दिखाया जाता। किन्हीं कारणों से अब यह आम जनता के दर्शनों के लिए बन्द कर दिया गया है।
भावना से-इस शयनकुन्ज में नित्य प्रति रात्रि में पुजारी भगवान को शयन कराते हैं। दिव्य वस्त्रालंकारों से सुसज्जित मध्य में सुन्दर शय्या बिछी है। उसमें बीच के कुन्ज में शृंगार सामग्रियाँ रक्खी हैं। उसी कुुन्ज में शय्या पर भगवान शयन करते हैं। इस कुन्ज के चारों ओर आठ सखियों के कुंज हैं। श्री चारुशीलाजी, श्री क्षेमाजी, श्री हेमाजी, श्री वरारोहाजी, श्री लक्ष्मण जी, श्री सुलोचना जी, श्री पद्मगंधाजी, श्री सुभगाजी-इन आठ सखियों के प्राचीन चित्र बने हुए हैं। उन चित्रों की शोभा देखने ही योग्य है। अपनी अपनी सेवा में सभी सखियाँ तत्पर दिखाई देती हैं। सभी सखियाँ की भिन्न-भिन्न सेवाएँ हैं। उस सेवा के रहस्य सभी चित्रों के नीचे दोहों में लिखे हुए हैं।
इस प्रकार इन आठों सखियों की जो महिमा जानकर इनकी उपासना करता है वह समस्त वांछित सिद्धियों को प्राप्त करता है।
श्री सीताजी की सखियां
ऊपर ये आठों सखियां जो कही गई हैं, अखिल ब्रह्माण्डनायक प्रभु श्रीराम जी की सखियाँ कही जाती हैं। इनके अतिरिक्त आठ सखियाँ और हैं जो श्री सीताजी की अष्टसखी कही जाती हैं उनमें श्री चन्द्र कला जी, श्री प्रसादजी, श्री विमलाजी, मदन कला जी, श्री विश्व मोहिनी, श्री उर्मिला, श्री चम्पाकला, श्री रूपकला जी हैं। इन श्री सीताजी की सखियों को अत्यन्त अन्तरंग कहा जाता है। ये श्री किशोरी जी की अंगजा हैं। ये प्रिया प्रियतम की सख्यता में लवलीन रहती हैं। आनन्द-विभोर की लीलाओं में, मान आदि में तथा उत्सवों में निमग्न रहते हुए दम्पति को विविध प्रकार से सुख प्रदान करती हैं।