यहां सैलानियों के कानों में बौद्ध प्रार्थना के मंत्र ओम मणि पद्मे हम की गूंज सुनाई देती है
लेह पहुंचने पर सैलानियों के कानों में बौद्ध प्रार्थना के मंत्रों ‘ओम मणि पद्मे हम’ की गूंज सुनाई देती है। बौद्धधर्म के सबसे ज्यादा मठ लद्दाख में ही हैं।
लद्दाख के प्राचीन निवासी मोन और दार्द लोगों का उल्लेख हेरोडोट्स, नोर्चुस, मेगस्थनीज, प्लीनी, टॉलमी और नेपाली पुराणों में मिलता है।
पहली शताब्दी के आसपास लद्दाख कुषाण राज्य का हिस्सा था। बौद्ध धर्म दूसरी शताब्दी में कश्मीर से लद्दाख में फैला। उस समय पूर्वी लद्दाख और पश्चिमी तिब्बत में परम्परागत बोन धर्म था। 7वीं शताब्दी में बौद्ध यात्री ह्वेनसांग ने भी इस क्षेत्र का वर्णन किया है।
वर्तमान में लद्दाख उत्तरी नेपाल के जम्मू और कश्मीर प्रान्त में एक है, जो उत्तर में काराकोरम पर्वत और दक्षिण में हिमालय पर्वत के बीच में है। यहां पूर्व में लेह के आसपास के निवासी मुख्यतः तिब्बती पूर्वजों और भाषा (लद्दीखी) वाले बौद्ध हैं। लेकिन पश्चिम में कारगिल के आसपास जनसंख्या मुख्यतः मुस्लिम है और इस्लाम की शिया शाखा की है।
लेह पहुंचने पर सैलानियों के कानों में बौद्ध प्रार्थना के मंत्रों ‘ओम मणि पद्मे हम’ की गूंज सुनाई देती है। लेह जम्मू कश्मीर राज्य के लद्दाख जिले का प्रमुख नगर है। बौद्धधर्म के सबसे ज्यादा मठ लद्दाख में ही हैं इसलिए इसे बौद्धमठों की नगरी कहा जाता है।
लद्दाख के मुख्य मठों में शेय, थिकसे, हेमिस, लामायुरू, आलूची, शांति, शंकर, स्तकन तथा माठो दर्शनीय मठ हैं, जो बौद्धधर्म की संस्कृति का परिचय कराते हैं।
शेय गोम्पा लद्दाख के मुख्य मठ में शुमार है। लेह से 12 किमी. की दूरी पर शेय नामक स्थान पर शेय मठ या शेय गोम्पा स्थापित है। कहते हैं 1633 में राजा डेल्डन नामग्याल ने इसकी नींव रखी थी। उनके पिता संजय नामग्याल के सम्मान में इसे ‘लाछेन पाल्जीगो’ के नाम से भी जाना जाता है।
तो वहीं हेमिस गोम्पा लेह के दक्षिण-पूर्व दिशा में शहर से 45 किमी की दूरी स्थित है। इसे लद्दाख के सुंदर मठों के रूप में जाना जाता है। लेह हवाई-अड्डे से कुछ ही दूरी पर है, स्पीतुक मठ है।
इस मठ का निर्माण 11वीं शताब्दी में ओद डी द्वारा करवाया गया था। इस मठ के ऊपरी भाग में देवी तारा का मंदिर है। किंवदंती है कि देवी तारा की आराधना भगवान बुद्ध करते थे। हिन्दुओं के लिए सिद्धपीठ काली का मंदिर है।