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शक्ति व उपासना का पर्व नवरात्र में इसलिए होती है नौ देवी के शक्ति की पूजा

इसलिए नवरात्र में सृष्टि के मूल 'कन्याÓ पूजन का विधान है। प्रथम दिन दो वर्ष तक की कन्या की उपासना का उल्लेख किया गया है। इस उम्र के बच्चे सांसारिक भावों से पूरी तरह अछूते होते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 17 Mar 2017 12:56 PM (IST)Updated: Tue, 28 Mar 2017 01:32 PM (IST)
शक्ति व उपासना का पर्व नवरात्र में इसलिए होती है नौ देवी के शक्ति की पूजा
शक्ति व उपासना का पर्व नवरात्र में इसलिए होती है नौ देवी के शक्ति की पूजा
शक्ति केवल मूर्ति ही नहीं है, यह हमारे भीतर का अपरिहार्य तत्व भी है। इसके बिना असंभव है जीवन का अस्तित्व और आधारहीन  है विज्ञान। बांसुरी के लघुतम स्वर में भी शक्ति की उपस्थिति है और असाध्य वीणा के तारों में भी। कला, जीव और विज्ञान तीनों के मूल में जो शक्ति है उसी की उपासना का पर्व है नवरात्र। उपासना के ये नौ दिन शुद्धीकरण से विजयश्री तक पहुंचाते हैं- 
श्वेत मूल तत्व है। जैसे दही, छाछ या मक्खन बनने से पहले दूध या फिर जैसे कोरा कागज। जिस पर अभी बहुत कुछ लिखा जाना शेष है। ऐसा ही होता है नन्हें शिशुओं का अबोध मन। जिस पर अनुभव की कलम और संघर्ष की स्याही से जीवन की इबारत लिखी जानी है। तमाम रंगों के मूल में यही श्वेत तत्व है।
मान्यता है कि शैलपुत्री का रंग भी ऐसा ही श्वेत है। नवरात्र के प्रथम दिन इन्हीं की उपासना होती है। इन दिनों में कन्या पूजन का विधान है। वास्तव में कन्या ही सृष्टि का आधार है। मिथकों के अनुसार महिषासुर जब ब्रह्मा की तपस्या कर रहे थे तो उन्होंने यह वरदान मांगा कि कोई भी आदमी उन्हें मार न सके। मां दुर्गा का स्वरूप उसी भ्रम का प्रतिवाद है जिसमें लगता है कि सभी शक्तियां केवल पुरुष में निहीत हैं। जबकि शक्ति का मूल आधार तो स्त्री है। स्त्री ही शक्ति है और स्त्री ही सृष्टि है। इसलिए नवरात्र में सृष्टि के मूल 'कन्याÓ पूजन का विधान है। प्रथम दिन दो वर्ष तक की कन्या की उपासना का उल्लेख किया गया है। इस उम्र के बच्चे सांसारिक भावों से पूरी तरह अछूते होते हैं। नवरात्र के प्रथम दिन की देवी भी इसी रूप में हैं। श्वेत, धवल। जैसे बालकों का मन होता है निश्छल।
इसी सफेद रंग को आभाचक्र का मूलाधार भी कहा गया है। प्रत्येक मनुष्य के शरीर में सकारात्मक और नकारात्मक रंगों की उपस्थिति होती है। जिनके मिल जाने पर आभा चक्र पूरा होता है। इसमें ऊर्जा और उल्लास का लाल रंग भी है और सौम्यता एवं प्यार का गुलाबी रंग भी।  यह एक किस्म की थैरेपी भी है। जब कोई व्यक्ति सभी रंगों को उचित मात्रा में संयोजित कर लेता है तो उसके शरीर की आभा एक इंद्रधनुष बनाती है। जबकि रंगों का असंतुलित अनुपात किसी भी रंग की पूरी लहर नहीं बनने देता। यह टूटी-फूटी रेखाएं भावनात्मक कमजोरी की ओर इशारा करती है, जो फैसला लेने में बाधक बनती हैं। 
कमजोरी पर जीत ही है शक्ति। अन्य देवियां जहां पुष्प पर विराजमान दिखती हैं वहीं देवी दुर्गा 'सिंहÓ की सवारी करती हैं। सिंह शक्ति का प्रतीक है। जब शक्ति आपके नियंत्रण में होगी तो कोई भी फैसला मुश्किल नहीं होगा। नवरात्र उपवास और साधना के माध्यम से तन और मन को शुद्ध करने का अच्छा अवसर है। तीन-तीन दिवस के तीन टुकड़े मन-कर्म और विचारों की मंथन प्रक्रिया है।
नवरात्र के प्रथम तीन दिन आराध्य देवियों की उपस्थिति जहां श्वेत रंग और आरोही क्रम में बढ़ते उसके शेड्स के अनुसार होती है वहीं नवरात्र के मध्य में बुद्धि, विवेक और वात्सल्य के वे सौम्य रंग आ जाते हैं जिनसे जीवन का समुचित संचालन किया जा सके। नवरात्र के तीसरे हिस्से अर्थात सप्तमी, अष्टमी और नवमीं पर रंगों की उथल-पुथल महसूस होती है। यहां सभी रंग अपने चरम पर होते हैं।
सप्तम कालरात्रि हैं, तो अष्टम महागौरी और नवमीं मां सिद्धीदात्री। मान्यता है कि महिषासुर के अत्याचारों से तंग आकर जब देवताओं ने त्रिदेव से सहायता मांगी तो वे बहुत क्रोधित हुए। ब्रह्मा, विष्णु, महेश के आक्रोश से जो ऊर्जा उत्पन हुई उसने एक स्त्री का रूप लिया। निजी जीवन में भी महसूस कीजिए आक्रोश से उपजी ऊर्जा अनियंत्रित होती है। आक्रोश में लिए गए फैसले बहुत बार गलत सिद्ध हो जाते हैं। इसलिए महापुरुषों ने भी कहा है कि कोई भी फैसला क्रोध में नहीं लेना चाहिए। आक्रोश से उत्पन्न इस देवी में ऊर्जा की अथाह लहरें विद्यमान थीं, किंतु अब भी वह शक्ति नहीं बन पाई थी। उसे शक्तिसंपन्न बनाने के लिए सभी देवताओं ने अपनी-अपनी विशेषताओं का अनुदान किया। त्रिशूल, धनुष-बाण आदि अस्त्रों के साथ ही देवी को जल से पूर्ण कलश, वायु, पुष्प और सूर्य का तेज भी प्रदान किया गया। यह वैसा ही था जैसे आक्रोश से उत्पन्न ऊर्जा के बाद ठंडे दिमाग से सोचकर कोई निर्णय लिया जाए। शब्दों की ही तरह कुछ रंग भी बहुअर्थी होते हैं। ऐसा ही है लाल रंग। यह रंग जहां उल्लास और ऊर्जा का प्रतीक है वहीं इसकी अधिकता हिंसक प्रवृत्तियों की भी अभिव्यक्ति है। इसे बुद्धि एवं विवेक से नियंत्रित किया जा सकता है। मां की लाल चुनरी पर सुनहरे रंग का गोटा या किनारी लगाई जाती है। शुभ अनुष्ठानों में कलाई पर बांधे जाने वाले लाल रंग के कलावे में भी पीले रंग की हल्की उपस्थिति रहती है। यह ऊर्जा के साथ विवेक का सम्मिश्रण है जो विजयश्री तक पहुंचाता है। उल्लास और ऊर्जा के लाल रंग से भरे इन खुशनुमा दिनों में पवित्रता, शु़द्धता, सौम्यता, विवेक और ऐश्वर्य के रंगों का सम्मिश्रण कर बनाएं ऊर्जा का इंद्रधनुष ताकि विजयश्री आपके कदम चूमें। 
[ योगिता ]

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