स्वयं का संविधान
गणतंत्र दिवस हमें एकजुट होने की प्रेरणा देता है। क्यों न हम दूसरों से जुड़कर शक्तिशाली बन जाएं और अपने देश के लिए काम कर सकें...
गणतंत्र दिवस हमें एकजुट होने की प्रेरणा देता है। क्यों न हम दूसरों से जुड़कर शक्तिशाली बन जाएं और अपने देश के लिए काम कर सकें...
शक्ति का व्यावहारिक रहस्य जुड़ाव में ही निहित होता है, चाहे वह एक व्यक्ति की शक्ति हो अथवा व्यक्तियों के समूह की। गण एक वैदिक शब्द है, जिसका अर्थ ही है समूह। जब तक हम व्यक्तिगत स्तर पर, राष्ट्रीय स्तर पर और वैश्विक स्तर पर सामूहिकता की भावना प्रदर्शित नहीं करेंगे, तब तक हमारा विकास नहीं होगा।
हमारे गणतंत्र में विकास की ताकत सामूहिकता या एक-दूसरे से जुड़ने में ही है। हमारे लोक जीवन की एक कहावत है,
'एक और एक ग्यारह होते हैं।Ó गणित की दृष्टि से यह तब तक सही नहीं होगा, जब तक हम एक के सामने एक का आंकड़ा लिखकर उसे न पढ़ें। अन्यथा एक और एक का जोड़ दो ही होता है, ग्यारह नहीं। लेकिन जीवन में यह ग्यारह होता है। इस कहावत के मर्म को समझने की जरूरत है। जब दो लोग एक-दूसरे से जुड़ते हैं, तो उन दोनों की अपनी-अपनी दुनिया भी जुड़ती है। लड़के और लड़की के विवाह का होना इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। गणित में दो, लेकिन व्यवहार में दो सौ। इन दोनों की भी तो अपनी-अपनी दुनिया होती है। इस प्रकार उस जुड़ाव के योगफल का आंकड़ा हम निकाल नहीं सकते। यही इसका सबसे बड़ा रहस्य है और सबसे बड़ी शक्ति भी।
हमारे लोकजीवन की एक अन्य कहावत
है, 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता।Ó
यानी अकेला आदमी इतना शक्तिशाली
नहीं होता। भारतीय योग की प्रक्रिया भी
मूलत: हमारे अंदर की विभिन्न क्षमताओं
को एक-दूसरे के साथ जोड़कर उनका
भरपूर उपयोग करने की प्रक्रिया ही है। सूर्य की किरणों को यदि एक लेंस के निश्चित बिंदु पर केंद्रित कर दिया जाए, तो उसकी ऊर्जा अपने नीचे रखे कागज के टुकड़े को जला देगी, अन्यथा उस कागज पर सूर्य की किरणों का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा।
दरअसल, गणतंत्र अपने राजनीतिक
स्वरूप में तो एक राजव्यवस्था है, लेकिन
कार्य पद्धति के रूप में यह सभी लोगों तथा राज्यों के जुड़ने का ही विधान है। इस दिन सभी रजवाड़ों ने संविधान को स्वीकार करके एक साथ इस देश के लिए काम करने का वचन दिया था। सबने यह माना था कि अलग-अलग रहकर काम चल तो सकता है, लेकिन कोई बड़ा काम नहीं हो सकता। न ही हम शक्तिशाली हो सकते हैं।
ऐसे में जो शक्तिशाली होगा, वह हमारा दमन करेगा। क्यों न दूसरों से जुड़कर खुद ही शक्तिशाली बन जाएं, ताकि स्वाभिमान के साथ देश की सेवा कर सकें। यह व्यवस्था हमारे पूर्वजों की इस महान और उदार भावना के बिल्कुल अनुकूल थी कि 'सारी पृथ्वी हमारा कुटुंब है।Ó
यदि हर व्यक्ति अपने लिए इस युग की
आवश्यकताओं के अनुरूप अपने जीवन का संविधान बना ले, तो वह एक आदर्श व्यक्ति बन सकता है :
ईश्वर को न्यायकारी मानकर हम उसके
अनुशासन को अपने जीवन में उतारेंगे।
शरीर को ईश्वर का घर मानकर
आत्मसंयम और नियमितता द्वारा आरोग्य की रक्षा करेंगे।
मन को कुविचारों और दुर्भावनाओं से
बचाए रखेंगे।
मर्यादाओं का पालन करेंगे, नागरिक
कर्तव्यों का पालन करेंगे और समाजनिष्ठ
बने रहेंगे।
समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और
बहादुरी को जीवन का अविच्छिन्न अंग
मानेंगे।
चारों ओर मधुरता, स्वच्छता, सादगी एवं
सज्जनता का वातावरण बनाएंगे।
अनीति से प्राप्त सफलता की अपेक्षा नीति पर चलते हुए असफलता का वरण करेंगे।
लोगों को उनकी सफलता, योग्यता या
धन-दौलत से नहीं, बल्कि उनके अच्छे
विचारों और सत्कर्र्मों से आंकेेंगे।
दूसरों के साथ वह व्यवहार नहींकरेंगे, जो हमें अपने लिए पसंद नहीं।
प्रत्येक व्यक्ति के लिए समानता का भाव रखेंगे, किसी भी तरह का भेदभाव नहीं बरतेंगे।
परंपराओं की अपेक्षा विवेक को अधिक
महत्व देंगे।
अपने राष्ट्र को उन्नति की ओर ले जाने में योगदान करेंगे।
साभार : देवसंस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार