इस बार हर सोमवार होगा खास, कई विशेष संयोग बनेंगे
शिव आराधना के 29 दिनी श्रावण मास का पहला सोमवार 3 अगस्त को आया । ज्योतिर्विदें के अनुसार इस बार आने वाले सभी चार सोमवार खास होंगे। इन पर विशेष संयोग बनेंगे और शिवालयों में आस्था का उल्लास उमड़ेगा। शिवालयों में महादेव का आकर्षक श्रृंगार किया गया। जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक
शिव आराधना के 29 दिनी श्रावण मास का पहला सोमवार 3 अगस्त को आया । ज्योतिर्विदें के अनुसार इस बार आने वाले सभी चार सोमवार खास होंगे। इन पर विशेष संयोग बनेंगे और शिवालयों में आस्था का उल्लास उमड़ेगा। शिवालयों में महादेव का आकर्षक श्रृंगार किया गया। जलाभिषेक और दुग्धाभिषेक के लिए भक्तों की कतारें लगी। हर-हर महादेव के जयघोष गूंजें। पहले श्रावण सोमवार पर गणेश चतुर्थी और शतभिषा नक्षत्र रहेगा। इसके चलते पिता शिव और पुत्र गणेश के साथ पूजन का कल्याणकारी अवसर रहेगा।
10 अगस्त को दूसरे सोमवार पर एकादशी का व्रत शुभता प्रदान करेगा। तीसरे सोमवार 17 अगस्त पर हरियाली तीज होने के साथ स्वर्ण गौरी पूजन का विधान भी है।
अंतिम सोमवार को 24 अगस्त पर श्रावण शुक्ल नवमी और ज्येष्ठ नक्षत्र का संयोग बनेगा।
श्रावण माह का पहला सोमवार गजकेशरी महासंयोग में होगा। इस बार श्रावण के पहले सोमवार (3 अगस्त 2015 )के दिन गुरु सिंह राशि में व चन्द्रमा कुंभ राशि में दोनों ठीक आमने-सामने होंगे ।इस कारण गजकेशरी महासंयोग बनेगा । गुरु धर्म व सिद्धि साधना को देते हैं वहीं चन्द्रमा मन को स्थिरता देने वाला होता है जिसे भगवान शंकर अपने मस्तक पर धारण करते हैं।
प्रतिदिन शिवलिंग पर जल अर्पित करें
वैसे तो पूरे महीने में शिवजी की विशेष पूजा की जाती है। यदि कोई व्यक्ति शिवजी की कृपा प्राप्त करना चाहता है तो उसे प्रतिदिन शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए। विशेष रूप से सावन के हर सोमवार शिवजी का पूजन करें। इस नियम से शिवजी की कृपा प्राप्त की जा सकती है। भगवान की प्रसन्नता से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और परेशानियां दूर सकती हैं।
तो बनता है यह संयोग
ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा से केंद्र में अर्थात पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में बृहस्पति स्थित हो, तो गजकेशरी योग होता है। बहुत सी टीकाओं में बृहस्पति की लग्न से केंद्र स्थिति योगकारक मानी है लेकिन मूल योग चंद्रमा से ही समझना चाहिए।
राज योग भी है
पुराणों में बताया गया है कि यह एक प्रकार का राज योग है। जातक नेता, व्यापारी, विधानसभा का सदस्य, संसद, संस्था का मुखिया या राजपत्रित अधिकारी होता है। प्राय: इस योग वाले जातक जीवन में पर्याप्त उन्नति करते हैं और मरने के बाद भी उनकी यशोगाथा रहती है। चंद्रमा से केंद्र में अर्थात पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में बृहस्पति स्थित हो, तो गजकेशरी योग होता है।
मिलता है अच्छा फल
हालांकि बहुत सी टीकाओं में बृहस्पति की लग्न से केंद्र स्थिति योगकारक मानी है लेकिन मूल योग चंद्रमा से ही समझना चाहिए। इसी योग में यदि शुक्र या बुध नीच राशि में स्थित न होकर या अस्त न होकर चंद्रमा को संपूर्ण दृष्टि से देखते हों तो प्रबल गज केशरी योग होता है। जब भी बृहस्पति की महादशा आएगी इसका उत्तम फल प्राप्त होगा। चंद्रमा की महादशा में भी अच्छे फल प्राप्त होंगे। राज केशरी योग वाले जातकों को बृहस्पति और चंद्रमा इन दो महादशाओं में से जो पहले आएगी उसमें अच्छा फल प्राप्त करते हुए देखा गया है।
शुभता के लिए यह भी जरूरी
आचार्य के अनुसार जिस व्यक्ति की कुण्डली में शुभ गजकेशरी योग होता है वह बुद्धिमान होने के साथ ही विद्वान भी होता है। इनका व्यक्तित्व गंभीर व प्रभावशाली होता है जिससे समाज में इन्हें श्रेष्ठ स्थान मिलता है। आर्थिक मामलों में यह बहुत ही भाग्यशाली होते हैं जिससे इनका जीवन वैभव से भरा होता है। लेकिन यह तभी संभव होता है जब यह योग अशुभ प्रभाव से मुक्त होता है। गजकेशरी योग की शुभता के लिए यह आवश्यक है कि गुरू व चन्द्र दोनों ही नीच के नहीं हों। ये दोनों ग्रह शनि व राहु जैसे पापग्रहों से किसी प्रकार प्रभावित नहीं हों।
नहीं रहता है अभाव
शुभ योगों में गजकेशरी योग को अत्यंत शुभ फलदायी योग के रूप में जाना जाता है। यह योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है उस व्यक्ति को जीवन में कभी भी किसी चीज का अभाव नहीं खटकता है। इस योग के साथ जन्म लेने वाले व्यक्ति की ओर धन, यश, कीर्ति स्वत: खींची चली आती है। जब कुण्डली में गुरू और चन्द्र पूर्ण कारक प्रभाव के साथ होते हैं तब यह योग बनता है। लग्न स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक हो तब यह कारक प्रभाव के साथ माना जाता है। चन्द्रमा से केन्द्र स्थान में 1, 4, 7, 10 बृहस्पति होने से गजकेशरी योग बनता है। इसके अलावा अगर चन्द्रमा के साथ बृहस्पति हो तब भी यह योग बनता है।