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...इतनी बात सुनते ही मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा

सकी इतनी बात सुनते ही मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा। इस प्रकार सुलोचना को अपने पति का कटा हुआ सिर मिला ओर वो इसे लेकर चली गईं।’

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 20 Oct 2016 10:16 AM (IST)Updated: Thu, 20 Oct 2016 10:21 AM (IST)
...इतनी बात सुनते ही मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा

हिंदू धर्मग्रंथ ‘रामायण’ के अनुसार रावण के बेटे का नाम मेघनाद था। उसका एक ओर नाम इंद्रजीत भी था। दोनों नाम उसकी बहादुरी के लिए निकले गए थे। जबकि मेघनाद, इंद्र पर जीत हासिल करने के बाद इंद्रजीत कहलाया। और मेघनाद, का मेघनाद नाम मेघों की आड़ में युद्ध करने के कारण से पड़ा। ये एक वीर राक्षस योद्धा था।

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मेघनाद, श्रीराम और लक्ष्मण को ख़त्म करना चाहता था। युद्ध के वक्त उसने काफी सारे प्रयत्न किए जबकि वह विफल रहा। इसी युद्ध में लक्ष्मण के घातक बाणों से मेघनाद मारा गया था। लक्ष्मण जी ने ही मेघनाद का सिर उसके शरीर से बिल्कुल अलग कर दिया था।

और मेघनाद का सिर श्रीराम के आगे रख दिया गया। इसको वानर और रीछ देखने लगे। तभी श्रीराम ने कहा 'इसके सिर को अपने पास संभाल कर रखो। क्योकि श्रीराम मेघनाद की मृत्यु की सूचना इसकी पत्नी सुलोचना को देना चाहते थे। और रामजी ने मेघनाद की एक भुजा को बाण के द्वारा मेघनाद के महल में पहुंचा दिया। जब वह भुजा मेघनाद की पत्नी सुलोचना ने देखी तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है। उसने भुजा से कहा अगर तुम वास्तव में मेरे पति मेघनाद की भुजा हो तो मेरी दुविधा को लिखकर दूर करो।

और तभी सुलोचना के इतना कहते ही भुजा अपनी कुछ हरकत करने लगी, तब एक सेविका ने उस भुजा को खड़िया लाकर हाथ में रख दी। उस कटे हुए हाथ ने आंगन में लक्ष्मण जी के प्रशंसा के शब्द लिख दिए। तब सुलोचना को विश्वास हो गया था कि युद्ध में उसके पति मारा गया है। सुलोचना इस समाचार को सुनते ही रोने लगीं।

फिर वह रथ में बैठकर रावण से मिलने चल पड़ी। रावण को सुलोचना ने मेघनाद का कटा हुआ हाथ दिखा कर अपने पति का सिर मांगा। तब सुलोचना रावण से बोली कि "अब मैं एक पल के लिए जीवित नहीं रहना चाहती मैं अपने पति के साथ ही सती होना चाहती हूं'।

रावण ने सुलोचना से कहा पुत्री चार घड़ी प्रतिक्षा करो मैं मेघनाद का सिर शत्रु के सिर के साथ लेकर आता हूं। जबकि सुलोचना को रावण की बात पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं हुआ। और सुलोचना मंदोदरी के पास गई। तभी मंदोदरी ने बोला तुम राम के पास जाओ, वह बहुत दयालु हैं।

सुलोचना जब राम के पास गई तो इसका परिचय विभीषण ने करवाया। तब सुलोचना ने राम से कहा ‘हे राम में आपकी शरण में आई हूं। मेरे पति का सिर मुझे लौटा दें ताकि में सती हो सकूं। और सुलोचना की दशा देखकर राम दुखी हो गए। और उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे पति को अभी जीवित कर देता हूं।’ इस बीच उसने अपनी जीवन की सम्पूर्ण दुःख सुख की पूरी कहानी सुनाई।

सुलोचना ने कहा कि, ‘मैं नहीं चाहती कि मेरे पति अब जीवित होकर संसार के सभी कष्टों को भोगें। अब तो मेरे लिए बस सौभाग्य की बात है कि मुझे आपके दर्शन हो गए। मेरा जन्म अब सार्थक हो गया हैं। अब मुझे जीवित रहने की कोई भी इच्छा नहीं है।’

राम के बोलने पर सुग्रीव मेघनाद का सिर ले आए। जबकि सुग्रीव के मन में ये बात चल रही थी की मेघनाद के कटे हाथ ने लक्ष्मण का गुणगान कैसे किया। और इनसे रहा नहीं गया और कहा में सुलोचना की सभी बाते तभी सच मानूंगा जब यह नरमुंड हंसेगा।

और इसपर सुलोचना के सतीत्व की यह बहुत बड़ी परीक्षा थी। तभी सुलोचना ने कटे हुए सिर से कहा ‘हे स्वामी! जल्दी से हँसिये, नहीं तो आपके हाथ ने जो लिखा है, उसे ये सब सत्य कभी नहीं मानेंगे। ओर उसकी इतनी बात सुनते ही मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा। इस प्रकार सुलोचना को अपने पति का कटा हुआ सिर मिला ओर वो इसे लेकर चली गईं।’


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