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...तो इसलिए हमेंं नाग पंचमी पर नाग की पूजा करनी चाहिए पर इस दिन ऐसा बिल्‍कुल ना करें

सर्पों का सर्वेदोष-निवारक मंत्र- ‘ॐ कुरुकुल्ले हुं फट् स्वाहा|’ इस मंत्र से पंचमियों को जो सर्पों की पूजा पुष्पों से करते है उनके घर में साँपों का कभी भय नही होता|

By Preeti jhaEdited By: Published: Thu, 04 Aug 2016 02:45 PM (IST)Updated: Thu, 04 Aug 2016 03:04 PM (IST)
...तो इसलिए हमेंं नाग पंचमी पर नाग की पूजा करनी चाहिए पर इस दिन ऐसा बिल्‍कुल ना करें
...तो इसलिए हमेंं नाग पंचमी पर नाग की पूजा करनी चाहिए पर इस दिन ऐसा बिल्‍कुल ना करें

हिन्दू धर्म में सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी का विशेष महत्व है। आदि काल से ही इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है और नागों को दूध पिलाया जाता है। इस दिन लोग नाग देवता के दर्शन को शुभ मानते हैं। ऐसी मान्यता है के इस दिन नाग देवता की पूजा करने से और उसे दूध पिलाने ने सारे बुरे प्रभाव दूर हो जाते हैं और नाग का भय भी दूर हो जाता है। नाग पंचमी की पूजा के प्रमाण हड़प्पा संस्कृति की पुरातत्व विभाग की खुदाई में भी मिले हैं।

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इसलिए मनाई जाती है नागपंचमी
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार पृथ्वी को नागदेवता अपने सिर पर रखे हुए हैं। नाग देवता की पूजा का सिलसिला सदियों से चला आ रहा है। नाग देवता की पूजा करने से कई प्रकार के कुंडली में होने वाले दोषों से बचा जा सकता है। इसके लिए नागदेवता की पूरी विधि विधान से पूजा करनी चाहिए।
नागपंचमी के दिन ऐसे करें पूजा
इस दिन नागदेव के दर्शन अवश्य करना चाहिए। नाग देवता की बांबी (नागदेव का निवास स्थान) की पूजा करना चाहिए। नागदेवता पर दूध चढ़ा सकते हैं। उन्हें सुगंधित पुष्प व चंदन से ही पूजा करनी चाहिए। सर्वप्रथम सुबह जल्दी उठ कर स्नान करके नए वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके पश्चात दीवार पर गोबर से पंचमुखी सांप बनाया जाता है। कुछ जगह गोबर के स्थान पर सोने चांदी तथा काठ की कलम से चन्दन की स्याही से पंचमुखी बनाया जाता है। इसी स्थान पर फिर दूध, चावल तथा पुष्प चढ़ाये जाते हैं और भोग लगाया जाता है। कुछ जगह लोग सांप के रहने के स्थान बांबी पर दूध चढ़ाया जाता है। तत्पश्चात नाग देवता की पूजा करके आरती की जाती है। सभी प्रकार के दुष्प्रभावों को दूर करने के लिए ॐ कुरुकुल्ये हूँ फट स्वाहा का जाप किया जाता है।
नाग पूजन के लिए सेंवई-चावल आदि ताजा भोजन बनाएं। कुछ भागों में नागपंचमी से एक दिन पहले ही भोजन बना कर रख लिया जाता है और नागपंचमी के दिन बासी (ठंडा) खाना खाया जाता है। नागदेवता की दही, दूर्वा, कुशा, गंध, अक्षत, पुष्प, जल, कच्चा दूध, रोली और चावल आदि से पूजन कर सेंवई व मिष्ठान से उनका भोग लगाते हैं। इसके बाद आरती करके कथा का सुनना चाहिए।
काल सर्प का निवारण-
हमारे देश में विज्ञान के साथ-साथ अध्यात्म का भी अहम स्थान है। ऐसा माना जाता है के जिनकी कुंडली में काल सर्प दोष होता है उनको जीवन में नाग पंचमी की पूजा अवश्य करवानी चाहिए। इससे दोष भी दूर हो जाता है और जीवन में आने वाले अन्य विघ्न भी दूर हो जाते हैं। शिव पुराण में कहा गया है कि काल सर्प दोषयुक्त कुंडली वाला व्यक्ति यदि नागपंचमी पर नाग की पूजा करें और शिवजी पर सहस्राभिषेक करें तो सर्वमनोकामना सिद्धि प्राप्त होती है। एक और जहाँ पश्चिम बंगाल और ओड़िसा में इस दिन नाग देवी माँ मनसा की पूजा की जाती है वहीँ दूसरी और इस दिन केरला में नाग देवता की पूजा के साथ-साथ माँ सरस्वती की भी पूजा होती है। नाग पंचमी मुख्यतः मध्य,दक्षिण और पूर्वी भारत का प्रसिद्ध त्यौहार है।
नागपंचमी में इन 5 नागों की होती है पूजा
नाग पंचमी पर आमतौर पर पांच पौराणिक नागों की पूजा की जाती है जो क्रमश: अनंत, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक व पिंगल हैं। अनंत (शेष) नाग की शय्या पर भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। वासुकि नाग को मंदराचल से लपेटकर समुद्र-मंथन हुआ था। पुराणों के अनुसार तक्षक नाग के डसने से राजा परीक्षित की मृत्यु हुई थी। नागवंशी कर्कोटक के छल से रुष्ट होकर नारदजी ने उसे शाप दिया था। तब राजा नल ने उसके प्राणों की रक्षा की थी। हिंदू व बौद्ध साहित्य में पिंगल नाग को कलिंग में छिपे खजाने का संरक्षक माना गया है। नासिक में स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में नाग पूजा का विशेष महत्व है। मान्यता है कि श्रद्धालुओं को नासिक के त्र्यंबकेश्वर, औरंगाबाद के घृष्णेश्वर, उज्जैन के महाकालेश्वर या अन्य ज्योतिर्लिंगों में जाकर विधि-विधान से पूजा पाठ करवाने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। इस दिन नाग दर्शन का विशेष महत्व होता है। इस दिन सर्पहत्‍या की मनाही है। पूरे श्रावण माह विशेष कर नागपंचमी के दिन धरती खोदना निषिद्ध है।
नागपंचमी-व्रत महात्मय
एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् श्रीकृष्ण से नागपंचमी-व्रत के विषय में जिज्ञासा व्यक्त की, तब भगवान् श्री कृष्ण ने कहा- ‘युधिष्ठर! दयिता-पंचमी नागों के आनंद को बढ़ाने वाली होती है| श्रावण शुक्ला पंचमी में नागों का महान् उत्सव होता है| उस दिन वासुकि, तक्षक, कालिक, मणिभद्रक, धृतराष्ट्र, रैवत, कर्कोटक और धनंजय- ये सभी नाग प्राणियों को अभय (दान) देते है| जो मनुष्य नागपंचमी के दिन नागों को दूध से स्नान कराते है, दूध पिलाते है| उनके कुल में प्राणियों को ये सदा अभयदान देते रहते है| जब नाग माता कद्रू ने नागों को शाप दे दिया, तब वे रात-दिन संतप्त हो रहे थे| जब उन्हें गाय के दूध से तृप्त किया गया तब से वे प्रसन्न होकर सुखी हो गए|
विद्वानों ने यह पारण-विधि बताई है| इस श्रेष्ठ व्रत के करने से बांधवों को सद्गति की प्राप्ति होती है| सर्पादि के काटने से जिनकी अधोगति हो जाती है, उनके निमित यदि एक वर्ष तक यह उत्तम व्रत भक्ति पूर्वक किया जाए तो वे जीव उस यातना से मुक्त होकर शुभ गति को प्राप्त होते है|
जो भक्तिपूर्वक नित्य इस आख्यान को पढ़ता या सुनता है, उसके कुटुंब में नागों से कोई भय नही होता| इसी प्रकार जो भाद्रपदशुक्ला पंचमी को काले रंगों से नागों का चित्र बनाकर गंध-पुष्प-घी-गूगल-खीर आदि से भक्ति पूर्वक पूजा करता है, उस पर तक्षक आदि नाग प्रसन्न होते है| उसके सात कुल (पीढ़ी) तक नागों से भय नही रहता| इसी प्रकार आश्विनमास की शुक्ला पंचमी को कुश के नाग बनाकर इंद्राणी के साथ उनकी पूजा करे| घी-दूध और जल से स्नान कराकर दूध में पके गेहूँ तथा अन्य भोज्य पदार्थ उन्हें श्रद्धा-भक्तिपूर्वक समर्पित करे तो शेष आदि नाग उस पर प्रसन्न होते है, उसे सुख-शांति प्राप्त होती है| मृत्यु के बाद वह प्राणी उत्तम लोक को प्राप्त करता है, जहाँ चिरकाल तक आनंद भोगता है| यह पंचमी व्रत का विधान है| सर्पों का सर्वेदोष-निवारक मंत्र यह है- ‘ॐ कुरुकुल्ले हुं फट् स्वाहा|’ इस मंत्र से भक्तिपूर्वक सौ पंचमियों को जो सर्पों की पूजा पुष्पों से करते है, उनके घर में साँपों का कभी भय नही होता|

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