वेदों में ग्राम्य संस्कृति
सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद के अनुसार, चाक्षुष मनु के प्रपौत्र राजा वेन के पुत्र पृथु आदि कृषक थे, जिनके नाम पर धरती का नाम पृथ्वी पड़ा।
सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद के अनुसार, चाक्षुष मनु के प्रपौत्र राजा वेन के पुत्र पृथु आदि कृषक थे, जिनके नाम पर धरती का नाम पृथ्वी पड़ा।
ऋग्वेद में ही कहा गया है - वश्वि पुष्टे ग्रामे। अस्मिन अनातुरम।। अर्थात गांव विश्व की शांत और स्वावलंबी इकाई के रूप में विकसित हो। साथ ही, लोगों को कृषि करने का निर्देश देते हुए कहा गया है - अक्षैर्मा दीव्या कृषिमित्कृषस्व। राज्य द्वारा नहरों के निर्माण करने और कृषि प्रशिक्षण व्यवस्था करने का उल्लेख भी वेद में मिलता है।
यजुर्वेद में राजा का सबसे प्रमुख कर्तव्य कृषि की उन्नति को बताया गया है - कृष्यै त्वा क्षेमाय त्वा रय्यै त्वा पोषाय त्वा।
अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में कहा गया है - माता भूमि: पुत्रोअयं पृथिव्या: अर्थात पृथ्वी माता है और मैं पुत्र। इस वेद के अनुसार, कृषि कार्य गौरवमयी हैं।
वेदों में पंचायत का उल्लेख मिलता है। वैदिक काल में राज्य के तीन प्रमुख अधिकारी हुआ करते थे- पुरोहित, सेनापति और ग्रामीण। ग्रामीण गांवों का अधिपति और पंचायतों का प्रमुख होता था।
महाभारत में कहा गया है- कृषक और वणिक राष्ट्र को समृद्ध बनाते हैं, अत: राजा को इनके प्रति विशेष दृष्टि रखनी चाहिए।
(साभार, देव संस्कृति
विश्वविद्यालय, हरिद्वार)