पुजारियों ने ईश्वर प्राप्ति के इतने सारे मार्ग बता दिए...
आज के पुजारियों ने ईश्वर प्राप्ति के इतने सारे मार्ग बता दिए हैं कि उनकी सीमा खत्म होती नहीं दिखती है। हमें कहा गया कि स्नान करके ही पूजा करें, पूजा भूखे पेट करें, आप उपवास करें, परंतु प्रकृति ने कभी ऐसा नहीं कहा। ये सारे नियम प्रकृति के प्रतिकूल
आज के पुजारियों ने ईश्वर प्राप्ति के इतने सारे मार्ग बता दिए हैं कि उनकी सीमा खत्म होती नहीं दिखती है। हमें कहा गया कि स्नान करके ही पूजा करें, पूजा भूखे पेट करें, आप उपवास करें, परंतु प्रकृति ने कभी ऐसा नहीं कहा। ये सारे नियम प्रकृति के प्रतिकूल हैं, परमात्मा ने कभी ऐसा नहीं कहा। भगवान ने कभी यह भी नहीं कहा कि आप मेरी पूजा करें, शायद ऐसी बातें अपनी बात मनवाने या फिर दूसरों पर अपनी श्रेष्ठता जाहिर करने के उद्देश्य से कही गई होंगी।
इसी संदर्भ में एक कहानी याद आ रही है। लंदन के किसी चर्च के एक पादरी के मन में आया कि यहां जो एक द्वीप पर आदिवासियों का बसेरा है, उन लोगों को भी हम लोगों की जीवन-शैली और परमात्मा के रहस्यों को बताया जाए, वे भी तो हमारे समान व्यक्ति हैं, परंतु दीन-दुनिया से दूर वे अपने द्वारा बनाए रस्मों-रिवाज में रमे हैं। उन्हें भी परमात्मा के बारे में जानना चाहिए। यह सब सोचकर पादरी जहाज पर सवार होकर उस द्वीप पर पहुंचे। वहां उन सभी ने सविस्तार बातचीत की और पुन: आने का आश्वासन देकर संध्या बेला में वापस लौटने लगे। उनका जहाज कुछ ही आगे बढ़ा था कि उन्होंने देखा वे आदिवासी लोग जिनके पास अभी वे बैठे थे, पानी की लहरों पर दौड़ते हुए उनके जहाज की ओर आ रहे हैं। यह देख पादरी बड़े अचंभित हुए, वे समझ गए कि इन लोगों ने तो ईश्वर को पहले ही पा लिया है।
पास आकर उन लोगों ने पादरी से पूछा-फादर आपने जितनी भी बातें बताई, हम लोगों ने उसे अच्छी तरह से समझ लिया है, परंतु हम लोग आपसे यह पूछना भूल गए थे कि जिस परमात्मा के बारे में आपने हम लोगों को बताया, हम उन्हें किस नाम से पुकारें? पादरी ने जवाब दिया-‘मैंने अभी आपको जितनी भी बातें बताईं, वे सब मैं वापस लेता हूं। आपको मेरे बताए रास्ते पर चलने की कोई आवश्यकता नहीं है। आप लोग तो मुझसे भी आगे निकल चुके हैं। आप लोगों को परमात्मा की निकटता पहले से ही प्राप्त है। तात्पर्य यह है कि परमात्मा के पास जाते ही आप मांगना प्रारंभ न कर दें। गोस्वामी तुलसीदास ने भी तो कहा है कि हमारे जीवन में संपूर्ण सुख सहज ही प्राप्त होते हैं। ईश्वर, प्रकृति और हमारा जीवन तीनों एक ही हैं। केवल उनका स्वरूप भिन्न हो सकता है।