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शक्ति-जागरण का महापर्व नवरात्र

हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा नवरात्र में कन्या-पूजन का विधान इसलिए बनाया गया, ताकि हम कन्याओं-महिलाओं के प्रति आदर का भाव रखें। उन्हें सम्मान और सुरक्षा देने से ही हमारा और हमारे समाज का जागरण हो सकेगा। नवरात्र को आद्याशक्ति की आराधना का सर्वश्रेष्ठ पर्वकाल माना गया है। 'शक्ति्

By Edited By: Published: Sat, 05 Oct 2013 11:58 AM (IST)Updated: Sat, 05 Oct 2013 12:07 PM (IST)
शक्ति-जागरण का महापर्व नवरात्र

हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा नवरात्र में कन्या-पूजन का विधान इसलिए बनाया गया, ताकि हम कन्याओं-महिलाओं के प्रति आदर का भाव रखें। उन्हें सम्मान और सुरक्षा देने से ही हमारा और हमारे समाज का जागरण हो सकेगा।

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नवरात्र को आद्याशक्ति की आराधना का सर्वश्रेष्ठ पर्वकाल माना गया है। 'शक्तिसंगम' नामक ग्रंथ में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शंकर नवरात्र का परिचय इस प्रकार देते हैं-

'नवशक्तिभि: संयुक्तम् नवरात्रं तदुच्यते। एकैव देव-देवेशि नवधा परितिष्ठता॥' अर्थात नवरात्र नौ शक्तियों से संयुक्त है। नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन एक शक्ति की पूजा का विधान है। सृष्टि की संचालिका कही जाने वाली आदिशक्ति की नौ कलाएं (विभूतियां) 'नवदुर्गा' कहलाती हैं। मार्कण्डेय पुराण में नवदुर्गा का शैलपुत्री, ब्रšाचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के रूप में उल्लेख मिलता है।

देवीभागवत में 'नवकुमारियों' को 'नवदुर्गा' का साक्षात् प्रतिनिधि बताया गया है। उसके अनुसार, नवदुर्गा-स्वरूपा नवकुमारियां भगवती के नवरूपों की प्रत्यक्ष जीवंत मूर्तियां हैं। इसके लिए दो से दस वर्ष की अवस्था वाली कन्याओं का चयन किया जाता है। दो वर्ष की कन्या 'कुमारिका' कही जाती है, जिसके पूजन से धन-आयु-बल की वृद्धि होती है। तीन वर्ष की कन्या 'त्रिमूर्ति' की पूजा से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। चार वर्ष की कन्या 'कल्याणी' के पूजन से सुख मिलता है। पांच वर्ष की कन्या 'रोहिणी' की पूजा से स्वास्थ्य-लाभ होता है। छ: वर्ष की कन्या 'कालिका' के पूजन से शत्रुओं का शमन होता है। सात वर्ष की कन्या 'चण्डिका' की पूजा से संपन्नता एवं ऐश्वर्य मिलता है। आठ वर्ष की कन्या 'शांभवी' के पूजन से दुख-दरिद्रता का नाश होता है। नौ वर्ष की कन्या 'दुर्गा' की पूजा से कठिन कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं। दस वर्ष की कन्या 'सुभद्रा' के पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

देवीभागवत में इन नौ कन्याओं को नवदुर्गा की साक्षात् प्रतिमूर्ति माना गया है। तभी तो भक्त प्राय: नवरात्र के नौ दिन तक कन्याओं का पूजन करते हैं, परंतु जो व्यक्ति नवरात्र में नित्य कन्या-पूजन नहीं कर पाते, वे अष्टमी अथवा नवमी में कुमारिका-पूजन करते हैं। कन्या-पूजा के बिना भगवती महाशक्ति कभी प्रसन्न नहीं होती। देवीभक्त को कन्याओं के प्रति सदा आदर का भाव रखना चाहिए तथा स्त्री-वर्ग पर कभी कोई अत्याचार नहीं करना चाहिए। नवरात्र में शक्ति के उपासक को यह संकल्प लेना चाहिए कि वह आजीवन बच्चियों और महिलाओं को सम्मान देगा और उनकी सुरक्षा के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेगा, तभी तभी सही अर्थो में नवरात्र की शक्ति-पूजा संपन्न होगी। तभी हमारा भी जागरण हो सकेगा और समाज में भी जागरण होगा। कन्या-पूजन के माध्यम से ऋषि-मुनियों ने हमें स्त्री-वर्ग के सम्मान की ही शिक्षा दी है।

शारदीय नवरात्र-पूजा वैदिक काल में भी प्रचलित थी। संसार के सर्वाधिक प्राचीन ग्रंथ 'ऋग्वेद' की प्रारंभिक ऋचा में अग्नि की चर्चा है, जो कि आद्या महाशक्ति की ही एक शक्ति है। ऋग्वेद (4 सं-40 सू.-5 ऋ.) में शारदीय शक्ति (दुर्गा) पूजा का उल्लेख मिलता है। परंतु शारदीय शक्ति-पूजा को विशेष लोकप्रियता त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्रजी के अनुष्ठान से मिली। देवी भागवत में श्रीरामचंद्र द्वारा किए गए शारदीय नवरात्र के व्रत तथा शक्ति-पूजन का सुविस्तृत वर्णन मिलता है। इसके अनुसार, श्रीराम की शक्ति-पूजा संपन्न होते ही जगदंबा प्रकट हो गई थीं और उन्होंने श्रीरामचंद्र को रावण पर विजय पाने का वरदान दिया था। शारदीय नवरात्र के व्रत का पारण करके विजय दशमी के दिन श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई कर दी। कालांतर में रावण का वध करके श्रीरामचंद्रजी भगवती सीता को लेकर अयोध्या वापस लौट आए।

संवत्सर (वर्ष) में दो नवरात्र होते हैं- वासंतिक (चैत्र शुक्लपक्ष में) शारदीय (आश्विन शुक्लपक्ष में), किंतु शाक्तों की साधना में शारदीय नवरात्र को विशेष महत्व दिया गया है। दुर्गा सप्तशती में देवी स्वयं कहती हैं-

शरत्-काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी।

तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वित:॥

सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य-सुतान्वित:।

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥

अर्थात 'शरद् ऋतु में जो वार्षिक महापूजा की जाती है, उस अवसर पर जो मेरे माहात्म्य (दुर्गासप्तशती) को भक्ति-भाव के साथ सुनेगा, वह मनुष्य मेरी अनुकंपा से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन, धान्य एवं पुत्रादि से संपन्न होगा-इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।' सम्भवत: इसी कारण बंगाल में दुर्गापूजा मुख्यत: शारदीय नवरात्र में ही होती है।

भगवती जगदंबा भक्ति-भावना पर रीझती हैं, आडंबर पर नहीं। आज परिवार और समाज में जो लोग स्त्रियों को यथोचित सम्मान नहीं देते या जो कन्या भ्रूण हत्या में भागीदार बनते हैं, उन्हें इस नवरात्र पर अपना आचरण बदल लेना चाहिए। स्त्रियों एवं कन्याओं को देवी का प्रतिरूप मानने वाला हमारा दर्शन ही इस कुरीति को समाप्त कर सकता है। वस्तुत: शारदीय नवरात्र शक्ति-जागरण का पर्वकाल है। सृष्टि के कण-कण में शक्ति की सत्ता विद्यमान है। हमारे भीतर भी शक्ति है, जो हमारा संचालन कर रही है। वही शक्ति ही तो मां जगदंबा हैं। तभी तो देवता भी जगदंबा की स्तुति करते हुए कहते हैं-

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

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