सकारात्मक लक्ष्य आवश्यक
हमारी सोचने की प्रक्रिया कई परिस्थितियों से प्रभावित होती है। परिस्थितियों में हम खुद को जैसा ढालते हैं, सोचने की हमारी आदत पर वैसा ही असर पड़ता है।
हमारी सोचने की प्रक्रिया कई परिस्थितियों से प्रभावित होती है। परिस्थितियों में हम खुद को जैसा ढालते
हैं, सोचने की हमारी आदत पर वैसा ही असर पड़ता है।
आमतौर पर जीवन- परिस्थितियां तंग व तनावपूर्ण होती हैं। अधिकतर लोग तंगी व तनाव में हाथ-पैर छोड़ देते हैं, विचार-भावना सब छोड़ देते हैं। खुद को परिस्थिति के हवाले कर देते हैं। इसके बाद हम जो कुछ भी सोचते हैं,
उसमें हमारे दिमाग और दिल से अनुभव किया गया कुछ भी नहीं होता। हम बाह्य जगत के भाव-विचार से अपनी जिंदगी के काम और लक्ष्य तय करने लगते हैं। इस प्रकार के जीवन में मौलिकता नहीं रहती।
स्वभाव अगर नवीनता, सकारात्मकता का है और आवरण भेड़चाल व नकारात्मकता का ओढ़ लिया जाए तब मानवता का पतन तय है। समस्या यही है कि आज ज्यादातर लोग सोच-विचार, भाव-अभाव की स्वभावगत क्रिया-प्रतिक्रिया से विलग हैं। दबाव की ऐसी मानसिक-शारीरिक कसरत लक्ष्यविहीन होती है, जबकि मानव जीवन एक निर्धारित लक्ष्य के बिना अपरिपूर्ण है। अच्छी बातों, ऊंचे विचारों और सकारात्मक मनोभावों का
समावेश व्यक्ति में तभी हो पाता है, जब वह खुद को अनावश्यक व बुरे सामाजिक चाल-चलन से दूर रखे। जिस प्रकार जीवन में भोजन, पानी, शारीरिक व्यायाम आदि दिनचर्याओं का नियमन होता है, उसी प्रकार सकारात्मक विचार भी, व्यक्तित्व की उन्नति के लिए किया जाने वाला एक निरंतर अभ्यास है। इसमें कमी आते ही हम बुराई की ओर बढ़ने लगते हैं।
निस्संदेह हमारा वर्तमान सामाजिक चुनौतियों से भरा हुआ है। इनसे पार पाने के लिए अच्छाइयां ही अंगीकार करनी होंगी। बुराइयां मिटाने के लिए भी अपने स्तर पर कुछ न कुछ योगदान, समाधान अवश्य करते हुए आगे बढ़ना होगा। हमारे जीवन का उत्कर्ष हो या हमारा जीवन होड़ व लालच का शिकार बने, दोनों विकल्प हमारे हाथ में ही हैं। कैसी भी परिस्थितियां हों, हमें जीवन के उत्थान की राह ही चुननी होगी। कहते भी हैं कि परिस्थितियों
का दास मनुष्य को कभी नहीं बनना चाहिए, बल्कि अपने मनोयोग से उन्हें अपने अनुकूल ढालना चाहिए। जरूरत है उन्हें आत्मविश्वास के सहारे मानवता के अनुकूल बनाने की। जीवन में परिस्थिति कैसी भी हो, हमें जीवन को हर हाल में संभालना है।