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इस व्रत को करने से संतान को सुखी व सुदीर्घ जीवन प्राप्त होता है

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी (बलदाऊ) के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 19 Aug 2016 04:33 PM (IST)Updated: Sat, 20 Aug 2016 10:35 AM (IST)
इस व्रत को करने से संतान को सुखी व सुदीर्घ जीवन प्राप्त होता है

विद्वानों के अनुसार सबसे पहले द्वापर युग में माता देवकी द्वारा कमरछठ व्रत किया गया था, क्योंकि खुद को बचाने के लिए कंस उनके सभी संतानों का वध करता जा रहा था। उसे देखते हुए देवर्षि नारद ने हलषष्ठी माता का व्रत करने की सलाह माता देवकी को दी थी। उनके द्वारा किए गए व्रत के प्रभाव से बलदाऊ और भगवान कृष्ण कंस पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए। उसके बाद से यह व्रत हर माता अपनी संतान की खुशहाली और सुख-शांति की कामना के लिए करती है। इस बार 23 अगस्त को है हलषष्ठी पर्व।

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इस व्रत को करने से संतान को सुखी व सुदीर्घ जीवन प्राप्त होता है। कमरछठ पर रखे जाने वाले व्रत में माताएं खास तौर पर पसहर चावल का उपयोग करती है।

कैसे करें हलछठ व्रत

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता श्री बलरामजी (बलदाऊ) के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन श्री बलरामजी का जन्म हुआ था। श्री बलरामजी का प्रधान शस्त्र हल तथा मूसल है। इसी कारण उन्हें हलधर भी कहा जाता है। उन्हीं के नाम पर इस पर्व का नाम 'हल षष्ठी' पड़ा। भारत के कुछ पूर्वी हिस्सों में इसे 'ललई छठ' भी कहा जाता है। प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर गोबर लाएं। इस तालाब में झरबेरी, ताश तथा पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई 'हरछठ' को गाड़ दें। तपश्चात इसकी पूजा करें। पूजा में सतनाजा (चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का तथा मूंग) चढ़ाने के बाद धूल, हरी कजरियां, होली की राख, होली पर भूने हुए चने के होरहा तथा जौ की बालें चढ़ाएं।

हरछठ के समीप ही कोई आभूषण तथा हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखें। पूजन करने के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन द्वारा हवन करें। पश्चात कथा कहें अथवा सुनें। अंत में निम्न मंत्र से प्रार्थना करें-

गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते। स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्‌॥

ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि। अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, तुभ्यं नमो नमः॥

- अर्थात् हे देवी! आपने गंगा द्वार, कुशावर्त, विल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया है। सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बारम्बार नमस्कार है, आप मुझे अचल सुहाग दीजिए। और हमारे संतान को सुखी व सुदीर्घ जीवन देंं ।


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