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मौनी अमावस्या: वाणी को शांत करने से पहले मन को शांत करना होगा

वाणी को शांत करने से पहले मन को शांत करना होगा। यही सही अर्र्थों में मौन है, जो रोजमर्रा के कामों में हमारी एकाग्रता को बढ़ाता है। मौनी अमावस्या (20 जनवरी) पर विशेष... मौन का अर्थ है मन की शांत अवस्था। वह नीरव-निस्तब्धता, जहां मन बिल्कुल भी विचलित न हो। यदि

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 17 Jan 2015 08:02 AM (IST)Updated: Sat, 17 Jan 2015 08:11 AM (IST)
मौनी अमावस्या: वाणी को शांत करने से पहले मन को शांत करना होगा

वाणी को शांत करने से पहले मन को शांत करना होगा। यही सही अर्र्थों में मौन है, जो रोजमर्रा के कामों में हमारी एकाग्रता को बढ़ाता है। मौनी अमावस्या (20 जनवरी) पर विशेष...

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मौन का अर्थ है मन की शांत अवस्था। वह नीरव-निस्तब्धता, जहां मन बिल्कुल भी विचलित न हो। यदि हम सिर्फ बोलना छोड़ दें, तो वह मौन नहींकहलाएगा। क्योंकि मौन सिर्फ वाणी का नहीं होता, वह पूर्णत: मन का होता है। चूंकि मन का स्वभाव चंचल होता है, इसलिए मौन उसे नियंत्रित करने की महासाधना है।

अक्सर ऐसा होता है कि लोग किसी से नाराज होकर उससे बात करना बंद कर देते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो जमाने से नाराज होकर बोलना छोड़ देते हैं। यह मौन नहींहै। क्योंकि ऐसी स्थितियों में हमारा मन आहत होकर अधिक विचलित हो जाता है। मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि मौन के द्वारा चित्त की चंचलता को शांत करके शरीर की ऊर्जा और एकाग्रता को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन ऊपर दी गई अवस्थाओं में चुप रहना खतरनाक है। मनोचिकित्सक डॉ.नरेश पुरोहित ने एक शोध में बताया है कि जब हम चुप रहने का प्रयास करते हैं और दूसरों को अपनी बात इशारे से नहींसमझा पाते, तब हमारा मन और भी विचलित होने लगता है। इससे रक्तचाप बढ़ जाता है। जब हम मौन को विरोध के रूप में लेते हैं यानी किसी से नाराज होकर बातचीत बंद कर देते हैं, तब भी हमारा मन विचलित होता है और शरीर के लिए नुकसानदायक होता है।

श्रीमद्भागवत गीता भी कहती है कि मौन वाणी से अधिक मन का होना चाहिए। गीता के 16-17वें अध्याय में कहा गया है, 'मन की चंचलता को नियंत्रित करने वाले मौन की स्थिति में मनुष्य सीधे परमात्मा से संवाद कर सकता है।Ó इसी प्रकार चाणक्य नीति में बताया गया है कि मौन आत्मशक्ति एवं आत्मविश्वास को बढ़ाता है, लेकिन मन में उपजी भावनाओं को व्यक्त न करने से धमनियों पर अधिक दबाव पड़ता है।

इसका अर्थ यह है कि सिर्फ वाणी को शांत कर लेना मौन नहींहोता। अगर ऐसा होता तो हर मूक व्यक्ति आजीवन मौन साधक होता। अधिकांश शास्त्रों में मौन व्रत का माहात्म्य तो बताया गया है, लेकिन वे स्थितियां नहीं बताई गई हैं, जिनसे मौन संभव हो सकता है। मन की चंचलता को ही नियंत्रित करना मौन है, जो हमारे आम जीवन में बहुत लाभकारी है।

आज के समय में हम जरा भी देर के लिए चुप नहीं रहते। कभी फोन पर, कभी मोबाइल पर, कभी किसी मीटिंग में, तो कभी क्लाइंट को समझाने में बातचीत चलती रहती है। सोशल साइट्स पर चैटिंग करते वक्त भी हमारा मन निरंतर संवाद कर रहा होता है। हम इशारों से भी बोलते हैं। कभी-कभी मन ही मन बोलते हैं। मन को हर क्षण बातचीत में व्यस्त रखने के कारण हम अपनी चेतना की बात नहीं सुन पाते। मन और वाणी को मौन कर ही हम चेतना से जुड़कर ऊर्जावान बन पाते हैं। थोड़ी देर के लिए मन का मौन हमारे लिए बहुत लाभकारी सिद्ध होता है, बशर्ते हम न कुछ सोचें, न किसी को कुछ समझाएं, न कोई प्रतिक्रिया दें। मौन योग का ही एक अंग है, जो एकाग्र कर हमें ध्यान की ओर प्रवृत्त करता है और ध्यान से हमारे मन का जागरण होता है। मौन हमें नई ऊर्जा देता है, फिर हम हर कार्य को उत्कृष्टता से कर पाते हैं।

मन के स्थिर होते ही मौन सक्रिय हो जाता है। मौन से मानसिक ऊर्जा का क्षरण रुकता है। मौन में मन शांत, सहज व उर्वर होता है और बाद में सृजनशील विचारों की उत्पत्ति करने लगता है। कहा जाता है कि मन को जीतने वाला पूरी दुनिया को जीत लेता है। इसीलिए मौन से आंतरिक जगत के साथ-साथ बाहरी दुनिया को भी लाभ मिलता है। जापान के बौद्धमठ के चिन्ह यान ने एक अध्ययन में यह साबित किया है कि कामकाजी या लौकिक जीवन में मौन से सकारात्मक सोच का विकास होता है।


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