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नवरात्रि के नौ दिनों मे तीन- तीन दिन तीन गुणों के अनुरूप है तमस, रजस और सत्व

'नव' के दो अर्थ हैं- ' नया ' एवं ' नौ '. रात्रि का अर्थ है रात, जो हमें आराम और शांति देती है। यह नौ दिन समय है स्वयं के स्वरूप को पहचानने का और अपने स्रोत की ओर वापस जाने का है।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 20 Mar 2017 02:43 PM (IST)Updated: Mon, 27 Mar 2017 12:03 PM (IST)
नवरात्रि के नौ दिनों मे तीन- तीन  दिन तीन गुणों के अनुरूप है तमस, रजस और सत्व
नवरात्रि के नौ दिनों मे तीन- तीन दिन तीन गुणों के अनुरूप है तमस, रजस और सत्व
                                          
'नव' के दो अर्थ हैं- ' नया ' एवं ' नौ '. रात्रि का अर्थ है रात, जो हमें आराम और शांति देती है। यह नौ दिन समय है स्वयं के स्वरूप को पहचानने का और अपने स्रोत की ओर वापस जाने का है। इस परिवर्तन के काल में प्रकृति पुराने को त्याग कर फिर से वसंत काल में नया रूप सृजन करती है। 
जैसे एक नवजात जन्म लेने से पहले अपनी माँ के गर्भ में नौ महीने व्यतीत करता है उसी तरह एक साधक भी इन नौ दिनों और रातों मे  उपवास, प्रार्थना, मौन और ध्यान के द्वारा अपने सच्चे स्रोत की ओर वापस आता है। रात को रात्रि भी कहा जाता है क्योंकि ये जीवन को फिर से उर्जित करती है ।  नवरात्रि तीनों स्तर पर राहत देती है – स्थूल, सूक्ष्म और कारण. उपवास शारीर को पवित्र करता है, जबकि मौन वाणी को पवित्र करते हुए बेचैन मन को शांत करता है; ध्यान एक साधक को अपने अस्तित्व की ओर ले जाता है। 
नवरात्रि के इन नौ दिनों के दौरान मन को दिव्य चेतना मे लिप्त रखना चाहिए।  अपने अन्दर ये जिज्ञासा जगाइये, " मेरा जन्म कैसे हुआ ? मेरा स्रोत क्या है ? " तब हम सृजनात्मक और विजयी बनते हैं।  जब नकारात्मक शक्तियां तुम्हारे  मन को घेरती हैं तो मन विचलित रहता है और तुम शिकायत करते हो।  राग, द्वेष, अनिश्चितता और भय नकारात्मक शक्तियां है।  इन सब से राहत पाने के लिए अपने अन्दर उर्जा के स्रोत मे वापस जायें।  यही शक्ति है।  इन नौ रात  और दस दिनों के दौरान शक्ति/ देवी - दैवी चेतना की आराधना होती है। नवरात्रि के पहले तीन दिन दुर्गा देवी की अराधना होती है - जो वीर्य और आत्मविश्वास का प्रतीक है। उसके बाद के तीन दिन लक्ष्मी देवी के लिये हैं - जो धन- धान्य का प्रतीक है. अंत के तीन दिन सरस्वती देवी के लिए हैं - जो ज्ञान का प्रतीक हैं।  
ऐसी बहुत सी कथाएँ है कि कैसे माँ दिव्य रूप मैं अवतरित होकर मधु व कैटभ, और शुम्भ व निशुम्भ और महिषासुर जैसे और भी  असुरों का वध कर  शांति और सत्य की स्थापना करती हैं।  देवी ने इन असुरों पर विजय प्राप्त की।  ये असुर नकारात्मक शक्तियों का प्रतीक है जो कभी भी और किसी को भी अपने वश मैं कर सकती हैं। 
ये असुर कौन है? मधु राग है और कैटभ का अर्थ है द्वेष।  ये सबसे प्रथम असुर हैं। कई बार हमारा व्यवहार हमारे नियंत्रण में नहीं रहता। वह आनुवंशिक (जेनेटिक) है। रक्तबीजासुर का अर्थ है गहरी समायी हुई नकारात्मकता और वासनाएं। महिषासुर का अर्थ है जड़ता। एक भैंस की तरह महिषासुर भारीपन और जड़त्व  का प्रतीक है।  दैवी शक्ति उर्जा लेकर आती है और जड़ता को उखाड़ फेंकती है।  शुम्भ-निशुम्भ का अर्थ है सब पर संशय।  खुद पर संशय ' शुम्भ ' है।  कुछ लोग खुद पर संशय करते हैं: " क्या मैं सही हूँ? क्या मैं सच मे समर्पित हूँ? क्या मुझमें  बुद्धिमत्ता है? क्या मैं यह कर सकता हूँ? " निशुम्भ का अर्थ है अपने आस पास सब पर संशय करना। नवरात्रि आत्मा और प्राण का उत्सव है।  यही असुरों का नाश कर सकती है। 
नवरात्रि के नौ दिनों मे तीन- तीन  दिन तीन गुणों के अनुरूप है- तमस, रजस और सत्व।  हमारा जीवन इन तीन गुणों पर ही चलता है फिर भी हम इसके बारे मैं सजग नहीं रहते और इस पर विचार भी नहीं करते. हमारी चेतना तमस और रजस के बीच बहते हुए अंत के तीन दिनों मैं सत्व गुण में प्रस्फुटित होती है।  इन तीन आदि  गुणों को इस दैदीप्यमान ब्रह्माण्ड की नारी शक्ति माना गया है।  नवरात्री के दौरान मात्री रुपी दिव्यता की आराधना से हम तीनों गुणों को संतुलित करके वातावरण  मैं सत्व की वृद्धि  करते हैं।  जब सत्व गुण बढ़ता है तब विजय की प्राप्ति होती है। 
इन नौ पवित्र दिनों मैं बहुत सारे यज्ञ किये जाते हैं। यद्यपि हम इन यज्ञों और समारोह के मतलब  नहीं भी समझे फिर भी हम आँखें बंद रखते हुए बैठ कर अपने ह्रदय और मन को खुला रख कर इन तरंगो को महसूस करें। अनुष्ठानों के साथ मंत्रोच्चारण और रीति रिवाज़ पवित्रता लातीं हैं और चेतना का विकास करती हैं।  पूरी सृष्टि जीवित हो उठती है और तुम्हे भी बच्चों की तरह सब चीज़ें जीवन्त दिखने लगती हैं।   मात्री रुपी दिव्यता या पवित्र चेतना ही सभी रूपों  मे समायी हुई है।  एक दिव्यता को सब रूप और नाम मैं पहचानना ही नवरात्रि  का उत्सव है। 
नवरात्रि के अंत पर हम विजयदशमी का उत्सव मनाते है( दसवाँ दिन - विजय दिवस)।  यह दिन जागी हुई दिव्य चेतना में परिणित होने का है।  पुनः अपने आप को धन्य महसूस करें और जीवन में जो कुछ भी मिला है उसके लिए और भी कृतज्ञता महसूस करें। 

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