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नवरात्र हमारे नकारात्मक प्रवृत्तियों को निकाल बाहर करने का समय है

नवरात्र की नौ रात्रियां मां के 64 प्रवर्तनों रूप में सूक्ष्म ऊर्जा से संपन्न हैं। ऊर्जा, जो सूक्ष्म सृष्टि को संचालित करती जिसे यज्ञ, मंत्रोच्चार से प्रज्ज्वलित किया जाता।

By Preeti jhaEdited By: Published: Tue, 28 Mar 2017 12:10 PM (IST)Updated: Tue, 28 Mar 2017 03:17 PM (IST)
नवरात्र हमारे नकारात्मक प्रवृत्तियों को निकाल बाहर करने का समय है
नवरात्र हमारे नकारात्मक प्रवृत्तियों को निकाल बाहर करने का समय है

 राग, द्वेष, अनिश्चितता और भय जैसे नकारात्मक भावों से हम वर्ष भर जूझते रहते हैं। हमारी अच्छाइयों पर भी बुरी आदतों का प्रभाव बढ़ने लगता है। इससे मुक्ति पाने के लिए नवरात्र के अवसर पर अपने भीतर मौजूद ऊर्जा पुंज को हमें जगाना चाहिए। शक्तिस्वरूपा मां तो सृष्टि के हर रूप में उपस्थित हैं। श्री श्री रविशंकर का चिंतन...

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चि र काल से नवरात्र का उत्सव प्रमाद, अभिमान, शर्मिंदगी, राग और द्वेष पर आत्मा की विजय के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है। नवरात्र के पहले तीन दिन तमो गुण से संबंधित हैं, जो अवसाद, भय और भावनात्मक अस्थिरता के प्रतीक हैं। दूसरे तीन दिन रजो गुण (व्यग्रता और आवेग) से संबंधित हैं, जो बाद में अंत के तीन दिनों में सत्व गुण (शांति, स्थिरता और क्रियता) दर्शाते हैं। जब हम तमो गुण से रजो गुण की ओर बढ़ते हैं, तो विजय घटित होती है। यह विजय हमारे राग-द्वेष, प्रमाद और आलस्य जैसी आसुरी प्रकृति पर मानी जाती है। नवरात्र के दौरान देवी मां की आराधना करके हम तीनों गुणों को संतुलित करते हैं और वातावरण में सत्व की
उन्नति करते हैं। नवरात्र की नौ रात्रियां देवी मां के 64 प्रवर्तनों के रूप में सूक्ष्म ऊर्जा से संपन्न हैं। वह ऊर्जा, जो सूक्ष्म सृष्टि को संचालित करती है और जिसे यज्ञ, मंत्रोच्चार आदि से पुन: प्रज्ज्वलित किया जाता है।
नवरात्र हमारी आंतरिक गहराई को पुनर्जीवित करने का समय भी है। श्रीकृष्ण नवरात्र के समय दुर्गा के कई रूपों
की पूजा करते थे। उन्होंने कहा था, ‘मैं अपनी ही प्रकृति में डुबकी लगाता हूं और फिर से नया रचने के लिए बाहर आता हूं।’ आप भी अपनी प्रकृति में डुबकी लगाएं और नए बनकर बाहर आएं। नवरात्र के दौरान जो यज्ञ किए
जाते हैं, उसमें बड़ी सुंदरता से जीवन के सभी पहलुओं का समावेश किया गया है। वे अस्तित्व के तीन स्तरों पर पुनर्जीवन लाते हैं - शारीरिक, सूक्ष्म और दैवी। इन तीन रात्रियों के दौरान हमें अपना ध्यान देवी की चेतना पर केंद्रित रखना चाहिए।
जब नकारात्मक प्रभाव हमारे आसपास मंडराते रहते हैं, तो हम परेशान हो जाते हैं और इसकी शिकायत करने
लगते हैं। राग, द्वेष, अनिश्चितता और भय सभी नकारात्मक प्रभाव हैं, जो हमें बार-बार परेशान करते रहते हैं। इन सबसे राहत पाने के लिए हमें अपने भीतर मौजूद ऊर्जा के स्रोत की ओर जाने की जरूरत है। साधक उपवास,
प्रार्थना, मौन और ध्यान द्वारा अपने सच्चे स्रोत की तरफ वापस जा सकते हैं। उपवास शरीर का विष हरण करते हैं, मौन वाणी का शुद्धीकरण कर उसे विश्राम प्रदान करता है। प्रार्थना और ध्यान व्यक्ति को अपने अस्तित्व की गहराई में ले जाते हैं। नवरात्र हमारे आलस्य तथा अन्य नकारात्मक प्रवृत्तियों को निकाल बाहर करने का समय है। जैसे एक शिशु जन्म लेने के लिए नौ महीने का समय लेता है, ठीक उसी तरह देवी मां विश्राम के लिए नौ दिन का समय लेती हैं और दसवें दिन शुद्ध प्रेम और भक्ति के रूप में प्रकट होती हैं। इस पवित्रता और भक्ति से देवी आलस्य पर विजय प्राप्त करती हैं। ऐसी कई कथाएं हैं, जो हमें बताती हैं कि कैसे देवी मां ने असुरों- मधु व कैटभ,
महिषासुर और शुंभ-निशुंभ आदि कई असुरों का संहार कर संसार में शांति और व्यवस्था कायम की। नकारात्मकता और आसक्ति में गहराई से अंतर्निहित महिषासुर सुस्ती, भारीपन और आलस्य का प्रतीक माना जाता है। देवी की शक्ति ऊर्जा लाती है और आलस्य दूर हो जाता है। 
नवरात्र बुराई पर अच्छाई की विजय के तौर पर मनाया जाता है, किंतु वास्तविक लड़ाई अच्छे और बुरे के बीच में नहीं है। वेदांत के दृष्टिकोण से विजय प्रकट द्वैतवाद के ऊपर परम सत्य की है। नवरात्र भिन्नता को छोड़ने का और सभी तत्वों में जीवन को पहचानने का समय है। देवी मां या परम चेतना हमें दिख रहे सभी रूपों में व्याप्त है। हरेक नाम उनके ही नाम पर है। हरेक रूप में, हरेक नाम में उसी एक देवत्व को पहचानना है। हमें सभी
व्यक्तियों में देव स्वरूप की पहचान करनी है। यही नवरात्र का उत्सव है। इसीलिए अंतिम तीन दिनों
में जीवन और प्रकृति के सभी स्व

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