प्रकृति हमारी मार्गदर्शक है
पर्यावरण रक्षा को लेकर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की सक्रियता, सख्ती और नसीहत उचित ही है, लेकिन केवल उसके सजग रहने से अभीष्ट की पूर्ति नहीं होने वाली। इसी तरह साल में एक दिन पर्यावरण की चिंता करने से भी कुछ खास नहीं होने वाला। पर्यावरण की चिंता हर एक को
पर्यावरण रक्षा को लेकर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की सक्रियता, सख्ती और नसीहत उचित ही है, लेकिन केवल उसके सजग रहने से अभीष्ट की पूर्ति नहीं होने वाली। इसी तरह साल में एक दिन पर्यावरण की चिंता करने से भी कुछ खास नहीं होने वाला। पर्यावरण की चिंता हर एक को करनी होगी और हर दिन करनी होगी। पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ ही यह जरूरी संदेश घर-घर पहुंचाने की आवश्यकता है कि हर किसी का रहन-सहन ऐसा हो जिससे जल, जमीन और वायु प्रदूषित होने से बचे।
पर्यावरण रक्षा के सवाल को केवल शासन के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता-ठीक वैसे ही जैसे स्वच्छता अभियान की जिम्मेदारी सिर्फ केंद्र सरकार पर नहीं।पर्यावरण रक्षा को लेकर राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण की सक्रियता, सख्ती और नसीहत उचित ही है, लेकिन केवल उसके सजग रहने से अभीष्ट की पूर्ति नहीं होने वाली। इसी तरह साल में एक दिन पर्यावरण की चिंता करने से भी कुछ खास नहीं होने वाला। पर्यावरण की चिंता हर एक को करनी होगी और हर दिन करनी होगी। पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ ही यह जरूरी संदेश घर-घर पहुंचाने की आवश्यकता है कि हर किसी का रहन-सहन ऐसा हो जिससे जल, जमीन और वायु प्रदूषित होने से बचे। पर्यावरण रक्षा के सवाल को केवल शासन के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता-ठीक वैसे ही जैसे स्वच्छता अभियान की जिम्मेदारी सिर्फ केंद्र सरकार पर नहीं।
पेड़ों पर कई तरह के पक्षी विराजमान थे। जैसे- तोते, कौवे, कबूतर, मैना और कई किस्म की दूसरी चिड़ियां। इसके साथ ही कई प्रकार के मच्छर-मक्खियां और अन्य कीट-पतंग भी मगन होकर खूब शोर मचा रहे थे। अपने-अपने स्वरों से सभी घ्यान आकर्षित कर रहे थे। तितलियां, मधुमक्खियां और भंवरे भी अपने-अपने काम में लगे थे। हेलिकॉप्टर की तरह उड़ती हुई कुछ बर्रें अपने करतब दिखाने से बाज नहीं आ रही थीं। सभी अपनी-अपनी धुन में मस्त थे। एक पेड़ के तने पर भी कई तरह की असंख्य चींटियां ऊपर-नीचे आ-जा रही थीं। चींटियां ही क्यों, सभी जीव-जंतु भी जैसे अपने-अपने कामों में इतने व्यस्त लग रहे थे जैसे उन्हें दूसरों के कामों में दखल देने की फुर्सत ही न हो।
प्रकृति में जीव-जंतु भी एक-दूसरे का भोजन बनते हैं, लेकिन बिना पर्याप्त कारण कोई किसी को नहीं सताता। एक ही जीव की कई प्रजातियों में ही नहीं, जानवरों और पक्षियों में भी पूरा सामंजस्य है। जानवरों और पक्षियों में ही नहीं, जंतु-जगत और वनस्पति-जगत में भी कोई आपसी वैमनस्य नहीं। इसी सौमनस्य और संतुलन के कारण धरती पर जैव-विविधता का अस्तित्व बना हुआ है। इसी के कारण मनुष्य का अस्तित्व है। लेकिन मनुष्य? सारी दुनिया के मनुष्य एक ही प्रजाति के हैं, लेकिन देश और समाज की छोड़िए, एक घर के अंदर भी अनेक सदस्यों के शोषण की प्रक्रिया बनी रहती है। क्या मनुष्य उस प्रकृति से कुछ भी नहीं सीख सकते, जिसमें हर प्राणी दूसरों को कष्ट पहुंचाए बिना आसानी से अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है? प्रकृति इंसान की मार्गदर्शक है , इसलिए प्रकृति के इस संदेश को अपनाना हम सबके हित में है।