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कठिन राहों पर आनंद की अनुभूति

हरी मखमली घास के पड़ाव में रात्रि विश्राम के बाद नंदा पथ का अगला पड़ाव है पातरनचौंण्या। वैतरिणी (वेदिनी) कुंड से नौ किलोमीटर की चुनौतीपूर्ण दूरी तय कर राजजात पातरनचौंण्या पहुंचती है। समुद्रतल से 12743 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित इस पड़ाव का नाम पहले निरालीधार था। माना जाता है कि 14वीं शताब्दी में कन्नौज के राजा जसधव

By Edited By: Published: Mon, 01 Sep 2014 01:24 PM (IST)Updated: Mon, 01 Sep 2014 01:45 PM (IST)
कठिन राहों पर आनंद की अनुभूति

देहरादून। हरी मखमली घास के पड़ाव में रात्रि विश्राम के बाद नंदा पथ का अगला पड़ाव है पातरनचौंण्या। वैतरिणी (वेदिनी) कुंड से नौ किलोमीटर की चुनौतीपूर्ण दूरी तय कर राजजात पातरनचौंण्या पहुंचती है। समुद्रतल से 12743 फीट की ऊंचाई पर अवस्थित इस पड़ाव का नाम पहले निरालीधार था।

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माना जाता है कि 14वीं शताब्दी में कन्नौज के राजा जसधवल ने यात्रा की परंपराओं का उल्लंघन करते हुए राजजात में शामिल होकर यहां पर नर्तकियों से नाच करवाया था। इससे राजा को देवी का कोपभाजन बनना पड़ा और नर्तकियां शिला रूप में परिवर्तित हो गई। तभी से इस स्थान का नाम निरालीधार से पातरनचौंण्या हो गया। यहां विशेष पूजा-अर्चना के बाद यात्री रात्रि विश्राम करते हैं। इस बड़े क्षेत्र में फैले औषधीय पादप, ब्रह्मकमल इत्यादि की सुगंध हवा में महसूस की जा सकती है। हिमालयी क्षेत्र में फैले हरे-भरे घास के मैदानों का मखमली सौंदर्य आगे की कठिन को भी आनंद पथ में परिवर्तित कर देता है।

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