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नंदा राजजात: 12 साल बाद 'कारागार' से बाहर आएंगे लाटू

कहते हैं कि भक्त की एक ही पुकार पर भगवान दौड़े चले आते हैं, लेकिन भगोती नंदा के धर्मभाई एवं भगवान शिव के साले लाटू की माया ही निराली है। लाटू देवाल क्षेत्र (चमोली) के ऐसे देवता हैं, जिनके दर्शन भक्त तो दूर, खुद पुजारी भी नहीं कर सकता। इनके मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक दिन के

By Edited By: Published: Fri, 29 Aug 2014 10:24 AM (IST)Updated: Fri, 29 Aug 2014 10:26 AM (IST)
नंदा राजजात: 12 साल बाद 'कारागार' से बाहर आएंगे लाटू

देहरादून, [दिनेश कुकरेती]। कहते हैं कि भक्त की एक ही पुकार पर भगवान दौड़े चले आते हैं, लेकिन भगोती नंदा के धर्मभाई एवं भगवान शिव के साले लाटू की माया ही निराली है। लाटू देवाल क्षेत्र (चमोली) के ऐसे देवता हैं, जिनके दर्शन भक्त तो दूर, खुद पुजारी भी नहीं कर सकता। इनके मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक दिन के लिए बैसाख पूर्णिमा को खुलते हैं और उसी शाम बंद भी कर दिए जाते हैं। भक्त तब भी उनके करीब नहीं जा सकते। पुजारी भी आंख-मुंह पर पट्टी बांधकर कपाट खोलता है और ऐसे ही पूजा भी करता है।

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राजजात का आबादी वाला अंतिम पड़ाव वाण इन्हीं लाटू देवता का गांव है। यहां लाटू युगों से कैदखाने में हैं और यह कैदखाना ही उनका मंदिर भी है। मंदिर के अंदर क्या है, किसी को नहीं मालूम। बैसाख पूर्णिमा को भी कपाट खुलते ही मंदिर के मुख्य द्वार पर पर्दा डाल दिया जाता है, ताकि कोई अंदर झांक न सके। बारह बरस बाद जब नंदा मायके (कांसुवा) से ससुराल (कैलाश) जाते हुए वाण पहुंचती है, तब नौटियाल ब्राह्माणों द्वारा पूजन के लिए मंदिर के कपाट खोले जाते हैं। इस दौरान नंदा का लाटू से भावपूर्ण मिलन होता है। इस दृश्य को देख यात्रियों की आंखें छलछला जाती हैं। यहां से लाटू की अगुआई में चौसिंग्या खाडू के साथ राजजात होमकुंड के लिए आगे बढ़ती है। लेकिन, वाद्य यंत्र राजजात के साथ नहीं जाते।

लाटू क्षेत्र के ईष्टदेव हैं, लेकिन महिलाएं उनके दर्शनों को मंदिर में नहीं जाती। अन्य भक्त भी मंदिर से दस मीटर दूर रहकर पूजा-अर्चना करते हैं। कहते हैं कि लाटू कन्नौज के गर्ग गोत्र के कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। जब शिव के साथ नंदा का विवाह हुआ तो बहिन को विदा करने सभी भाई कैलाश की ओर चल पड़े। इनमें लाटू भी शामिल थे। मार्ग में लाटू को इतनी तीस (प्यास) लगी कि वह पानी के लिए इधर-उधर भटकने लगे। इस बीच उन्हें एक घर दिखा और वो पानी की तलाश में इस घर के अंदर पहुंच गए। घर का मालिक बुजुर्ग था, सो उसने लाटू से कहा कि कोने में रखे मटके से खुद पानी पी लो। संयोग से वहां दो मटके रखे थे, लाटू ने उनमें से एक को उठाया और पूरा पानी गटक गए। प्यास के कारण वह समझ नहीं पाए कि जिसे वह पानी समझकर पी गए, असल में वह मदिरा थी। कुछ देर में मदिरा ने असर दिखाना शुरू कर दिया और वह उत्पात मचाने लगे। इसे देख नंदा क्रोधित हो गई और लाटू को कैद में डाल दिया। साथ ही आदेश दिया कि इन्हें हमेशा कैद में रखा जाए। माना जाता है कि इस कैदखाने (मंदिर) में लाटू एक विशाल सांप के रूप में विराजमान हैं। इन्हें देखकर पुजारी डर न जाएं, इसलिए आंखों पर पट्टी बांधकर मंदिर के द्वार खोलते हैं।

मान्यता यह भी है कि वाण में ही लाटू सात बहिनों (देवियों) को एक साथ मिलाते हैं। यहीं पर दशौली (दशमद्वार की नंदा), लाता पैनखंडा की नंदा, बद्रीश रिंगाल छंतोली और बधाण क्षेत्र की तमाम भोजपत्र छंतोलियों का मिलन होता है। अल्मोड़ा की नंदा डोली व कोट (बागेश्वर) की श्री नंदा देवी असुर संहारक कटार (खड्ग) वाण में राजजात से मिलन के पश्चात वापस लौटती है।

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