Move to Jagran APP

अब बहू के रूप में मिलेगा स्नेह

मायके के अंतिम गांव भगोती में रात्रि विश्राम के बाद कुटुंबीजन नंदा को कुलसारी के लिए विदा करते हैं। भगोती में केदारु देवता की छंतोली यात्रा का हिस्सा बनती है और सीमा पर क्योर गदेरे के पास होता है किमोली व नैंणी की छंतोलियों का मिलन। यहां पर भगवती कई घंटों के अनुनय-विनय के बाद क्योर गदेरा पार कर ससुराल क

By Edited By: Published: Sun, 24 Aug 2014 03:18 PM (IST)Updated: Sun, 24 Aug 2014 03:32 PM (IST)
अब बहू के रूप में मिलेगा स्नेह

देहरादून। मायके के अंतिम गांव भगोती में रात्रि विश्राम के बाद कुटुंबीजन नंदा को कुलसारी के लिए विदा करते हैं। भगोती में केदारु देवता की छंतोली यात्रा का हिस्सा बनती है और सीमा पर क्योर गदेरे के पास होता है किमोली व नैंणी की छंतोलियों का मिलन। यहां पर भगवती कई घंटों के अनुनय-विनय के बाद क्योर गदेरा पार कर ससुराल की चौहद में प्रवेश करती है।

loksabha election banner

यह देवी के ससुराल क्षेत्र (बधाण) का पहला पड़ाव है। लेकिन, यह क्या, वहां तो माहौल ही बदला हुआ है। कुलसारी वाले मायके वालों को ज्यादा महत्व नहीं दे रहे। ससुराल वाले जो ठहरे। कुलसारी में देवी के काली रूप में विराजमान होने के कारण इस गांव का नाम कुलसारी पड़ा। कुलासारा ब्राह्मणों के इस गांव में अमावस्या के दिन जात प्रवेश करती है। अमावस्या की कालरात्रि को गांव में स्थित भूमिगत काली यंत्र को निकालकर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। देवी के पहुंचने पर कुलसारी में संपूर्ण पिंडर घाटी का सबसे बड़ा मेला लगता है। इसी मौके पर चांदपुर व सिरगुर पट्टी की सभी छंतौलियां का पदार्पण भी होता है। यहां से बुटोला थोकदार व सयाणों का सहयोग भी जात के लिए लिया जाता है। समुद्रतल से 1130 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कुलसारी में दक्षिण काली, त्रिमुखी शिव, लक्ष्मी नारायण, हनुमान व सूर्य का मंदिर है।

पढ़े: वात्सल्य से आतिथ्य भाव में पहुंची यात्रा

नंदा की अगवानी में उमड़ा जन समुद्र


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.