अब बहू के रूप में मिलेगा स्नेह
मायके के अंतिम गांव भगोती में रात्रि विश्राम के बाद कुटुंबीजन नंदा को कुलसारी के लिए विदा करते हैं। भगोती में केदारु देवता की छंतोली यात्रा का हिस्सा बनती है और सीमा पर क्योर गदेरे के पास होता है किमोली व नैंणी की छंतोलियों का मिलन। यहां पर भगवती कई घंटों के अनुनय-विनय के बाद क्योर गदेरा पार कर ससुराल क
देहरादून। मायके के अंतिम गांव भगोती में रात्रि विश्राम के बाद कुटुंबीजन नंदा को कुलसारी के लिए विदा करते हैं। भगोती में केदारु देवता की छंतोली यात्रा का हिस्सा बनती है और सीमा पर क्योर गदेरे के पास होता है किमोली व नैंणी की छंतोलियों का मिलन। यहां पर भगवती कई घंटों के अनुनय-विनय के बाद क्योर गदेरा पार कर ससुराल की चौहद में प्रवेश करती है।
यह देवी के ससुराल क्षेत्र (बधाण) का पहला पड़ाव है। लेकिन, यह क्या, वहां तो माहौल ही बदला हुआ है। कुलसारी वाले मायके वालों को ज्यादा महत्व नहीं दे रहे। ससुराल वाले जो ठहरे। कुलसारी में देवी के काली रूप में विराजमान होने के कारण इस गांव का नाम कुलसारी पड़ा। कुलासारा ब्राह्मणों के इस गांव में अमावस्या के दिन जात प्रवेश करती है। अमावस्या की कालरात्रि को गांव में स्थित भूमिगत काली यंत्र को निकालकर उसकी पूजा-अर्चना की जाती है। देवी के पहुंचने पर कुलसारी में संपूर्ण पिंडर घाटी का सबसे बड़ा मेला लगता है। इसी मौके पर चांदपुर व सिरगुर पट्टी की सभी छंतौलियां का पदार्पण भी होता है। यहां से बुटोला थोकदार व सयाणों का सहयोग भी जात के लिए लिया जाता है। समुद्रतल से 1130 मीटर की ऊंचाई पर स्थित कुलसारी में दक्षिण काली, त्रिमुखी शिव, लक्ष्मी नारायण, हनुमान व सूर्य का मंदिर है।