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अखंड सौभाग्य की प्रतीक मां शैलपुत्री की पूजा कई कामनाओं को पूर्ण करती है

शांति और भय का नाश करने वाली देवी शैलपुत्री यश, कीर्ति, धन और विद्या देने वाली हैं। यह देवी मोक्ष देने वाली हैं। उनका ध्यान करते समय यही आकांक्षा भक्त के मन में रहनी चाहिए।

By Preeti jhaEdited By: Published: Fri, 30 Sep 2016 03:32 PM (IST)Updated: Mon, 03 Oct 2016 04:37 PM (IST)
अखंड सौभाग्य की प्रतीक मां शैलपुत्री की पूजा कई कामनाओं को पूर्ण करती है

पहले दिन देवी शैलपुत्री का दर्शन पूजन होता है। शांति और महान उत्साह वाली भगवती भय का नाश करने वाली हैं। देवी शैलपुत्री यश, कीर्ति, धन और विद्या देने वाली हैं। यह देवी मोक्ष देने वाली हैं। उनका ध्यान करते समय यही आकांक्षा भक्त के मन में रहनी चाहिए।

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जगदम्बा शैलपुत्री स्वरूप में पर्वतराज हिमालयके घर में पुत्री रूप में अवतरित हुईं थीं। कालांतरमें जगदम्बा इसी स्वरूप में पार्वती के नाम सेदेवाधिदेव भगवान शंकर की अद्र्धांगिनी हुई।प्रथम दिन शैलपुत्री के इसी स्वरूप की पूजाअर्चना होती है। इस दिन अनेक लोग निम्न मंत्र का जाप करते हैं-कालरात्रिं ब्रह्ममस्तुतां वैष्णवी स्कन्दमातरं, सरस्वती मुदितिं दक्ष दुहितरं नमाम: पावनां शिवां।। अर्थात काल का भी नाश करने वाली वेदों द्वारा स्तुत्य हुई विष्णु शक्ति स्कन्दमाता च्शिवशक्तिज् सरस्वती च्ब्रह्मशक्तिज्, देवमाता अदिति और दक्ष कन्या च्सतीज्, पापनाशिनी, कल्याणकारिणी भगवती को हम प्रणाम करते हैं। नवरात्रि में प्रतिदिन कुमारी पूजन आवश्यक हैं। प्रथम दिन दो वर्षीय कन्या का पूजन किया जाता है। प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना के साथ होता है। कलश को हिन्दु विधानों में मंगलमूर्ति गणेश का स्वरूप माना जाता है अत: सबसे पहले कलश की स्थापना की जाती है।नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है।

मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्रि के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं। इनकी पूजन विधि इस प्रकार है-

सबसे पहले चौकी पर माता शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका(सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अर्धय, आचमन, Fान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृतशेखराम्।

वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्H

अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।

महत्व

हमारे जीवन प्रबंधन में दृढ़ता, स्थिरता व आधार का महत्व सर्वप्रथम है। अत: नवरात्रि के पहले दिन हमें अपने स्थायित्व व शक्तिमान होने के लिए माता शैलपुत्री से प्रार्थना करनी चाहिए। शैलपुत्री का आराधना करने से जीवन में स्थिरता आती है। हिमालय की पुत्री होने से यह देवी प्रकृति स्वरूपा भी है। स्ति्रयों के लिए उनकी पूजा करना ही श्रेष्ठ और मंगलकारी है।


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