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मीरी पीरी दिवस पर... मीरी पीरी का सिद्धांत

मीरी-पीरी दिवस 26 जुलाई को है। मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में सिखों के छठे गुरु के रूप जब हरिगोबिंद जी आसीन हुए तो उन्होंने सिर पर दस्तार बांधकर कलगी सजाई और दो तलवारें धारण कीं। गुरु साहिब ने कहा कि एक तलवार आत्मिक मंडल का नेतृत्व करेगी और दूसरी

By Preeti jhaEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2015 01:32 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jul 2015 02:05 PM (IST)
मीरी पीरी दिवस पर...  मीरी पीरी का सिद्धांत

मीरी-पीरी दिवस 26 जुलाई को है। मात्र ग्यारह वर्ष की आयु में सिखों के छठे गुरु के रूप जब हरिगोबिंद जी आसीन हुए तो उन्होंने सिर पर दस्तार बांधकर कलगी सजाई और दो तलवारें धारण कीं। गुरु साहिब ने कहा कि एक तलवार आत्मिक मंडल का नेतृत्व करेगी और दूसरी सांसारिक विषयों को दिशा देगी।

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यद्यपि किसी सिख गुरु ने पहली बार शस्त्र धारण किए थे, किंतु च्मीरी और पीरीज् की प्रतीक ये तलवारें सिख धर्म के मूल सिद्धांतों को प्रकट करने वाली थीं। गुरु नानक देव जी ने आरंभ में ही परमेश्वर प्रेम को वीरता से जोड़कर कह दिया था कि इस मार्ग पर वही चल सकता है, जो बलिदान देने से भी पीछे न हटे। गुरु हरिगोबिंद जी ने स्पष्ट किया कि अन्याय व अत्याचार का नाश भी धर्म का कर्तव्य है। इसके लिए उन्होंने वीर-भाव पैदा करने के लिए गुरुवाणी को आधार बनाया, वहीं एक सशस्त्र फौज भी तैयार की। उनका दूसरा महत्वपूर्ण कदम था अमृतसर में श्रीअकाल तख्त की रचना।

राजसी तख्त को चुनौती देने वाला यह ईश्वरीय शक्ति का तख्त था। इस तख्त पर बैठकर गुरु साहिब प्रतिदिन संगतों से मिलते, उन्हें उपदेश देते और उनके संशयों का निराकरण करते थे।

धर्म और राजसी शक्ति का एक साथ चलना ही संसार में मानवीय हितों को संरक्षित और राजसी व समाजी शक्तियों को निरंकुश होने से रोक सकता है। गुरु हरिगोबिंद जी ने बल के सही प्रयोग का ढंग भी स्वयं के आचरण

से सिखाया। जब जहांगीर ने धोखे से उन्हें कैद कर लिया तो वे शांत रहे। जब जहांगीर को अपनी गलती का अहसास हुआ तो गुरु साहिब अपने साथ बावन हिंदू राजाओं को भी मुक्त करा लाए। जब उन्हें मुगल शासन

ने युद्ध करने पर विवश किया, तो चारों युद्धों में उन्होंने विजय प्राप्त की।

उन्होंने बताया कि बल यदि धर्म के अनुशीलन में रहे तो मानवता का हित होता है। इस तरह च्मीरी-पीरीज् का सिद्धांत सामाजिक सरोकारों से जोड़ने वाला भी बना।


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