Move to Jagran APP

मौनी अमावस्‍या: मौन द्वारा हम चेतना का स्पर्श करते हैं

मैं कहता हूं कि मौन आए, तो जीवंत आए, बहता हुआ आए। तुम बंद न होओ। तुम खुलो, तो फिर मौन भी बंटे।

By Preeti jhaEdited By: Published: Mon, 23 Jan 2017 01:56 PM (IST)Updated: Fri, 27 Jan 2017 02:07 PM (IST)
मौनी अमावस्‍या: मौन द्वारा हम चेतना का स्पर्श करते हैं
मौनी अमावस्‍या: मौन द्वारा हम चेतना का स्पर्श करते हैं

सिर्फ चुप हो जाना मौन नहीं है। मौन द्वारा हम चेतना का स्पर्श करते हैं। यह हमारी संपदा है, जिसे सबके साथ बांटना चाहिए।

loksabha election banner

जो तुम्हारे पास हो, उसे बांटो। चुप्पी घनी हो रही हो, तो उसे बांटो। मौन बांटो। बड़ी संपदा है मौन की। मस्ती से भी बड़ी मस्ती है मौन की। नाच से भी गहन नाच है मौन का। गीत से भी गहन गीत है मौन का, उसे बांटो। मौन का अर्थ यह थोड़े ही है कि उसे संभालकर बैठो। यह तो मौन की कंजूसी हो गई। याद रखो, हम जीवन में शुभ भी इस ढंग से कर सकते हैं कि अशुभ हो जाए और अशुभ भी इस ढंग से कर सकते हैं कि शुभ हो जाए। इसी कला को जिसने जान लिया, उसने धर्म को जान लिया।

एक मौन वह है, जो कंजूसी का मौन है। अपने आप को बंद कर लेने का मौन है, सबसे तोड़ लेने का मौन है। सब द्वार बंद कर दो, खिड़कियां बंद कर दो, कोई हवा न आए, कोई रोशनी न आए, तो यह मरघट का मौन होगा। यह गुण शुभ नहीं। मौैन वहां खिल नहीं पाया, वह फूल नहीं बना। वह अभाव का मौन रहा। इस मौन का अर्थ इतना रहा कि बोलते नहीं हैं। यह भी कोई मौन हुआ, जो बोल न सके। मौन तो बोलता है। ऐसा मौन मत कर लेना कि सिर्फ न बोलने का आग्रह हो। फिर तुम्हारे भीतर जिंदगी सड़ने लगेगी। एक पोखर हो जाओगे, सरिता नहीं बन पाओगे।

हजार ढंग हैं बोलने के। सिर्फ बोलना ही सब कुछ नहीं। किसी का हाथ ही हाथ में ले लो तो क्या तुम बोले नहीं, किसी की तरफ भरी हुई आंखों से देखा तो क्या तुम बोले नहीं? सच तो यह है कि जीवन में जो महत्वपूर्ण है, ऐसे ही बोला जाता है। शब्द बाधा डालते हैं। जब कोई प्रेमी किसी प्रेयसी से बार-बार कहने लगे कि मैं तुम्हें प्रेम करता हूं, तो समझो प्रेम जा चुका। प्रेम नहीं रहा, इसलिए इसकी पूर्ति बातचीत से की जा रही है। मैं कहता हूं कि मौन आए, तो जीवंत आए, बहता हुआ आए। तुम बंद न होओ। तुम खुलो, तो फिर मौन भी बंटे।

बुद्ध को परम अनुभव हुआ। कहते हैं, वे सात दिन चुप बैठे रहे। देवता भागे-भागे आए स्वर्ग से। पहंुच गई भनक कि कुछ घटा है पृथ्वी पर। अस्तित्व ने कोई रंग लिया है। देवता भागे। वे चुप ही बैठे रहे। तुमने कभी चुप्पी को महसूस किया है? मौन भी एक घना अस्तित्व है। रेलगाड़ी शोरगुल करती निकल जाती है, उसके बाद चुप्पी कैसी घनी हो जाती है। तूफान बड़ा शोर मचाता है, फिर शांति कैसी घनी हो जाती है। जब बुद्ध व्यक्ति शांत हुआ, सदियों-सदियों का तूफान अचानक बंद हो गया - देवताओं को खबर न मिलेगी? बुद्ध ने मौन को बांटा।

जो है वही बांटो। मौन बन रहा है तो शुभ है। बस, बंद मत होना, बांटना। मित्रों को निमंत्रित कर देना कि आओ, चुपचाप बैठेंगे। जिसको चुपचाप बैठना होगा, आ जाएगा। हाथ में हाथ ले लेना, साथ-साथ हंस-रो लेना। बोलना मत। तब तुम पाओगे कि संबंधों का एक नया द्वार खुलेगा। तुमने दूसरे ढंग से दूसरे मनुष्य की चेतना को छुआ। तुमने उसे शब्दों के अलावा संबंध निर्मित करने का मौका दिया।

बांटना भी लीन होने की प्रक्रिया है। जब कुछ नहीं बचता, तब जो बचा है, वही संपदा है। मौन भी संपदा है। एक झेन फकीर रास्ते से गुजर रहा था। बड़ा बलशाली। दो डाकुओं ने हमला कर दिया। फकीर ने दोनों की गरदन पकड़कर उठा लिया। दोनों का सिर टकराने जा रहा था, तभी उसे खयाल आया, अरे ये तो बड़े दीन-हीन हैं। दोनों को छोड़ दिया। उसके पास जो कुछ था, उन्हें दे दिया और जोर-जोर से हंसने लगा। डाकू चौंके। उन्होंने कहा, आप हंस क्यों रहे हैं? फकीर ने कहा कि आज मुझे पता चला कि जो मेरे पास है उसे कोई नहीं ले जा सकता। जो देने योग्य था, तुम्हें दे दिया। अब मेरे पास शुद्ध अस्तित्व बचा है। इसी शुद्ध अस्तित्व का नाम महावीर ने दिया है- आत्मा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.