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हे छठी मैया हमहूं अरघिया देबै..

गंगा जी के घाट पर, हमहूं अरघिया देबै, हे छठी मैया। हम्मे तो नै जैबे कौनो घाट, हे छठी मैया..कांचे रे बांस के बहंगीयावा, बहंगिया लचकत जाय, बहंगिया लचकत जाय..। इ भाडा छठी माय के जाय, ई भाडा सुरुज देव के जाय.. शोभे ला घाट छठी माई के, छठी माइ के लागल दरबार.. छठी मैया क

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 29 Oct 2014 09:32 AM (IST)Updated: Wed, 29 Oct 2014 09:35 AM (IST)
हे छठी मैया हमहूं अरघिया देबै..

गंगा जी के घाट पर, हमहूं अरघिया देबै, हे छठी मैया। हम्मे तो नै जैबे कौनो घाट, हे छठी मैया..कांचे रे बांस के बहंगीयावा, बहंगिया लचकत जाय, बहंगिया लचकत जाय..। इ भाडा छठी माय के जाय, ई भाडा सुरुज देव के जाय..

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शोभे ला घाट छठी माई के, छठी माइ के लागल दरबार..

छठी मैया के गीतों से नदियों, जलाशयों के घाट गुंजायमान हैं। केले के थंभ से तोरणद्वार बने हैं। व्रतियों ने बांस से बने सूप और दउरा (टोकरी) में ठेकुआ और शरद ऋतु के फलों को सजाया है। आज सूर्य षष्ठी यानी संध्या अ‌र्घ्य है। नदी, जलाशयों में वे कमर तक पानी में खडे़ होकर डूबते हुए सूर्य को अ‌र्घ्य दे रही हैं। अभी वे 36 घंटे के उपवास पर हैं। इसके अगले दिन यानी सप्तमी तिथि को उदीयमान सूर्य को अ‌र्घ्य अर्पित कर वे अन्न-जल ग्रहण कर पारण करेंगी। यह दृश्य सिर्फ बिहार, झारखंड ही नहीं, यूपी, एमपी, महाराष्ट्र समेत संपूर्ण भारत का है। सूर्योपासना का यह पर्व कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होकर कल सप्तमी तिथि को प्रात: समाप्त होगा। प्रत्यक्ष देव होने के कारण सूर्य की उपासना-आराधना ऋग्वैदिक काल से ही प्रचलित है। मान्यता है कि ऋषि-महर्षि नदियों-सरोवरों के जल में पूर्व की ओर मुख कर सूर्य को जल का अ‌र्घ्य अर्पित करते थे। इस दौरान वे सूर्य से संबंधित गायत्री-मंत्र का जाप भी करते थे। इस मंत्र में सूर्य को बुद्धि को प्रखर करने वाला माना गया है।

ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धिमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। यानी जो भू, भुव (अग्निलोक) और स्वर्ग तीनों लोकों को प्रकाशित करता है, उस पाप-नाशक सूर्य देव की श्रेष्ठ शक्ति का हम ध्यान करते हैं, जिससे हमारी बुद्धि प्रखर हो।

ऋग्वेद में उल्लेख है कि हमारा संपूर्ण सौर मंडल सूर्य की किरणों के आकर्षण से बंधा हुआ है। तात्पर्य यह है कि इस जगत के समस्त जड़-चेतन का आधार सूर्य ही है, जो हमारी अंतर्निहित शक्तियों का कारक है। भारतीय दर्शन के अनुसार, सूर्य मात्र आग का धधकता हुआ गोला भर नहीं है। यह तो सूर्य का मात्र आधिभौतिक रूप है। आधिदैविक रूप में यह विचारों का नियंत्रक, ग्रहों का अधिपति तथा भावों को प्रेरणा देने वाला है। यह हर व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा के रूप में विराजमान है। इस धरती पर जितने भी प्राणी हैं, उन्हें भोजन प्राप्त करने हेतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सूर्य पर ही निर्भर रहना पड़ता है।

भारतीय दर्शन में जीवन-मृत्यु दोनों को उत्सव के समान माना जाता है। मृत्यु ही अंतिम सत्य है, इसलिए उदयाचल के साथ-साथ अस्ताचलगामी सूर्य को भी अ‌र्घ्य दिया जाता है। छठ महापर्व में सूर्य ही नहीं, संपूर्ण प्रकृति के प्रति भी प्रेम प्रकट किया जाता है। जहां तक संभव हो, श्रद्धालु नैसर्गिक वातावरण में अनुष्ठान करने की कोशिश करते हैं। खरना के दिन न सिर्फ आग के चूल्हे पर प्रसाद तैयार किया जाता है, बल्कि केले के पत्ते पर इसे ग्रहण भी किया जाता है। नदी-घाटों और जलाशयों की सफाई की जाती है और केले के थंभ से तोरणद्वार सजाए जाते हैं।


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