पंचम देवी स्कंदमाता
मां दुर्गा की पांचवीं शक्ति हैं स्कंदमाता। भगवान स्कंद की माता होने के कारण ही उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। मान्यता है कि सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री होने के कारण उनकी छवि ब्रह्मांड में दैदीप्यमान होती है। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। सिंह पर सवार मां स्कंदमाता की गोद में भगवान स्कंद बालरूप में बैठे है, यह स्वरूप हमें जीवन में स्नेह और वात्स
मां दुर्गा की पांचवीं शक्ति हैं स्कंदमाता। भगवान स्कंद की माता होने के कारण ही उन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। मान्यता है कि सूर्य मंडल की अधिष्ठात्री होने के कारण उनकी छवि ब्रह्मांड में दैदीप्यमान होती है। इनका वर्ण पूर्णत: शुभ्र है। सिंह पर सवार मां स्कंदमाता की गोद में भगवान स्कंद बालरूप में बैठे है, यह स्वरूप हमें जीवन में स्नेह और वात्सल्य के भाव को बढ़ाने के लिए प्रेरित करता है।
मां के दैदीप्यमान स्वरूप का ध्यान हमारे जीवन के अंधकारों, जैसे- ईष्र्या, प्रतिशोध, लालच, क्रोध व दुर्भावना आदि का शमन करके हममें प्रज्ञा, ज्ञान व तेज आदि सद््रगुणों के प्रकाश की ओर ले जाता है। उनके शुभ्र स्वरूप का ध्यान प्रतिकूल परिस्थिति में भी हमारी मानसिक व आध्यात्मिक शक्तियों को बढ़ाता है, जिसके कारण हमें शांति व आनंद की अनुभूति प्राप्त हो पाती है। मां का ध्यान हमारे जीवन को पवित्र व निष्पाप बनने की प्रेरणा देता है।
आज का विचार
सद्गुण और भीतर के कोमल भाव हमारे भीतर आध्यात्मिकता लाते हैं।
ध्यान मंत्र
ओम् ऐं हृीं क्लीं चामुंडायै विच्चे
ओम् स्कंदमातेति देव्यै नम:।।
[पं. अजय कुमार द्विवेदी]