संपूर्ण रोग विनाशक मां कात्यायनी का स्रोत पाठ व कवच
दुर्गा के छठे रूप को मां कात्यायनी के नाम से पूजा जाता है। महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने इनका पालन-पोषण किया तथा महर्षि कात्यायन की पुत्री और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी दुर्गा को कात्यायनी कहा गया। देवी कात्यायनी अमोद्य फलद
दुर्गा के छठे रूप को मां कात्यायनी के नाम से पूजा जाता है। महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में पैदा हुई थीं। महर्षि कात्यायन ने इनका पालन-पोषण किया तथा महर्षि कात्यायन की पुत्री और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी दुर्गा को कात्यायनी कहा गया।
देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर शक्ति का संचार होता है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित रहता है। योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है।
देवी कात्यायनी मंत्र
चन्द्रहासोच्जवलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
ध्यान वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना प†वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोच्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्मा परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
कवच
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
सम्पूर्ण रोग विनाशक उपाय
यदि आपके परिवार अथवा आप स्वयं या आपके परिचित में कोई व्यक्ति लंबे समय तक बीमार रहता हो, डाक्टर स्वयं बीमारी को पकड़ नहीं पा रहे हों। तो आज के दिन यह उपाय शुरू किया जा सकता है। एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछा दें। दुर्गा यंत्र स्थापित करें। सफेद कपड़े में सात कौडियां, सात गोमती चक्र, सात नागकेसर के जोडे़, सात मुट्ठी चावल बांध कर यंत्र के सामने रख दें। धूप-दीप, नैवेद्य, पुष्प और अक्षत अर्पित करने बाद एक माला ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं कात्यायनी देव्यै नम:। एक माला शुक्र के बीज मंत्र की और एक माला शनि मंगलकारी गायत्री मंत्र की। ऐसा आज से लेकर 43 दिन तक नियमित करें। ऐसी मानता है कि कैसी भी बीमारी होगी। उससे छुटकारा मिल जाएगा।
भय से मुक्ति के लिए प्रयोग
यदि हमेशा भय बना रहता है, यदि छोटी सी भी बात पर पैर कांपने लगते हैं, यदि कोई भी निर्णय नहीं ले पाते हैं तो छठे नवरात्र से यह उपाय शुरू करें। घी का दीपक जला कर एक माला ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ऊं कात्यायनी देव्यै नम: मंत्र का सुबह और शाम जाप करें। रात्रि सोते समय पीपल के पत्ते पर इस मंत्र को केसर से पीपल की लकड़ी की कलम से लिख कर अपने सिरहाने रख दें और सुबह मां के मंदिर में रखकर आ जाएं। भय से छुटकारा मिल जाएगा।
ग्रह पीड़ा निवारण
जिस जातक की जन्म कुंडली में शुक्र प्रतिकूल भाव, प्रतिकूल राशि या प्रतिकूल ग्रहों के साथ स्थित हो उन जातक-जातिकाओं को मां कात्यायनी के मंत्र का जाप करने से ग्रह प्रतिकूलता का निवारण हो जाता है।
राशि उपाय
वृषभ और तुला राशि के लोग मां कात्यायनी की आराधना करें तो संपूर्ण समस्याओं का निवारण हो जाएगा।