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जानें, कैसे बम बम भोले में बसी है आस्था, क्‍या है कांवड़ यात्रा का वैज्ञानिक महत्त्व

कांवड़ के माध्यम से जल चढ़ाने से मन्नत के साथ-साथ चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। कांवड़ यात्रा दृढ इच्छाशक्ति का सूचक है

By Preeti jhaEdited By: Published: Wed, 27 Jul 2016 01:27 PM (IST)Updated: Sat, 30 Jul 2016 10:39 AM (IST)
जानें, कैसे बम बम भोले में बसी है आस्था, क्‍या है कांवड़ यात्रा का वैज्ञानिक महत्त्व

भगवान शिव देवों के देव महादेव को गंगा जल चढ़ाने की प्रथा सदियों पुरानी मानी जाती है इसी प्रथा को हर वर्ष श्रावण माह के कृष्ण पक्ष में गंगा जल भरकर चौदस शिवरात्रि के दिन अलग अलग शिव मंदिरों में जल चढ़ाया जाता है जिसे कांवड़ यात्रा या कांवड़ मेला कहा जाता है।

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वैज्ञानिक महत्त्व

इस अवसर पर श्रद्धालु देश के विभिन्न कोणों से नजदीकी गंगा घाट से कांवड़ में जल भर कर पैदल यात्रा कर प्रमुख शिव मंदिर में शिवरात्रि को जल समर्पित करते है। श्रावण की कांवड़ यात्रा का वैज्ञानिक महत्त्व भी है

श्रावण की कांवड़ यात्रा का स्वास्थ्य सम्बन्धी काफी महत्त्व है । धर्म के प्रकांड विद्वानों ने इसी महत्त्व को जान कर इसको धार्मिक स्वरूप दिया है । इस यात्रा में भक्तगण श्रद्धा पूर्वक बाबा भोलेनाथ को कांवड़ चढ़ाने के लिए पद यात्रा करते हैं । श्रावण मास में जब वर्षा ऋतू आरम्भ होती है तो प्रकृति में रिमझिम बरसात के साथ सर्वत्र हरियाली छा जाती है । ऐसे सुहाने मौसम में बिना जूते चप्पल पहने कांवड़ उठा कर चतुर्दिक छाई हरियाली को निहारते हुए यात्री अपने लक्ष्य की और बढ़ते हैं । इस दौरान उन्हें पैरों में काटों का चुभना , धूप , बरसात , गर्मी आदि को सहन करना पड़ता है । हरियाली से आँखों की रोशनी बढ़ती है । जमीन पर ओस की बूंदें पैरों को ठंडक प्रदान करती हैं । सूर्य की किरणें शरीर में प्रवेश कर उसे निरोगी बनाती हैं ।

पाँव के छाले और काँटों की चुभन दर्द-कष्ट सहने की क्षमता बढ़ाते हैं । आज के विलासी जीवन जीने वाले मानव को आत्म -निरीक्षण करने का मौका मिलता है , उसको अपनी सहन-शक्ति एवं शरीर की प्रतिरोधक शक्ति का पता चलता है । उसका लक्ष्य महादेव पर जल चढ़ाना होता है , इससे इच्छाशक्ति दृढ होती है ।

इस धार्मिक उत्सव की विशेषता यह है कि सभी कांवड़ यात्री केसरिया रंग के वस्त्र धारण करते हैं और बच्चे, बूढ़े, जवान, स्त्री, पुरुष सबको एक ही भाषा में बोल-बम के नारे से संबोधित करते हैं। केसरिया रंग जीवन में ओज , साहस, आस्था और गतिशीलता का प्रतीक है इसके अतिरिक्त कलर-थेरेपी के अनुसार केसरिया रंग पेट से सम्बंधित रोगों को भी दूर करता है । भारत के समस्त हिंदुओं का विश्वास है कि कांवड़ यात्रा में जहां-जहां से जल भरा जाता है, वह गंगाजी की धारा में से ही लिया जाता है। कांवड़ के माध्यम से जल चढ़ाने से मन्नत के साथ-साथ चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है।कांवड़ यात्रा दृढ इच्छाशक्ति का सूचक है , इसे अत्यंत श्रद्धा भाव और संयम से पूरा करना चहिये ।

साक्षात शिव स्वरूप है कांवड़ यात्रा

कांवड़ शिव की आराधना का ही एक रूप है। इस यात्रा के जरिए जो शिव की आराधना कर लेता है, वह धन्य हो जाता है। कांवड़ का अर्थ है परात्पर शिव के साथ विहार। अर्थात ब्रह्म यानी परात्पर शिव, जो उनमें रमन करे वह कांवरिया। कैलाश मानसरोवर, अमरनाथ यात्रा, शिवजी के द्वादश ज्योतिर्लिंग (जो विभिन्न राज्यों में स्थित हैं) कांवड़ यात्रा आदि बहुत महंगी होने के कारण तथा अति दुष्कर होने के कारण सबकी सामर्थ्य में नहीं होती। अमरनाथ यात्रा भी दूरस्थ होने के कारण इतनी सरल नहीं है, परन्तु कांवड़ यात्रा की बढ़ती लोकप्रियता ने सभी रिकार्ड्स तोड़ दिए हैं सैकड़ों-हजारों से होता हुआ कांवडिया जलाभिषेक लाखों-करोड़ों तक जा पहुंचा है

सुख समृद्धि की प्राप्ति

वैसे तो भगवान शिव का अभिषेक भारतवर्ष के सारे शिव मंदिरों में होता है। लेकिन श्रावण मास में कांवड़ के माध्यम से जल-अर्पण करने से वैभव और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। वेद-पुराणों सहित भगवान भोलेनाथ में भरोसा रखने वालों को विश्वास है कि कांवड़ यात्रा में जहां-जहां से जल भरा जाता है, वह गंगाजी की ही धारा होती है। कांवड़ शिव के उन सभी रूपों को नमन है। कंधे पर गंगा को धारण किए श्रद्धालु इसी आस्था और विश्वास को जीते हैं।कहा जाता है कि कांधे पर कांवड़ रखकर बोल बम का नारा लगाते हुए चलना भी काफी पुण्यदायक होता है। इसके हर कदम के साथ एक अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है। कहने को तो ये धार्मिक आयोजन भर है, लेकिन इसके सामाजिक सरोकार भी हैं। कांवड के माध्यम से जल की यात्रा का यह पर्व सृष्टि रूपी शिव की आराधना के लिए है। पानी आम आदमी के साथ साथ पेड पौधों, पशु-पक्षियों, धरती में निवास करने वाले हजारो लाखों तरह के कीडे-मकोडों और समूचे पर्यावरण के लिए बेहद आवश्यक वस्तु है और किसी न किसी रुप में इन्हें भी जल मिल जाता है।

कई प्रकार के कांवड़

डाक कांवड़

डाक कांवड़िया कांवड़ यात्रा की शुरुआत से शिव के जलाभिषेक तक लगातार चलते रहते हैं, बगैर रुके। शिवधाम तक की यात्रा एक निश्चित समय में तय करते हैं। यह समय अमूमन 24 घंटे के आसपास होता है। इस दौरान शरीर से उत्सर्जन की क्रियाएं तक वर्जित होती हैं। अंतिम दो दिन ये यात्रा अखंड चलती है जिसको डाक कांवड़ कहा जाता है। निरंतर जीप, वैन, मिनी ट्रक, गाड़ियां, स्कूटर्स, बाईक्स आदि पर सवार भक्त अपनी यात्रा अपने घर से गंतव्य स्थान की दूरी के लिए निर्धारित घंटे लेकर चलते हैं। और अपने इष्ट के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। बहुत सी कांवड़ तो बहुत ही विशाल होती हैं जिनको कई लोग उठाकर चलते हैं।

खड़ी कांवड़

कुछ भक्त खड़ी कांवड़ लेकर चलते हैं। इस दौरान उनकी मदद के लिए कोई-न-कोई सहयोगी उनके साथ चलता है। जब वे आराम करते हैं, तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कांवड़ लेकर कांवड़ को चलने के अंदाज में हिलाते-डुलाते रहते हैं।

दांडी कांवड़

ये भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। मतलब कांवड़ पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेट कर नापते हुए यात्रा पूरी करते हैं। यह बेहद मुश्किल होता है और इसमें एक महीने तक का वक्त लग जाता हैइस यात्रा में बिना नहाए कांवड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते। तेल, साबुन, कंघी की भी मनाही होती है। यात्रा में शामिल सभी एक-दूसरे को भोला या भोली कहकर ही बुलाते हैं।

विश्व कल्याण की कांवड़ यात्रा

विषपान की घटना सावन महीने में हुई थी, तभी से यह क्रम अनवरत चलता आ रहा है। कांवड़ यात्रा को आप पदयात्रा को बढ़ावा देने के प्रतीक रूप में मान सकते हैं। पैदल यात्रा से शरीर के वायु तत्व का शमन होता है। कांवड़ यात्रा के माध्यम से व्यक्ति अपने संकल्प बल में प्रखरता लाता है। वैसे साल के सभी सोमवार शिव उपासना के माने गए हैं, लेकिन सावन में चार सोमवार, श्रावण नक्षत्र और शिव विवाह की तिथि पड़ने के कारण शिव उपासना का माहात्म्य बढ़ जाता है। ’चतुर्मास में जब भगवान विष्णु शयन के लिए चले जाते हैं, तब शिव रूद्र नहीं, वरन भोले बाबा बनकर आते हैं। सावन में धरती पर पाताल लोक के प्राणियों का विचरण होने लगता है। वर्षायोग से राहत भी मिलती है और परेशानी भी। कांवड़ यात्रा धर्म और अर्पण का प्रतीक है। का उत्सव भी मनाया जाता है।

बम बम भोले में बसी है आस्था

बम बम भोले बस यही तीन शब्द हैं जिनके सहारे कांवडिए आगे बढ़े जा रहे हैं, लेकिन यह केवल तीन शब्द नहीं हैं, इन शब्दों में छिपी है अपार आस्था, दिल की गहराइयों में बसी भोले की भक्ति, लाखों मनोकामनाएं और उनके पूरा होने की उम्मीद।

पढे. कांवड़ यात्रा कब शुरू हुई, किसने की, क्या उद्देश्य है, जानिए अनजाना तथ्य


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