आज है अंतिम श्राद्ध, क्यों इतना महत्वपूर्ण है महालया अमावस्या
कहा जाता है कि सर्वपितृ विसर्जन या महालया अमावस्या के दिन ब्राह्मणों, गायों, कौओं और बूढे-बुजुर्गों के रूप में किन्हीं भी चार जीवों को भोजन करवाये, तो उसके पितर संतुष्ट हो जाते हैं।
महालया वह पावन अवसर है, जो दुर्गा पूजा के पहले महिषासुरमर्दिनी, जगत जननी मां दुर्गा के आगमन की सूचना है। जागो तुमि जागो एक प्रकार का आह्वान है, मां दुर्गा को धरती पर बुलाने का। महालया के दिन प्रसारित होनेवाले महिषासुरमर्दिनी भारतीय संस्कृति में एक अतुलनीय रचना है। इसका कथानक काफी प्रभावी है। राक्षसराज महिषासुर का जुल्म देवताओं के विरुद्ध बढ़ता ही जा रहा था। उसके जुल्मों से त्रस्त देवता विष्णु के पास जाकर त्राहिमाम करने लगे. तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश की त्रिशक्ति ने अपनी सम्मिलित शक्ति से दस भुजाओंवाली शक्ति का निर्माण किया, जिसे जगत जननी मां दुर्गा कहा गया। उनमें विश्व की सारी शक्तियां निहित थीं।
फिर अन्य देवताओं ने उन्हें अपनी शक्तियों और अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित किया। किसी योद्धा की तरह सुसज्जित होकर मां सिंह पर सवार होकर महिषासुर से संग्राम करने चलीं। घमसान युद्ध के बाद मां ने त्रिशूल से महिषासुर का वध कर दिया। स्वर्ग और पृथ्वी लोक को महिषासुर के आतंक से मुक्ति मिली। शक्ति के समक्ष समस्त जगत नतमस्तक हुआ और मां का मंत्रोच्चार करने लगे।
ह्यया देवी सर्वभुतेषु, शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै,नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।
महालया के दिन सभी मां का आवाहन करते हैं :
ऊँ नतेभ्य: सर्वदा भक्त्या चंडिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विशो जेहि।।
ऊँ पुत्रान देहि धनं देहि सर्व कामाश्च देहि मे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विशो जेहि।।
श्राद्ध पक्ष, जिसे पितृपक्ष भी कहते हैं, भाद्र पद मास की पूर्णिमा को प्रारंभ होता है तथा 16 दिनाें के बाद अाश्विन मास की अमावस्या को समाप्त होता है और इसी अमावस्या को ही महालया अमावस्या भी कहते हैं।
जिस घर में श्रद्धापूर्वक पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है उस घर के पूर्वज वर्ष भर तृप्त रहते हैं तथा उनकी प्रसन्नता से उनके वंशज वर्ष पर्यंत धन, विद्या, सुख से संपन्न रहते हैं। जबकि गरूड पुराण के अनुसार यह भी माना जाता है कि यदि श्राद्ध पक्ष में पितरों की तिथी आने पर जब उन्हे अपना भोजन नहीं मिलता है तो वे क्रोधित होकर श्राप देते हैं, जिसके कारण वह घर परिवार कभी भी उन्नति नहीं कर पाता है तथा उस घर से धन, बुद्धि, विद्या आदि का विनाश हो जाता है।
पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए जो दिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है, उसे हम महालया अमावस्या के नाम से जानते हैं। माना जाता है कि दशहरे का त्यौहार आने से पहले जो अमावस्या आती है वह पूर्वजों या पिछली पीढियों काे समर्पित अमावस्या होती है और पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष के दौरान साल में केवल एक ही बार आती है, इसलिए इस अमावस्या को महालया अमावस्या कहा जाता है। महालया अमावस्या का महत्व इसलिए भी अत्यधिक हो जाता है क्योंकि इस महालया अमावस्या के दिन सभी पूर्वज अपने वंशजों के द्वार पर आते हैं। इसलिए जब किसी को इस बात का पता नहीं होता है कि उसके पूर्वजों का श्राद्ध किस तिथी को आता है, तो वे अपने सभी पूर्वजों का श्राद्ध इस अमावस्या पर कर सकते हैं। इसी वजह से इस अमावस्या हिन्दु धर्म के शास्त्रों में सर्वपितृ विसर्जनी अमावस्या भी कहा गया है।
कहा जाता है कि सर्वपितृ विसर्जन या महालया अमावस्या के दिन ब्राह्मणों, गायों, कौओं और बूढे-बुजुर्गों के रूप में किन्हीं भी चार जीवों को भोजन करवाये, तो उसके पितर संतुष्ट हो जाते हैं
वैज्ञानिकों का कहना है कि श्राद्ध पक्ष के समय ही भारतीय उपमहाद्वीप में नई फसलें पकना शुरू होती है जो कि हिन्दु नववर्ष के अनुसार साल की पहली फसल होती है। इसलिए हमारे पूर्वजों का सम्मान करने और उनका अाभार प्रकट करने के उद्देश्य से नई फसल का पहला अन्न उन्हे पिंड के रूप में भेंट किया जाता है। इसके बाद ही लोग नवरात्रि, विजयादशमी और दीपावली जैसे त्यौहारों का जश्न मनाते हैं।
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